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जय गनेस देवा

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जय गनेस देवा ********************* हिन्दू धरम में कोई भी काम करथे त सबसे पहिली गनेस जी के पूजा करे जाथे । गनेस जी ह मंगलकारी अऊ विघ्नहर्ता देवता हरे ।            भादो महिना में चतुरथी से ले के चतुरदसी तक माने दस दिन तक पूरा भारत भर में गनेस उत्सव के रुप में मनाय जाथे । भादो महिना के अंजोरी पांख के चतुरथी के दिन गनेस जी के पूजा पाठ करके स्थापना करे जाथे। पूरा दस दिन तक धूमधाम से पूजा करे जाथे । आजकाल पूरा पंडाल ल विसेस रुप से सजाय जाथे अऊ कई परकार के कारयकरम भी रखे जाथे । गनेस भगवान ह हिन्दू मन के अराध्य देव हरे । कोई भी काम करे के पहिली एकरे पूजा करे जाथे । शिव पुराण में एक कथा आथे कि एक दिन माता पारवती ह अपन सरीर के मइल ल निकाल के एक बालक बनाइस ओकर नाम ओहा गनेस रखिस। जब माता पारवती ह नहाय बर गिस त गनेस जी ल पहरेदारी करे बर दरवाजा में खड़ा कर दिस अऊ बोलीस के मोर नहात ले कोनो ल भी भीतर खुसरन मत देबे । त गनेस जी ह दरवाजा में खड़े राहे । थोकिन बाद में संकर जी ह आ गे अऊ भीतरी डाहर खुसरे ल धरीस , त गनेस जी ह वोला रोक दीस । गनेस जी बोलीस के तेंहा अभी अंदर नइ जा सकस । तब गनेस जी अऊ संकर ज

पोरा तिहार

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चल पोरा तिहार मनाबोन, ठेठरी खुरमी अऊ चीला बनाबोन । नंदिया बइला में चढाबोन, सिल्ली लगा के दऊड़ाबोन। चुकी पोरा ल सजाबोन, जांता ल चलाबोन। देवी देवता ल मनाबोन, चल पोरा तिहार मनाबोन । पोरा तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई महेन्द्र देवांगन माटी

तीजा पोरा

तीजा पोरा ************* तीजा पोरा आत हे, एती भाटों के करलई देखे नइ जात हे। दीदी ह मने मन में हांसत हे , भाटों ह जाग जाग के खांसत हे । दीदी ह अपन कपड़ा लत्ता ल जोरत हे , भाटों ह मने मन में रोवत हे । दीदी ह फोन कर करके बलावत हे , भाटों के जीव ल अऊ जलावत हे । दीदी ह जाय के जोरा करत हे , एती भाटों के नींद नइ परत हे । तीजा पोरा आत हे एती भाटों के करलई देखे नइ जात हे। दीदी ह मइके में तेलई बइठे हे , एती भाटों ह भूख के मारे अइठे हे । एक बेर के रांधे ल , भाटों दू बेर खावत हे , ओती दीदी ह घेरी बेरी लोटा धरके जावत हे । एती भाटों के पेट ह सप सप करत हे , ओती दीदी ह बरा सोंहारी खाके फस फस करत हे । रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" (बोरसी - राजिम वाले ) 9993243141

अपना समाज

अपना समाज ************* अलग अलग है जाति सबका अलग अलग है काम । मिलजुल कर रहते हैं सभी तभी तो बनता है समाज । भेदभाव नहीं करते कभी सबका सहयोग करते हैं । जो भी संकट आये किसी पर सब मिलकर हल करते हैं । चौरासी जाति के बंधु मिलकर एक अथाह समाज बनाये हैं । है कुशल विद्वान यहाँ पर मोती ढूँढ कर लाये हैं । मिलते है जब एक जगह सागर सा दिखाई देता हैं । रखते है विचार यहां सब भाव अपनापन का होता है । है अपना उद्देश्य एक ही आगे सबको बढ़ाना हैं । न हो कोई समाज मे पीछे जन जन में जागृति लाना हैं ।। महेन्द्र देवांगन "माटी"

सावन सोमवारी

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सावन सोमवारी अऊ शिवजी ******************** सावन के महिना ह सबला सुघ्घर लागथे । रिमझिम रिमझिम पानी गिरत रथे अऊ किसान मन ह गाना गावत खेती किसानी में बुड़े रहिथे । उही समय में आथे सावन सोमवारी । सावन सोमवारी में शिवजी के पूजा करे में मजा आ जथे । लइका से लेके सियान तक , छोकरी से लेके डोकरी तक, सब मनखे शंकर भगवान के पूजा पाठ करथे । सावन मास ह शिव जी के प्रिय मास हरे । ए मास में पूजा करे से वोहा जल्दी खुस होथे अऊ मनवांछित फल देथे अइसे बताय जाथे । एकरे पाय पूरा भारत देस में सावन सोमवारी के दिन भोलेनाथ में जल चढाय जाथे अऊ बिसेस पूजा अरचना करे जाथे । पौरानिक मान्यता -- सोमवार उपवास के बारे में एक पौरानिक मान्यता हे कि ये पूजा ल माता पारवती ह शंकर भगवान ल अपन पति के रुप में  पाय बर करत रिहिसे । एकर से खुस होके भगवान शिव ह ओला मिलगे अऊ ओकर मनोकामना पूरा होगे । एकरे पाय कुंवारी लड़की मन भी भगवान भोलेनाथ जइसे अच्छा पति मिले कहिके उपवास रहिथे अऊ पूजा पाठ करथे । कावंरिया मन के टोली -- सावन मास में शंकर जी ल जल चढ़ाय बर गांव  गांव अऊ सहर सहर से कावंरिया मन टोली बनाके निकलथे । सब झन अपन अपन कां

हाईकू 1

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हाईकू ******** (1) आया सावन झूमें मनभावन लगे पावन । (2) छा गई घटा कुहरों से है पटा निराली छटा । (3) भीगी पलकें सावन सा झलके कराह हल्के । (4) भीगता तन विचलित सा मन अपनापन । (5) भागते लोग सुविधाओं का भोग करते योग । (6) निकले पेट जमीन पर लेट बैठते सेठ । ***************** ले   रचना महेन्द्र देवांगन माटी  ( बोरसी - राजिम वाले ) गोपीबंद पारा पंडरिया जिला  - कबीरधाम ( छ ग ) mahendradewanganmati@gmail.com

माटी मोर मितान

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माटी मोर मितान **************** सुक्खा भुंइया ल हरियर करथंव, मय भारत के किसान धरती दाई के सेवा करथंव, माटी मोर मितान । बड़े बिहनिया बेरा उवत, सुत के मय ऊठ जाथंव धरती दाई के पंइया पर के, काम बुता में लग जाथंव कतको मेहनत करथों मेंहा, नइ लागे जी थकान धरती दाई के सेवा करथंव, माटी मोर मितान । अपन पसीना सींच के मेंहा, खेत में सोना उगाथंव कतको बंजर भूंइया राहे, फसल मय उपजाथंव मोर उगाये अन्न ल खाके, सीमा में रहिथे जवान धरती दाई के सेवा करथंव , माटी मोर मितान । घाम पियास ल सहिके मेंहा, जांगर टोर कमाथंव अपन मेहनत के फसल ल, दुनिया में बगराथंव सबके आसीस मिलथे मोला, कतका करों बखान धरती दाई के सेवा करथंव, माटी मोर मितान । धरती दाई के सेवा करके, अब्बड़ सुख मय पाथंव कोनों परानी भूख झन मरे, सबला मेंहा खवाथंव सबके पालन पोसन करथों, मेहनत मोर पहिचान धरती दाई के सेवा करथंव, माटी मोर मितान । रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम 8602407353