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पानी बरसा दे

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पानी बरसा दे तोर अगोरा हावय बादर , सबझन देखत रस्ता । कब आबे अब तिही बता दे , हालत होगे खस्ता ।। धान पान सब बोंयें हावय , खेत म नइहे पानी । कोठी डोली सुन्ना परगे , चलय कहाँ जिनगानी ।। बादर आथे उमड़ घुमड़ के , फेर कहाँ चल देथे । आस जगाथे मन के भीतर,  जिवरा ला ले लेथे ।। माथा धर के सबझन रोवय , कइसे करे किसानी । सुक्खा हावय खेत खार हा , नइहे धान निशानी ।। किरपा करहू इन्द्र देव जी  , जादा झन तरसावव । विनती हावय हाथ जोड़ के , पानी ला बरसावव ।। सौंधी सौंधी खुशबू हा जब , ये माटी ले आही । माटी के खुशबू ला पा के , माटी खुश हो जाही ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम      छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

शोभन छंद

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(1) आज बदलत हे जमाना  , देख ओकर चाल । बात ला माने नहीं अउ , ठाड़ राखय बाल ।। बाप हा बरजत रथे गा , मान तैंहर बात । मारथे टूरा फुटानी , गुन कभू नइ गात ।। (2) पेड़ पौधा ला लगाके , छाँव सुघ्घर पाव । फूल फर मिलही सबो ला , बाँट के सब खाव ।। गाँव आही आदमी मन , देख के खुश होय । जागही अब भाग सबके , बीज ला जब बोय ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati विधान  -- शोभन छंद 14 + 10 = 24 मात्रा 3 , 10 , 17 , 21 , 24 मात्रा लघु लाललाला  लाललाला, लाल लाल ललाल 2122        2122 ,  21  21  121

शंकर छंद

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(1) आजकाल के लइका मन हा , मानय नहीं बात । घूम घूम के खावत रहिथे , मेछा ल अटियात ।। धरे हाथ मा मोबाइल ला , चलावत हे नेट । कोनों चिल्लावय बाहिर ले , खोलय नहीं गेट ।। ************************************ (2) तीपे हावय भुइयाँ अब्बड़  , जरय चटचट पाँव । सुरताये बर खोजे सबझन , दिखत नइहे छाँव ।। एसो गरमी बाढ़े हावय , चलत अब्बड़ झाँझ । निकलत नइहे घर ले कोनों , सबो घूमय साँझ ।। ************************************ (3) पेड़ सबो कट गेहे संगी , मिलत नइहे छाँव । भटकत हावय जीव जंतु सब , कहाँ मिलही ठाँव ।। नवतप्पा के गरमी भारी , जरत हावय पाँव । मुश्किल होगे निकले बर जी , गाँव कइसे जाँव ।। ***************************************** (4) तोर शरण मा आवँव मइया , मोर रखले लाज । गलती झन होवय काँही वो ,बनय बिगड़े काज ।। सुमिरन करके तोरे माता , लिखँव मँय मतिमंद । कंठ बिराजो शारद मइया , रोज गावँव छंद । ***************************************** (5) गरजत हावय बादर संगी , घटा हे घनघोर । रहि रहि अब्बड़ बिजुरी चमके , ह्दय काँपे मोर ।। रापा कुदरी सकला करके , चलव खेती खार । आय किसानी के दिन

आया नया जमाना

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आया नया जमाना सोते उठते दिन भर देखो , बच्चे गाये गाना । यू ट्यूब और टीक टाक का , आया नया जमाना ।। रहे मस्त मोबाइल में सब , पढ़ना लिखना भूले । इयर फोन को कान लगाकर , हौले हौले झूले ।। वाटसाप में बातें करते  , पिकनिक में हैं जाना । यू ट्यूब और टीक टाक का , आया नया जमाना ।। सर्च करे गूगल में जाकर , कौन कहाँ हैं रहते । खोज निकाले सभी चीज को , नहीं किसी से डरते ।। छूट रहे सब रिश्ते नाते  , नानी के घर जाना । यू टयूब और टीक टाक का , आया नया जमाना ।। गेम खेलते मोबाइल से  , मैदानों को छोड़े । तरह तरह के गेम खेलकर  , माथा अपना फोड़े ।। बात न माने बच्चे अब तो , करे बहुत मनमाना । यू ट्यूब और टीक टाक का , आया नया जमाना ।। छोटे छोटे बच्चे देखो , मोबाइल के आदी । पड़े प्रभाव नसों पर प्यारे  , होते हैं बरबादी ।। दूर रखो बच्चों को इससे  , पीढ़ी नई बचाना । यू ट्यूब और टीक टाक का , आया नया जमाना ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी  (शिक्षक) पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

प्यासी मोहब्बत

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प्यासी मोहब्बत  दिल का हाल समझ ना पाये , मैं तो निर्बल दासी हूँ । नदी किनारे रहकर भी मैं  , देखो कितनी प्यासी हूँ  ।। जिसे समझ कर अपना माना , साथ वही तो छोड़ गए । कसमें खाई रहने की जो , मुँह वो अपना मोड़ गए ।। पड़े अकेले ताँक रही हूँ  , अब केवल वनवासी हूँ । नदी किनारे रहकर भी मैं  , देखो कितनी प्यासी हूँ ।। सूखी लकड़ी जैसी काया , कुछ ना अब तो भाता है । किसे बताऊँ हाल चाल अब , केवल रोना आता है ।। भूल गई सब सुध बुध अपना  , अब केवल आभासी हूँ । नदी किनारे रहकर भी मैं  , देखो कितनी प्यासी हूँ ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

तेरी अदाएँ

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तेरी अदाएँ काली काली जुल्फों को क्यूँ  , नागिन सी लहराती हो । चंचल नयना शोख अदाएँ , क्यों हरदम इठलाती हो । । लाल गुलाबी होंठ शराबी , देख नशा चढ जाता है । फूलों सी खुशबू को पाकर,  भौरा गाने गाता है ।। कली गुलाब सी कोमल काया , धूप लगे मुरझाती हो । चंचल नयना शोखअदाएँ , क्यों हरदम इठलाती हो ।। पाँवो की पायल से तेरी, धुन  संगीत  निकलता है । सुन आवाजें ताल मारकर , आशिक रोज थिरकता है ।। कोयल जैसी कंठ तुम्हारे  , गीत मधुर तुम गाती हो । चंचल नयना शोखअदाएँ , क्यों हरदम इठलाती हो ।। माथे की बिन्दी यूँ चमके , जैसे चाँद सितारे हों । दाँत तुम्हारे चमके ऐसे  , ज्यों मोती की हारें हों ।। भर भर कंगन पहन हाथ में  ,चूड़ी क्यों खनकाती हो । चंचल नयना शोख अदाएँ  , क्यों हरदम इठलाती हो ।। परियों की रानी लगती हो , सबका मन हर लेती है । नैनों से तुम बाण चलाकर , घायल सब कर देती है ।। घोर घटा छा जाती है जब , जुल्फों को लहराती हो । चंचल नयना शोख अदाएँ  , क्यों हरदम इठलाती हो ।। चंचल चितवन मस्त अदाएँ  ,  क्या जादू कर जाती हो । देख तुझे सब आहें भरते , दिल को क्यों तड़पाती हो ।। चाँद निकल

सुरता

लइकापन के सुरता लइकापन के आथे  सुरता । पहिरे राहन चिरहा कुरता ।। गुल्ली डंडा अब्बड़ खेलन । भौंरा बाँटी सबझन लेवन ।। रेस टीप अउ छू छूवउला । घर घुँदिया अउ चुरी पकउला ।।  खो खो फुगड़ी खेल कबड्डी । लड़ई झगरा मिट्ठी खड्डी ।। आमा अमली तेंदू खावन । सरी मँझनिया घुमेल जावन ।। बइला गाड़ी दँउरी फाँदन । उलान बाँटी अब्बड़ खावन ।। संझा बेरा सब सकलावन । मिल के सबझन गाना गावन ।। कथा कहानी बबा सुनाये । किसम किसम के बात बताये ।। अब तो संगी सबो नँदागे ।  मोबाइल मा सबो फँदागे ।। खुसरे हावय घर के कुरिया । बइठे सबझन धुरिहा धुरिहा ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़