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Showing posts from February, 2016

माघी पुन्नी के मेला

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मेला ******** जगा जगा भराय हाबे, माघी पुन्नी के मेला कोनों जावत जोड़ी जांवर, कोनों जावत अकेला कोनों जावत मोटर गाड़ी, कोनों फटफटी में जावत हे कोनों रेंगत भुसरुंग भुसरुंग, कोनों गाना गावत हे हाबे संगी अब्बड़ भीड़, होवत रेलम पेला जगा जगा भराय हाबे, माघी पुन्नी के मेला लगे हाबे मीना बजार, होवत खेल तमासा जगा जगा बेंचावत हाबे, मुररा लाई बतासा डोकरी दाई खावत हाबे, बइठ के केरा अकेला जगा जगा भराय हाबे, माघी पुन्नी के मेला महेन्द्र देवांगन "माटी" बोरसी - राजिम वाले 8602407353

नौकरी के आस

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योग करो

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योग करो भई योग करो सुबे शाम सब योग करो मिल जुल के सब लोग करो ताज़ा हवा के भोग करो  योग करो भई योग करो  ।। जल्दी उठ के दंउड लगाओ आगे पीछे हाथ घुमाओ कसरत अऊ दंड बैठक लगाओ शरीर ल निरोग बनाओ  प्राणायाम अऊ ध्यान करो योग करो भई योग करो ।। सुबे शाम सब घुमे ल जाओ शुद्ध हवा ल रोज के पाओ ताजा ताजा फल ल खाओ शरीर ल मजबूत बनाओ नियम संयम के पालन करो योग करो भई योग करो ।। जेहा करथे रोज के योग वोला नई होवे कुछु रोग उमर ओकर बढ़ जाथे हंसी खुशी से दिन बिताथे रोज हांस के जीये करो योग करो भई योग करो ।। रात दिन के चिंता छोड़ योग से अपन नाता जोड़ नशा पानी ल तेहा छोड़  बात मान ले तेहा मोर लइका सियान सब झन करो योग करो भई योग करो ।। योग करो भई योग करो सुबे शाम सब योग करो ..................... ----------------------------------------- रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" बोरसी - राजिम ( छ. ग.) 8602407353

अच्छे स्वास्थ्य

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अच्छे स्वास्थ्य *************** अगर रहना चाहते हो स्वस्थ, आसपास को रखो स्वच्छ मैला कुचैला पास न फेंको, आजू बाजू सबको देखो भोजन पानी ढककर रखो, बासी खाना कभी न चखो ताजा ताजा सब्जी लाओ, हाथ मुंह को धोकर खाओ गंदे पानी कभी न पीओ, फिर तो हजारों साल तक जीओ गांव गली को रखो साफ, रहे स्वस्थ बच्चे मां बाप मक्खी मच्छर का न हो पड़ाव, करते रहो डी डी टी का छिड़काव चारों तरफ हो स्वच्छ परिवेश, भागे बिमारी मिटे क्लेश आसपास में पेड़ लगाओ, शुद्ध ताजा हवा पाओ अच्छे स्वास्थ्य की यही कहानी, सात्विक जीवन निर्मल पानी। महेन्द्र देवांगन माटी 8602407353

मोर छोटकन गांव

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चिड़िया

मेरे घर के आँगन में आती है चिड़िया चींव चींव रोज चिल्लाती है चिड़िया                             फुदक फुदक कर रोज नहाती है चिड़िया बड़े मजे से दाना खाती है चिड़िया                                  क्या आपके आँगन मेंआती है चिड़िया ? प्रिया देवांगन

चिड़िया

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मेरे घर के आँगन में आती है चिड़िया चींव चींव रोज चिल्लाती है चिड़िया                             फुदक फुदक कर रोज नहाती है चिड़िया बड़े मजे से दाना खाती है चिड़िया                                  क्या आपके आँगन मेंआती है चिड़िया ?  प्रिया देवांगन

अपना तिरंगा

अपना तिरंगा ******************** सबसे प्यारा अपना तिरंगा सबसे न्यारा अपना तिरंगा तीन रंगों का बना तिरंगा जन ,गण का सम्मान तिरंगा । वीरो की है शान तिरंगा भारत की पहचान तिरंगा दुनिया में है मान तिरंगा देशभक्तों की जान तिरंगा । त्याग की पहचान तिरंगा शांति की आवाम तिरंगा सदा लहराता अपना तिरंगा करते सदा सम्मान तिरंगा ।। *********************   रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" (बोरसी - राजिम) गोपीबंद पारा पंडरिया जिला - कबीरधाम (छ. ग)

सपना

सपना *********** कुहू कुहू कोयल ह , बगीचा में बोलत हे रहि रहि के मोरो मन, पाना कस डोलत हे जोहत हाबों रसता , आही कहिके तोला तोर बिना सुन्ना लागे , गली खोर मोला अन्न पानी सुहाये नही , तोर सुरता के मारे सुध मोर भुला जाथे , ते का मोहनी डारे सपना में आके तेंहा , मोला काबर जगाथस आंखी ह खुलथे त , काबर भाग जाथस । आना मयारू तेहा , तोर संग गोठियाबो हिरदय के बात ल , दूनो कोई बताबो ।

मोर गवंई गांव

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मोर गंवई गांव ********************** मोर सुघ्घर गंवई के गांव जेमे हाबे पीपर के छांव बर चंउरा में बैइठ के गोठियाथे नइ करे कोनों चांव चांव । होत बिहनिया कूकरा बासत सब झन ह उठ जाथे धरती दाई के पांव परके काम बूता में लग जाथे खेती किसानी नांगर बइला छोड़ के मय कहां जांव मोर सुघ्घर गवंई के गांव जेमें हाबे पीपर के छांव । नता रिसता के मया बोली सबला बने सुहाथे  तीज तिहार के बेरा में सबझन एके जगा सकलाथे सुघ्घर रीति रिवाज इंहा के "माटी" परत हे पांव मोर सुघ्घर गवंई के गांव जेमे हाबे पीपर के छांव । माटी के सेवा करे खातिर जांगर टोर कमाथे धरती दाई के सेवा करके धान पान उपजाथे बड़ मेहनती इंहा के किसान हे दुनिया में हे जेकर नांव मोर सुघ्घर गवंई के गांव जेमे हाबे पीपर के छांव । छत्तीसगढ़ के भाखा बोली सबला बने सुहाथे गुरतुर गुरतुर भाखा सुनके दुनिया मोहा जाथे बड़ सीधवा हे इंहा के मनखे जिंहा मया पिरीत के छांव मोर सुघ्घर गवंई के गांव जेमे हाबे पीपर के छांव 📝 Ⓜमहेन्द्र देवांगन "माटी"Ⓜ               बोरसी

मोर गांव कहां गंवागे

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मोर गांव कहां गंवागे ******************* मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो भाखा बोली सबो बदलगे, मया कहां में पावों काहनी किस्सा सबो नंदागे, पीपर पेड़ कटागे नइ सकलाये कोनों चंउरा में, कोयली घलो उड़ागे सुन्ना परगे लीम चंउरा ह, रात दिन खेलत जुंवा दारु मउहा पीके संगी, करत हे हुंवा हुंवा मोर अंतस के दुख पीरा ल, कोन ल मय बतावों मोर गांव कहां ....................... जवांरा भोजली महापरसाद के, रिसता ह नंदागे सुवारथ के संगवारी बनगे, मन में कपट समागे राम राम बोले बर छोड़ दीस, हाय हलो ह आगे टाटा बाय बाय हाथ हलावत, लइका स्कूल भागे मोर मया के भाखा बोली, कोन ल मय सुनावों मोर गांव कहां.............................. छानी परवा सबो नंदावत, सब घर छत ह बनगे बड़े बड़े अब महल अटारी, गांव में मोर तनगे नइहे मतलब एक दूसर से, शहरीपन ह आगे नइ चिनहे अब गांव के आदमी, दूसर सहीं लागे लोक लाज अऊ संसक्रिती ल, कइसे में बचावों मोर गांव कहां........................ धोती कुरता कोनों नइ पहिने, पहिने सूट सफारी छल कपट बेइमानी बाढ़गे, मारत हे लबारी पच पच थूंकत गुटका खाके, बाढ़त हे बिमारी छोटे