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Showing posts from August, 2016

जय गनेस देवा

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जय गनेस देवा ********************* हिन्दू धरम में कोई भी काम करथे त सबसे पहिली गनेस जी के पूजा करे जाथे । गनेस जी ह मंगलकारी अऊ विघ्नहर्ता देवता हरे ।            भादो महिना में चतुरथी से ले के चतुरदसी तक माने दस दिन तक पूरा भारत भर में गनेस उत्सव के रुप में मनाय जाथे । भादो महिना के अंजोरी पांख के चतुरथी के दिन गनेस जी के पूजा पाठ करके स्थापना करे जाथे। पूरा दस दिन तक धूमधाम से पूजा करे जाथे । आजकाल पूरा पंडाल ल विसेस रुप से सजाय जाथे अऊ कई परकार के कारयकरम भी रखे जाथे । गनेस भगवान ह हिन्दू मन के अराध्य देव हरे । कोई भी काम करे के पहिली एकरे पूजा करे जाथे । शिव पुराण में एक कथा आथे कि एक दिन माता पारवती ह अपन सरीर के मइल ल निकाल के एक बालक बनाइस ओकर नाम ओहा गनेस रखिस। जब माता पारवती ह नहाय बर गिस त गनेस जी ल पहरेदारी करे बर दरवाजा में खड़ा कर दिस अऊ बोलीस के मोर नहात ले कोनो ल भी भीतर खुसरन मत देबे । त गनेस जी ह दरवाजा में खड़े राहे । थोकिन बाद में संकर जी ह आ गे अऊ भीतरी डाहर खुसरे ल धरीस , त गनेस जी ह वोला रोक दीस । गनेस जी बोलीस के तेंहा अभी अंदर नइ जा सकस । तब गनेस जी अऊ संकर ज

पोरा तिहार

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चल पोरा तिहार मनाबोन, ठेठरी खुरमी अऊ चीला बनाबोन । नंदिया बइला में चढाबोन, सिल्ली लगा के दऊड़ाबोन। चुकी पोरा ल सजाबोन, जांता ल चलाबोन। देवी देवता ल मनाबोन, चल पोरा तिहार मनाबोन । पोरा तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई महेन्द्र देवांगन माटी

तीजा पोरा

तीजा पोरा ************* तीजा पोरा आत हे, एती भाटों के करलई देखे नइ जात हे। दीदी ह मने मन में हांसत हे , भाटों ह जाग जाग के खांसत हे । दीदी ह अपन कपड़ा लत्ता ल जोरत हे , भाटों ह मने मन में रोवत हे । दीदी ह फोन कर करके बलावत हे , भाटों के जीव ल अऊ जलावत हे । दीदी ह जाय के जोरा करत हे , एती भाटों के नींद नइ परत हे । तीजा पोरा आत हे एती भाटों के करलई देखे नइ जात हे। दीदी ह मइके में तेलई बइठे हे , एती भाटों ह भूख के मारे अइठे हे । एक बेर के रांधे ल , भाटों दू बेर खावत हे , ओती दीदी ह घेरी बेरी लोटा धरके जावत हे । एती भाटों के पेट ह सप सप करत हे , ओती दीदी ह बरा सोंहारी खाके फस फस करत हे । रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" (बोरसी - राजिम वाले ) 9993243141

अपना समाज

अपना समाज ************* अलग अलग है जाति सबका अलग अलग है काम । मिलजुल कर रहते हैं सभी तभी तो बनता है समाज । भेदभाव नहीं करते कभी सबका सहयोग करते हैं । जो भी संकट आये किसी पर सब मिलकर हल करते हैं । चौरासी जाति के बंधु मिलकर एक अथाह समाज बनाये हैं । है कुशल विद्वान यहाँ पर मोती ढूँढ कर लाये हैं । मिलते है जब एक जगह सागर सा दिखाई देता हैं । रखते है विचार यहां सब भाव अपनापन का होता है । है अपना उद्देश्य एक ही आगे सबको बढ़ाना हैं । न हो कोई समाज मे पीछे जन जन में जागृति लाना हैं ।। महेन्द्र देवांगन "माटी"