सरसी छन्द ( महेन्द्र देवांगन माटी ) (1) वीणा वाली हंस सवारी , सुन ले मोर पुकार । तोर शरण मा आये हाँवव , मोला तैंहर तार । मँय अज्ञानी बालक माता, नइहे मोला ज्ञान । आ के कंठ बिराजो दाई , अपने लइका जान। तोर दया से कोंदा बोलय, राग छतीसो गाय । महिमा तोर अपार हवय माँ, कोई पार न पाय । (2) भेद करव झन बेटी बेटा , दूनों एक समान । होथे दूनों कुल के दीपक, येला तैंहर जान ।। पढ़ा लिखा दे बेटी ला तँय , बोझा झन तैं मान । पढ़ही लिखही आघू बढ़ही , जग मा होही गान ।। कमती झन आँकव बेटी ला , बढ़ के हावय आज । अपन मूँड़ मा पागा बाँधे , करत हवय जी राज ।। (3) रिमझिम रिमझिम बरसे पानी, दादुर गावय फाग । उचक उचक के मछरी घोंघी , झोंकत हावय राग ।। डबरी डबरा सब्बो भर गे , छलकत तरिया पार । नदियाँ नरवा उर्रा पुर्रा , बोहावत हे धार ।। गाँव गली मा पानी भरगे, भरगे खेती खार । चारों कोती पानी पानी, माचय हाहाकार ।। सावन महिना आ गे भोला , सुनले हमर पुकार । प्राण बचा दे अब तो तैंहर, विनती बारंबार ।। (4) मोहन नाचय राधा सँग मा , बृज मा रास रचाय । मुरली वाले नटवर नागर , अब्बड़ नाच नचाय ।। बंशी के