छप्पय छंद
छप्पय छंद ***************************** (1) आ गे कातिक मास , जाड़ हा अब्बड़ लागे । ओढ़े सेटर शाल , तभे अब जाड़ा भागे । किट किट बाजे दाँत, घाम हा बने सुहाये । काँपत हावय हाथ , बबा हा गाना गाये । भुररी बारय रोज के, लकड़ी पैरा खोज के । सेंकत हावय हाथ ला , सहलावत हे माथ ला।। *********************************** (2) दाई कलपय आज, बात बेटा नइ मानय । मरधे भूख पियास , तभो पीरा नइ जानय । बेटा खावय रोज, बहू सँग आनी बानी । दाई ला तो देय , छोटकुन चटनी चानी । मानय नइ जे बात ला , वोहर खाथे लात ला । सबला अपने मान ले , दुख पीरा ला जान ले ।। **************************************** (3) आथे अब तो रोज, गाँव में भाजी पाला । जाथे हाट बजार , छाँट के लेथे लाला । राँधे भूँज बघार , विटामिन रहिथे भारी । खाथे जेहा रोज , होय नइ कभू बिमारी । खावव भाजी रोज के, बारी बखरी खोज के । दाई देथे बाँट के , खाथे सबझन चाट के ।। *************************************** (4) झन कर तैं अभिमान, प्रेम से नाम कमा ले । काया माटी जान , राम के गुण ला गा ले । जिनगी के दिन चार , संग मा कछु नइ जाये । जाबे खाल