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पेड़ लगाओ

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पेड़ लगाओ आओ मिलकर पेड़ लगायें, सबको मिलेगी छाँव । हरी-भरी हो जाये धरती,  मस्त दिखेगा गाँव ।।1।। पेड़ों से मिलती हैं लकड़ी , सबके आती काम । जो बोते हैं बीज उसी का, चलता हरदम नाम ।।2।। सुबह शाम तुम पानी डालो , इतना कर उपकार । गाय बैल से उसे बचाओ , बनकर पहरेदार ।।3।। आओ मिलकर पेड़ लगायें,  सबको मिलेगी  छाँव । हरी-भरी हो जाये धरती, मस्त दिखेगा गाँव ।। 4।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ mahendradewanganmati@gmail.com सरसी छंद मात्रा- --- 16 +11 = 27 पदांत -- गुरु लघु

आबे हमर गाँव

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आबे हमर गाँव  (सरसी छन्द ) आबे तैंहर गाँव हमर जी, बर पीपर के छाँव । देखत रइहूँ रस्ता तोरे, माटी मोरे नाँव ।। चारों कोती हरियर हरियर , हावय खेती खार । गाय चरावत रहिथे भोला , बइठे तरिया पार ।। बारी बखरी बोंथय सबझन,  लामे रहिथे नार । रहिथे सुघ्घर हिलमिल के सब , जुड़े मया के तार ।। पहुना आथे घर मा कोनों,  कँउवा करथे काँव । सबला सकला करके दाई,  बइठे परछी छाँव ।। लोटा मा जी पानी दे के,  पहुना पाँव पखार । मान गउन सब करथे ओकर, हिरदय मया अपार ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati मात्रा  --- 16 + 11 = 27 सम चरण के आखिर मा बड़कू लघु  (गुरु लघु ) 2 , 1 होना चाहिए ।

सरसी छन्द

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सरसी छन्द  ( महेन्द्र देवांगन माटी ) (1) वीणा वाली हंस सवारी , सुन ले मोर पुकार । तोर शरण मा आये हाँवव  , मोला  तैंहर तार । मँय अज्ञानी बालक माता,  नइहे मोला ज्ञान । आ के  कंठ बिराजो दाई , अपने लइका जान। तोर दया से कोंदा बोलय,  राग छतीसो गाय । महिमा तोर अपार हवय माँ, कोई पार न  पाय । (2) भेद करव झन बेटी बेटा , दूनों एक समान । होथे दूनों कुल के दीपक, येला तैंहर जान ।। पढ़ा लिखा दे बेटी ला तँय , बोझा झन तैं मान । पढ़ही लिखही आघू बढ़ही , जग मा होही गान ।। कमती झन आँकव बेटी ला , बढ़ के हावय आज । अपन मूँड़ मा पागा बाँधे , करत हवय जी राज ।। (3) रिमझिम रिमझिम बरसे पानी,  दादुर गावय फाग । उचक उचक के मछरी घोंघी , झोंकत हावय राग ।। डबरी डबरा सब्बो भर गे , छलकत तरिया पार । नदियाँ नरवा उर्रा पुर्रा , बोहावत हे धार ।। गाँव गली मा पानी भरगे, भरगे खेती खार । चारों कोती पानी पानी, माचय हाहाकार ।। सावन महिना आ गे भोला , सुनले हमर पुकार । प्राण बचा दे अब तो तैंहर, विनती बारंबार ।। (4) मोहन नाचय राधा सँग मा , बृज मा रास रचाय । मुरली वाले नटवर नागर , अब्बड़ नाच नचाय ।। बंशी के

पर्यावरण बचाव

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पर्यावरण बचाव (सरसी छन्द ) महेन्द्र देवांगन माटी काटव झन अब जंगल झाड़ी, सबझन पेड़ लगाव । बाढ़त हवय प्रदूषण  संगी , पर्यावरण बचाव ।। मिलथे हमला जंगल ले जी, लकड़ी फर अउ फूल । किसम - किसम के दवई मिलथे, येला तैं झन भूल ।। शुद्ध हवा ला देथे जंगल  , येकर गुण ला गाव । बाढ़त हवय प्रदूषण संगी , पर्यावरण बचाव ।। कट जाही जब जम्मो रुखवा , कइसे बचही जान । तड़प - तड़प के मछरी जइसे, छूट जही जी प्राण ।। जान बूझ के झन काटव जी,  बिगड़ी सबे बनाव । बाढ़त हवय प्रदूषण ............................ माटी के तै बात मान ले , रुखवा ला झन काट । अपन सुवारथ के सेती तैं , धरती ला झन बाँट ।। सबके प्राण बचाथे जंगल  , आगी ल झन लगाव । बाढ़त हवय प्रदूषण संगी , पर्यावरण बचाव ।। महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 @Mahendra Dewangan Mati मात्रा  -- 16 , 11 = 27 विषम चरण मा 16 मात्रा अउ सम चरण मा 11 मात्रा । सम चरण के आखिर मा बड़कू नान्हे  ( 2 ,1 ) होना चाहिए । जय छत्तीसगढ़