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माता दुर्गा

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माता दुर्गा माता दुर्गा राख ले , हमरो तैंहा लाज । आये हावन तीर मा , पूरा कर दे काज ।। नान नान लइका हमन , सेवा  करथन तोर । सबके संकट दूर कर , विनती सुनले मोर ।। दरशन खातिर तोर माँ, नर नारी सब आय । आनी बानी फूल अउ , छप्पन भोग लगाय ।। खप्पर धर के हाथ मा , काली रुप देखाय । पापी मन ला मार के,  दुनिया सबो बचाय ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @

जागव

जागव  दूसर राज के कोलिहा मन , शेर सही गुर्रावत हे । हमरे राज में आके संगी , हमी ल आंखी देखावत हे  छत्तीसगढ़ीया सबले बढ़िया, सुन सुन के आवत हे । थारी लोटा धर के आइस तेमन , अपन धाक जमावत हे । जेन ल हम ह जगा देहन , उही हक जमावत हे । हमर घर हे टूटहा फूटहा, वो महल अटारी बनावत हे । पहुना होथे भगवान बरोबर,  थारी थारी खवावत हे । उही थारी में छेदा करके, अब चार आंसू रोवावत हे । जागो जी सब छत्तीसगढ़ीया, अब तो होश में आवव । छत्तीसगढ़ के लाज रखे बर , सबझन आवाज उठावव । रचना महेन्द्र देवांगन माटी  पंडरिया कवर्धा  छत्तीसगढ़  Mahendra Dewangan Mati 

बेटी

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बेटी  ( सरसी छन्द ) (1) मारव झन जी बेटी ला अब , येला लक्ष्मी जान । नाम कमाथे जग मा सुघ्घर,  बेटा जइसे मान ।। अबला नइहे नारी अब तो,  हे दुर्गा अवतार । रक्षा अपन करे खातिर बर , धर लेथे तलवार ।। आज चलावत हावय बेटी,  मोटर गाड़ी रेल । खेलत हावय फूटबाल अउ , कुश्ती जइसे खेल ।। (2) भेद करव झन बेटी बेटा , दूनों एक समान । होथे दूनों कुल के दीपक, येला तैंहर जान ।। पढ़ा लिखा दे बेटी ला तँय , बोझा झन तैं मान । पढ़ही लिखही आघू बढ़ही , जग मा होही गान ।। कमती झन आँकव बेटी ला , बढ़ के हावय आज । अपन मूँड़ मा पागा बाँधे , करत हवय जी राज ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati मात्रा -- 16 , 11 = 27

आबे हमर गाँव

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आबे हमर गाँव  (सरसी छन्द ) आबे तैंहर गाँव हमर जी, बर पीपर के छाँव । देखत रइहूँ रस्ता तोरे, माटी मोरे नाँव ।। चारों कोती हरियर हरियर , हावय खेती खार । गाय चरावत रहिथे भोला , बइठे तरिया पार ।। बारी बखरी बोंथय सबझन,  लामे रहिथे नार । रहिथे सुघ्घर हिलमिल के सब , जुड़े मया के तार ।। पहुना आथे घर मा कोनों,  कँउवा करथे काँव । सबला सकला करके दाई,  बइठे परछी छाँव ।। लोटा मा जी पानी दे के,  पहुना पाँव पखार । मान गउन सब करथे ओकर, हिरदय मया अपार ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati मात्रा  --- 16 + 11 = 27 सम चरण के आखिर मा बड़कू लघु  (गुरु लघु ) 2 , 1 होना चाहिए ।

सरसी छन्द

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सरसी छन्द  ( महेन्द्र देवांगन माटी ) (1) वीणा वाली हंस सवारी , सुन ले मोर पुकार । तोर शरण मा आये हाँवव  , मोला  तैंहर तार । मँय अज्ञानी बालक माता,  नइहे मोला ज्ञान । आ के  कंठ बिराजो दाई , अपने लइका जान। तोर दया से कोंदा बोलय,  राग छतीसो गाय । महिमा तोर अपार हवय माँ, कोई पार न  पाय । (2) भेद करव झन बेटी बेटा , दूनों एक समान । होथे दूनों कुल के दीपक, येला तैंहर जान ।। पढ़ा लिखा दे बेटी ला तँय , बोझा झन तैं मान । पढ़ही लिखही आघू बढ़ही , जग मा होही गान ।। कमती झन आँकव बेटी ला , बढ़ के हावय आज । अपन मूँड़ मा पागा बाँधे , करत हवय जी राज ।। (3) रिमझिम रिमझिम बरसे पानी,  दादुर गावय फाग । उचक उचक के मछरी घोंघी , झोंकत हावय राग ।। डबरी डबरा सब्बो भर गे , छलकत तरिया पार । नदियाँ नरवा उर्रा पुर्रा , बोहावत हे धार ।। गाँव गली मा पानी भरगे, भरगे खेती खार । चारों कोती पानी पानी, माचय हाहाकार ।। सावन महिना आ गे भोला , सुनले हमर पुकार । प्राण बचा दे अब तो तैंहर, विनती बारंबार ।। (4) मोहन नाचय राधा सँग मा , बृज मा रास रचाय । मुरली वाले नटवर नागर , अब्बड़ नाच नचाय ।। बंशी के

पर्यावरण बचाव

पर्यावरण बचाव (सरसी छन्द ) महेन्द्र देवांगन माटी  काटव झन अब जंगल झाड़ी, सबझन पेड़ लगाव । बाढ़त हवय प्रदूषण  संगी , पर्यावरण बचाव ।। मिलथे हमला जंगल ले जी, लकड़ी फर अउ फूल । किसम - किसम के दवई मिलथे, येला तैं झन भूल ।। शुद्ध हवा ला देथे जंगल  , येकर गुण ला गाव । बाढ़त हवय प्रदूषण संगी , पर्यावरण बचाव ।। कट जाही जब जम्मो रुखवा , कइसे बचही जान । तड़प - तड़प के मछरी जइसे, छूट जही जी प्राण ।। माटी के तै बात मान ले , रुखवा ला झन काट । अपन सुवारथ के सेती तैं , धरती ला झन बाँट ।। सबके प्राण बचाथे जंगल  , आगी ल झन लगाव । बाढ़त हवय प्रदूषण संगी , पर्यावरण बचाव ।। महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़  8602407353 @Mahendra Dewangan Mati  मात्रा  -- 16 , 11 = 27 विषम चरण मा 16 मात्रा अउ सम चरण मा 11 मात्रा । सम चरण के आखिर मा बड़कू नान्हे  ( 2 ,1 ) होना चाहिए ।

पर्यावरण बचाव

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पर्यावरण बचाव (सरसी छन्द ) महेन्द्र देवांगन माटी काटव झन अब जंगल झाड़ी, सबझन पेड़ लगाव । बाढ़त हवय प्रदूषण  संगी , पर्यावरण बचाव ।। मिलथे हमला जंगल ले जी, लकड़ी फर अउ फूल । किसम - किसम के दवई मिलथे, येला तैं झन भूल ।। शुद्ध हवा ला देथे जंगल  , येकर गुण ला गाव । बाढ़त हवय प्रदूषण संगी , पर्यावरण बचाव ।। कट जाही जब जम्मो रुखवा , कइसे बचही जान । तड़प - तड़प के मछरी जइसे, छूट जही जी प्राण ।। जान बूझ के झन काटव जी,  बिगड़ी सबे बनाव । बाढ़त हवय प्रदूषण ............................ माटी के तै बात मान ले , रुखवा ला झन काट । अपन सुवारथ के सेती तैं , धरती ला झन बाँट ।। सबके प्राण बचाथे जंगल  , आगी ल झन लगाव । बाढ़त हवय प्रदूषण संगी , पर्यावरण बचाव ।। महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 @Mahendra Dewangan Mati मात्रा  -- 16 , 11 = 27 विषम चरण मा 16 मात्रा अउ सम चरण मा 11 मात्रा । सम चरण के आखिर मा बड़कू नान्हे  ( 2 ,1 ) होना चाहिए । जय छत्तीसगढ़