बरवै छन्द
बरवै छन्द (1) जंगल झाड़ी कटगे , लागय घाम । छँइहा के तो संगी , नइहे नाम । पेड़ लगावव भैया , मिलही छाँव । हरियर दिखही भुँइया , होही नाँव । (2) पानी लानव संगी , बढ़िया छान । गंदा ला झन पीयो , लेव उबाल । मटकी राखव बढ़िया, वोला ढाँक । घेरी बेरी सब झन , देखव झाँक । (3) तुलसी पूजा कर ले , पानी डार । आशीरवाद ले ले , दीया बार । तुलसी पत्ती खा ले , बिहना शाम । खाँसी जुड़ मिट जाथे, मिलय अराम । (4) करिया करिया हाबे , नयना तोर । सुध बुध ला हर लेथे , गोरी मोर । देखत रहिथों सपना, मँय दिन रात । एक बार तैं आ जा , कर ले बात । (5) फेंकव झन गा पानी, सबो बचाव । भर ले खाली मटकी, झन बोहाव । पानी बिना अधूरा, हे संसार । जुड़े हवय जिनगी के, जम्मो तार । (6) बोंवय बखरी बारी , लामे नार । गरुवा गाय बचाये, घेरे तार । निकले भांटा सेमी , बेंच बजार । मन मा खुशी समाये , पाय हजार । (7) हावय औघड़ दानी , भोले नाथ । करथे जेहा पूजा, रहिथे साथ । जोत जला ले तैंहा , दिल से मान । माँगे ले जी देथे, सब वरदान । (8) छा गे बादर संगी , अब घनघोर । चमके चमचम बिजुरी , नाचय मोर । गिरय झ