गुरु (दोहे )
गुरु गुरू बिना मिलथे कहाँ, कोनों ला जी ज्ञान । कर ले कतको जाप तैं , चाहे देदव जान ।।1।। नाम गुरू के जाप कर , तैंहा बारम्बार । मिलही रस्ता ज्ञान के , होही बेड़ापार ।।2।। छोड़व झन अब हाथ ला , रस्ता गुरु देखाय । दूर करय अँधियार ला , अंतस दिया जलाय ।।3।। सेवा करले प्रेम से , एहर जस के काम । गुरु देही आशीष तब , होही जग मा नाम ।।4।। पारस जइसे होत हे , सदगुरु के सब ज्ञान । लोहा सोना बन जथे , देथे जेहा ध्यान ।।5।। देथे शिक्षा एक सँग, गुरुजी बाँटय ज्ञान । कोनों कंचन होत हे , कोनों काँच समान ।।6।। सत मारग मा रेंग के , बाँटव सब ला ज्ञान । गुरू कृपा ले हो जथे , मूरख भी विद्वान ।।7।। शिक्षक के आदर करव , पूजव सबो समाज । राह बताथे ज्ञान के , तब होथे सब काज ।।8।। शिक्षा जेहा देत हे , वोहर गुरू समान । माथ नवावँव पाँव मा , असली गुरु तैं जान ।।9।। आखर आखर जोड़ के , बाँटय सब ला ज्ञान । मूरख बनय सुजान जी , अइसन गुरू महान ।।10।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @