पितर ............................. जिंयत भरले सेवा नई करे,मरगे त खवावत हे | बरा सोंहारी रांध रांधके,पितर ल मनावत हे || अजब ढंग हे दुनिया के,समझ मे नइ आये| जतका समझेक कोशिश करबे,ओतकी मन फंस जाये || दाई ददा ह घिलर घिलरके,मांगत रिहिस पानी | बुढत काल मे बेटा ह, याद दिला दिस नानी|| दाई ददा ह मरगे तब, आंसू ल बोहावत हे बरा सोंहारी............ एक मुठा खाय ल नइ देवे,देवे वोला गारी | बेटा होके बापके,करे निंदाचारी || वोकरे कमई के राज म बइठे बइठे खावत हे| भुलागे सब एहसान ल,गुण ल तक नई गावत हे || मरगे बाप ह तब ,मांदी ल खवावत हे बरा सोंहारी........... बड़े बिहनिया सुत उठके,तरिया मे जाथे| आत्मा ओकर शांति मिले,पानी देके आथे|| कांव कांव करके कौआ ह,बरेण्डी मे आथे | दाई ददा ह आगे कहिके,बरा ल खवाथे मरगे दाई ददा तब,आनी बानी के खवावत हे बरा सोंहारी........... पहिली ले सेवा करतेयस,मिलतीस तोला सुख | कांही बातके जिनगी म,नइ होतिस तोला दुख देखा सीखी तोरा बेटा करही तोला वोइसने देही दुख तंहू ल,करे हस ते जइसने समय ह निकलगे तब पाछू बर पछतावत हे बरा सोंहारी.... जिंयत भरले............