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माटी के दीया

माटी के दीया जलावव ************ माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव । चाइना माल के चक्कर छोड़ो, स्वदेसी ल अपनावव। माटी के दीया  ........................ बइठे हे कुमहारिन दाई, देखत हाबे रसता । राखे हाबे माटी के दीया, बेचत सस्ता सस्ता । का सोंचत हस ले ले संगी, घर घर  में बगरावव। माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव  झालर मालर छोड़ो संगी, दीया ल बगरावव। माटी के दीया जलाके संगी, लछमी दाई ल बलावव । घर में आही सुख सांति, जुर मिल तिहार मनावव। माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव । चाइना माल से होवत हाबे, जन धन सबमे हानि । हमर देस में बिकरी करके, करत हे मनमानी । आंख देखावत हमला ओहा, वोला तुम दुतकारव माटी के दीया जलावव संगी,माटी के दीया जलावव । आवत हे देवारी तिहार, घर कुरिया ल लीपावव । गली खोर ल साफ  रखो, स्वच्छता के संदेश लावव। ओदरत हाबे घर कुरिया ह, सब ल तुम छबनावव। माटी के दीया जलावव संगी, अंधियारी ल भगावव । रचना महेन्द्र देवांगन माटी

वाह रे परदेसिया

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वाह रे परदेसिया ***************** वाह रे परदेसिया हो, चाल चलेव तुमन बढ़िया बढ़िया । छत्तीसगढिया सबले बढ़िया कहिके, कर देव खड़िया खड़िया । हमर राज में आके तुमन, हमी ल आंखी देखायेव। हमरे माटी में कब्जा करके, हमी ल तुमन भगायेव भाई भाई में झगरा करवा के, मजा लेवत हो बढ़िया छत्तीसगढिया सबले बढ़िया कहिके, कर देव खड़िया खड़िया । हमरे थारी में खाके तुमन, उही में छेदा कर देव। सबला इंहा बुद्धु बनाके, अपन जेब ल भर लेव। हमला देके फोकला फोकला, खावत हो बढ़िया बढ़िया । छत्तीसगढिया सबले बढ़िया कहिके, कर देव खड़िया खड़िया । अब तो जागे ल परही संगी, तनिक होस में आवव। अइसन परदेसी मन ल, मार के तुम भगावव। अपन हक ल लेहे खातिर, झन बनव तुम कोढिया छत्तीसगढिया सबले बढ़िया , झन होवव खड़िया खड़िया । वाह रे परदेसिया हो, चाल चलेव तुमन बढ़िया बढ़िया । छत्तीसगढिया सबले बढ़िया कहिके, कर देव खड़िया खड़िया । जय छत्तीसगढ़ जय छत्तीसगढ़ी महेन्द्र देवांगन "माटी"✍ 💐💐💐💐💐💐Ⓜ🙏🙏

रावण मरा नहीं

रावण मरा नहीं ****************** रावण मरा नहीं, अधमरा भाग गया । इसीलिए तो आज, घर घर फिर जाग गया । कल तक मरने का नाटक किया , सबके ऊपर त्राटक किया। दुनिया को धोखा देकर, अहं उसका जाग गया । रावण मरा नहीं, अधमरा भाग गया ........... फिर से आज सीता का अपहरण किया है, मासूम बच्चियों को भयंकर त्रास दिया है । लूट हत्या बलात्कार, उसका खेल हो गया । रावण मरा नहीं, अधमरा भाग गया............. गाँव गली में आतंक मचा रहा है, नशे का पूरा जाल बिछा रहा है । दारु गांजा हफीम का सबको आदी बना गया । रावण मरा नहीं, अधमरा भाग गया.............. महेन्द्र देवांगन माटी (बोरसी -- राजिम वाले ) 9993243141

देवारी तिहार आवत हे

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देवारी तिहार आवत हे ***************** फुरुर फुरुर हावा चलत,जाड़ ह जनावत हे । दसेरा ह भुलकगे, देवारी ह अब आवत हे । माटी के कोठ ल, दाई ह छबनावत हे। ओदरे हे चंऊरा ह, बबा ह बनावत हे। भर भर के गाड़ा में, माटी ल डोहारत हे। दसेरा ह भुलकगे, देवारी ह अब आवत हे। फुट गेहे भांड़ी ह, कका ह उठावत हे। कोरई के राईचर ल, घेरी बेरी बनावत हे। बखरी बारी ल, रोज के सिरजावत हे। दसेरा ह भुलकगे, देवारी ह अब आवत हे। गाँव गली कोलकी ल, रोज के बहारत हे। दऊंड़ दऊंड़ के बोरिंग ले, पानी डोहारत हे। गोबर में अंगना ह, रोज के लीपावत हे। दसेरा ह भुलकगे, देवारी ह अब आवत हे। नावा नावा कपड़ा ल, नोनी बाबू सिलावत हे। हांस हांस के अपन , संगवारी ल देखावत हे। आनी बानी के सबोझन, फटाका लेवावत हे। दसेरा ह भुलकगे, देवारी ह अब आवत हे। अपन अपन घर ल,सब कोई लीपावत हे। कपाट बेड़ी मन में, रंग ल लगावत हे। माटी के दीया ल , घर घर जलावत हे। दसेरा ह भुलकगे, देवारी ह अब आवत हे। *********************** रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम  ( छ ग ) Email -- priyadewangan1997@gmail.c

दाई के मया

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दाई के मया ************** तोर मया के अंचरा में दाई, खेलेंव कूदेंव बढेंव । पढ़ लिख के हुसियार बनेंव, जिनगी के रसता गढेंव। सोज रसता म तैं चलाये, कांटा कभू नइ गड़ेंव । मया के झूलना म तैं झुलाये, सुख के पाहड़ चढेंव। लांघन भूखन खुद रहिके, मोला तैं खवायेस । जाड़ घाम अऊ पानी ले, मोला तैं बचायेस । खुद अड़ही रहिके दाई, मोला तैं पढायेस । नाम कमाबे बेटा कहिके, गोड़ में खड़ा करायेस । कतको दुख पीरा आइस, छाती में अपन छुपायेस बेटी बेटा के सुख खातिर, हांस के तै गोठियायेस। तोर मया के करजा ल, कभू उतार नइ पांवव । हर जनम में दाई मेंहा, तोरेच कोरा में आंवव । **************************** रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम  (छ ग ) पिन - 491559 मो नं -- 8602407353 Email - mahendradewanganmati@gmail.com

दाई के मया

दाई के मया ************** तोर मया के अंचरा में दाई, खेलेंव कूदेंव बढेंव । पढ़ लिख के हुसियार बनेंव, जिनगी के रसता गढेंव। सोज रसता म तैं चलाये, कांटा कभू नइ गड़ेंव । मया के झूलना म तैं झुलाये, सुख के पाहड़ चढेंव। लांघन भूखन खुद रहिके, मोला तैं खवायेस । जाड़ घाम अऊ पानी ले, मोला तैं बचायेस । खुद अड़ही रहिके दाई, मोला तैं पढायेस । नाम कमाबे बेटा कहिके, गोड़ में खड़ा करायेस । कतको दुख पीरा आइस, छाती में अपन छुपायेस बेटी बेटा के सुख खातिर, हांस के तै गोठियायेस। तोर मया के करजा ल, कभू उतार नइ पांवव । हर जनम में दाई मेंहा, तोरेच कोरा में आंवव । **************************** रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम  (छ ग ) पिन - 491559 मो नं -- 8602407353 Email - mahendradewanganmati@gmail.com

जय गनेस देवता

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जय गनेस देवता ***************** जय गनेस देवता, पहिली सुमरनी गांवव तोर गियान बुद्धि के देने वाला -2, हरले संकट मोर जय गनेस देवता :::::::::::::::: लंबा लंबा सूंड़ हाबे अऊ, पेट हे बड़ भारी सूपा जइसे कान हाबे तोर, मुसवा के सवारी सबके मंगल करने वाला -2 पंइया परत हों तोर जय गनेस देवता ••••••••••••••••••••• तोर दया से अंधरा देखे, गूंगा गाना गाथे लूला लंगड़ा कतको राहे,  पहाड़ में चढ़ जाथे जेकर ऊपर तोर किरपा हे-2, सुख पाथे चारों ओर जय गनेस देवता ••••••••••••••••••••••• हाथ जोड़ के बिनती करत हों, सबके भंडार भरबे माटी के हरे काया परभु, सदा सहाय करबे भूल चूक तै माफी देबे -2, सुनले अरजी मोर जय गनेस देवता •••••••••••••••••••• महेन्द्र देवांगन माटी संपर्क - 9993243141