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अपना तिरंगा

अपना तिरंगा ******************** सबसे प्यारा अपना तिरंगा सबसे न्यारा अपना तिरंगा तीन रंगों का बना तिरंगा जन ,गण का सम्मान तिरंगा । वीरो की है शान तिरंगा भारत की पहचान तिरंगा दुनिया में है मान तिरंगा देशभक्तों की जान तिरंगा । त्याग की पहचान तिरंगा शांति की आवाम तिरंगा सदा लहराता अपना तिरंगा करते सदा सम्मान तिरंगा ।। *********************   रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" (बोरसी - राजिम) गोपीबंद पारा पंडरिया जिला - कबीरधाम (छ. ग)

सपना

सपना *********** कुहू कुहू कोयल ह , बगीचा में बोलत हे रहि रहि के मोरो मन, पाना कस डोलत हे जोहत हाबों रसता , आही कहिके तोला तोर बिना सुन्ना लागे , गली खोर मोला अन्न पानी सुहाये नही , तोर सुरता के मारे सुध मोर भुला जाथे , ते का मोहनी डारे सपना में आके तेंहा , मोला काबर जगाथस आंखी ह खुलथे त , काबर भाग जाथस । आना मयारू तेहा , तोर संग गोठियाबो हिरदय के बात ल , दूनो कोई बताबो ।

मोर गवंई गांव

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मोर गंवई गांव ********************** मोर सुघ्घर गंवई के गांव जेमे हाबे पीपर के छांव बर चंउरा में बैइठ के गोठियाथे नइ करे कोनों चांव चांव । होत बिहनिया कूकरा बासत सब झन ह उठ जाथे धरती दाई के पांव परके काम बूता में लग जाथे खेती किसानी नांगर बइला छोड़ के मय कहां जांव मोर सुघ्घर गवंई के गांव जेमें हाबे पीपर के छांव । नता रिसता के मया बोली सबला बने सुहाथे  तीज तिहार के बेरा में सबझन एके जगा सकलाथे सुघ्घर रीति रिवाज इंहा के "माटी" परत हे पांव मोर सुघ्घर गवंई के गांव जेमे हाबे पीपर के छांव । माटी के सेवा करे खातिर जांगर टोर कमाथे धरती दाई के सेवा करके धान पान उपजाथे बड़ मेहनती इंहा के किसान हे दुनिया में हे जेकर नांव मोर सुघ्घर गवंई के गांव जेमे हाबे पीपर के छांव । छत्तीसगढ़ के भाखा बोली सबला बने सुहाथे गुरतुर गुरतुर भाखा सुनके दुनिया मोहा जाथे बड़ सीधवा हे इंहा के मनखे जिंहा मया पिरीत के छांव मोर सुघ्घर गवंई के गांव जेमे हाबे पीपर के छांव 📝 Ⓜमहेन्द्र देवांगन "माटी"Ⓜ               बोरसी

मोर गांव कहां गंवागे

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मोर गांव कहां गंवागे ******************* मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो भाखा बोली सबो बदलगे, मया कहां में पावों काहनी किस्सा सबो नंदागे, पीपर पेड़ कटागे नइ सकलाये कोनों चंउरा में, कोयली घलो उड़ागे सुन्ना परगे लीम चंउरा ह, रात दिन खेलत जुंवा दारु मउहा पीके संगी, करत हे हुंवा हुंवा मोर अंतस के दुख पीरा ल, कोन ल मय बतावों मोर गांव कहां ....................... जवांरा भोजली महापरसाद के, रिसता ह नंदागे सुवारथ के संगवारी बनगे, मन में कपट समागे राम राम बोले बर छोड़ दीस, हाय हलो ह आगे टाटा बाय बाय हाथ हलावत, लइका स्कूल भागे मोर मया के भाखा बोली, कोन ल मय सुनावों मोर गांव कहां.............................. छानी परवा सबो नंदावत, सब घर छत ह बनगे बड़े बड़े अब महल अटारी, गांव में मोर तनगे नइहे मतलब एक दूसर से, शहरीपन ह आगे नइ चिनहे अब गांव के आदमी, दूसर सहीं लागे लोक लाज अऊ संसक्रिती ल, कइसे में बचावों मोर गांव कहां........................ धोती कुरता कोनों नइ पहिने, पहिने सूट सफारी छल कपट बेइमानी बाढ़गे, मारत हे लबारी पच पच थूंकत गुटका खाके, बाढ़त हे बिमारी छोटे

ए भुंइहा हे सरग बरोबर

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"ये भुइयाँ हे सरग बरोबर" ********************** ये भुइयाँ हे सरग बरोबर  चंदन कस जेकर माटी हे। जंगल झाड़ी परवत नदियाँ सब ह हमर थाती हे । हरियर हरियर लुगरा पहिने छत्तीसगढ़ महतारी हे। खेत खार अऊ देवी देवता हमर ये संगवारी हे । महानदी पैरी अऊ सोढू अमरित कस जेकर पानी हे। तीन लोक में महिमा जेकर गुरतुर हमर बानी हे । सुघ्घर बाग बगीचा जइसे खेत के हमर कियारी हे धान पान अऊ साग भाजी के सुंदर लगे फूलवारी हे । दया मया के थरहा जागे अइसन भाँटा बारी हे ये माटी ल माथ नवांवव एकर महिमा भारी हे।। *********************  रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" ( बोरसी - राजिम वाले ) गोपीबंद पारा पंडरिया जिला - कबीरधाम (छ. ग) पिन- 491559 मो.- 8602407353 Email -mahendradewanganmati@gmail.com *****************

नकल

नकल - महेन्द्र देवांगन माटी *********** कविता उपर सब कविता लिखत हे आघू पाछू कुछू नइ दिखत हे दूसर के रचना ल नकल करत हे अपन नाम चलाय बर सबो मरत हे । अपन विवेक से लिख के, दुनिया ल देखावव चोरी करके रचना ल, अपयस झन कमावव कवि बने चक्कर में, कतको कविता चोरावत हे दूसर के नाम ल मेटाके, अपन नाम लिखावत हे नकल करे बर अकल चाही, अकल से काम चलावव खुद मेहनत करके संगी, दुनिया में नाम कमावव। महेन्द्र देवांगन माटी mahendradewanganmati@gmail.com

वीर जवानों को नमन - महेन्द्र देवांगन माटी

वीर जवानों को नमन - ******************** है नमन उन वीरों को, जिसने की मान बढ़ाया है। देश में छुपे गद्दारों को, पल में मार गिराया है। बहुत हुआ आतंकी हमला, अब न होने देना है। अपने वीर शहीदों का अब, बदला हमको लेना है। है हिम्मत तो आगे आओ, छुपकर तुम क्यों लड़ते हो। बेकसुरों को मार रहे हो, आगे आने से डरते हो। कितनों भी अब चाल चलो तुम, नहीं कामयाबी पाओगे। अपने वीर जवानों के आगे, हरदम मुंह की खाओगे। अपनी जान की बाजी देकर, जिसने देश बचाया है। खून की होली खेलकर जिसने, रंग चमन में लाया है। गर्व करता है सारा देश, करते उसे सलाम हैं। ऐसे वीर सपूतों को, माटी का प्रणाम है। वंदे मातरम्  रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" (शिक्षक) (बोरसी - राजिम) गोपीबंद पारा पंडरिया जिला - कबीरधाम (छ. ग)