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मकर संक्रांति मनाबो

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मकर संक्रांति तिल गुड़ के लाड़ू ला , मया बाँध के खाबो । आवव संगी जुर मिल के , मकर संक्रांति मनाबो ।। दक्षिण में हे सूरज हा , उत्तर में  अब जाही । पूस के जाड़ा अब्बड़ हाबे , वहू अब भगाही ।। आनी बानी रंग रंग के,  पतंग घलो उड़ाबो । आवव संगी जुर मिल के , मकर संक्रांति मनाबो ।। सुत उठ के बिहनिया ले , नदियाँ नहाय बर जाबो । दीन दुखी ला दान करके , देवता दर्शन पाबो ।। मकर रेखा में जाही सूरज  , दिन हा बाढ़त जाही । आवत हावय पूस पुन्नी हा , छेरछेरा घलो ह आही ।। तिल गुड़ के बंधना कस , सबो समाज बंधाबो । आवव संगी जुर मिल के , मकर संक्रांति मनाबो ।। महेन्द्र देवांगन माटी ( बोरसी - राजिम) 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

नवा साल

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नवा साल धरे हवय मुरगा मटन , बोतल ल हलावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । वाह रे टेसिया टूरा , गली मा मटमटावत हे । चुँदी हावय कुकरी पाँख , हनी सिंह जइसे कटवावत हे । सबो संगवारी मिल के , पिकनिक में जावत हे । घोण्डे हावय सूरा सही  , नवा साल मनावत हे । नशा पान के आदी हावय , गुटखा तंबाखू खावत हे । नाचत हावय डी जे में  , रंग रंग के गाना गावत हे । लाज शरम तो बेचा गेहे , कनिहा ला मटकावत हे । नाक तो पहिली ले कटा गेहे , अब कान ला छेदावत हे । भट्टी डाहर चुप्पे जा के , लाइन ला लगावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । यहा का जमाना आ गे , बबा हा खिसियावत हे । टूरा मन हा बात नइ माने , बोतल ला हलावत हे । धरे हे मोबाइल ला , रंग रंग के गोठियावत हे । टूरी टूरा हाथ धर के , कनिहा ला मटकावत हे । अपन संस्कृति ला भुला के , विदेशी ला अपनावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । नशा पान ला छोड़ंव संगी , सादा जीवन बीतावव । छोड़ विदेशी रिवाज ला , अपन संस्कृति अपनावव । अंग्रेजी साल छोड़ के , हिन्दू नव वर्ष मनावव । इंहा के रीति रिवाज ला , दुनिया में बगरावव

हाय रे मोर गोंदा फूल

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हाय रे मोर गोंदा फूल  हाय रे मोर गोंदा फूल , आँखी आँखी तैंहा झूल । चुकचुक ले दिखथस तैंहा , कइसे जाहूँ तोला भूल ।। मोहनी कस रुप हे तोर , लेथस तैंहा जीव ला मोर । का जादू तैं डारे हावस , आथँव मँय हा तोरेच ओर ।। अबड़ ममहाथस महर महर , दिखथस तैंहा चारो डहर । आजकाल हे तोरे लहर , बरसाथस तैं अबड़ कहर ।। लागय झन अब तोला नजर,  हाँसत रहिथस बड़े फजर । छोड़बे झन तैं आधा डगर , बन जा तैंहा मोर गजल ।। हाय रे मोर गोंदा फूल , ............................... महेन्द्र देवांगन माटी  पंडरिया  ( कवर्धा)  छत्तीसगढ़  mahendradewanganmati@gmail.com

मनखे मनखे एक

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मनखे मनखे एक सत्य नाम के अलख जगा के , बाबा जी हा आइस । गाँव नगर मा घूम घूम के , झंडा ला फहराइस ।। मनखे मनखे एक हरे जी , भेदभाव झन मानव । सबके एके लहू हवय जी , एला सबझन जानव ।। दया करव सब जीव जन्तु मा , कोनों ला झन मारव । पाप करव झन जान बूझ के , आँखी अपन उघारव ।। बाबा जी के संदेशा ला  ,    घर घर मा पहुचावव । जैत खाम के पूजा करलव , सेत धजा फहरावव ।। सादा जीवन उच्च विचार ल , जे मनखे अपनाइस । जीवन ओकर तरगे संगी , कभू दरद नइ पाइस ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353

जाड़ लागत हे

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जाड़ लागत हे रिमझिम रिमझिम बिहनिया ले , गिरत हावय पानी । कुड़कुड़ कुड़कुड़ जाड़ लागत , याद आ गे नानी । हाथ गोड़ जुड़ा गेहे , तापत हावन आगी । सांय सांय धुंका चलत , का बतावँव रागी । चुनुन चुनुन चुल्हा में,  भजिया ल बनावत हे । गरमे गरम भजिया , लइका ल खवावत हे । चुल्हा तीरन बइठ के , हाथ गोड़ सेंकत हन । बइठे बइठे टी वी मा , शपथ ग्रहण देखत हन । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

असली रावण मारो

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असली रावण मारो गली गली रावण घूमत हे , ओकर भुररी बारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण मारो ।। रोज करत हे अत्याचारी , आँखी ला देखाथे । करथे दादागीरी अब्बड़ , तलवार ला उठाथे ।। हिम्मत करके आघू आवव , मिलके सब ललकारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण मारो ।। जुंवा चित्ती सटटा मटका , रोज अबड़ खेलाथे । गाँव गाँव मा दारु बेंच के , पइसा अबड़ कमाथे ।। दिखत हवय गा साव बरोबर , आँखी अपन उघारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण मारो ।। बेटी माई हरण करत हे , इज्जत रोज लूटथे । पर के सुख ला देख नइ सकय , ओकर आँख फूटथे ।। अइसन पापी रावण मन ला , आगी मा अब डारो । नकली रावण छोड़ो संगी , असली रावण  मारो ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati 19/10/2018

आज के नेता

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आज के नेता  ( उल्लाला छंद) नेता हावय आज के  , कौड़ी ना हे काज के । माँगय पइसा रोज के  , जेब मा धरथे बोज के ।।1।। खावत रहिथे पान ला , खजवावत हे कान ला । मुंहू दिखथे लाल जी  , करिया करिया बाल जी ।।2।। सादा सादा भेष हे , मारत अब्बड़ टेस हे । मन मा हावय पाप जी  , देखावा सब जाप जी ।।3।। माँगय सबकर वोट जी  , बाँटय सब ला नोट जी । जोड़त हावय हाथ ला , नइ छोड़व मँय साथ ला ।।4।। जाथे जीत चुनाव जी , ताहन भजिया खाव जी । नइ देखे वो गाँव ला , राखे नइ गा पाँव ला ।।5।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ mahendradewanganmati@gmail.com उल्लाला छंद 13 + 13 = 26 मात्रा

राखी के तिहार

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राखी के तिहार (महेन्द्र देवांगन माटी ) सावन के पावन महीना में, आइस राखी तिहार । राखी के बंधन में हावय , भाई बहन के प्यार । सजे हावय दुकान में,  आनी बानी के राखी । कोन ला लेवँव कोन ला छोंड़व , नाचत हावय आँखी । छांट छांट के बहिनी मन , राखी ला लेवत हे । किसम किसम के मिठाई ले के , पइसा ला देवत हे । भैया के कलाई में,  राखी ला बांधत हे । रक्षा करे के वचन,  भाई से मांगत हे । भाई बहिन के पवित्र प्रेम,  सबले हावय प्यारा । हमर देश के संस्कृति,  सबले हावय न्यारा । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

मिलके सबझन लड़बो

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आज लेवत हन हम प्रतिज्ञा  , मिल जुल आघू बढ़बो । मांग पूरा नइ होही तब तक , मिलके सबझन लड़बो । नइ झुकन हम काकरो आघू  , चाहे कुछ हो जाये । अपन हक के खातिर लड़बो , चाहे तूफां आये । देना परही ओला संगी , नहीं ते हमू मन चढ़बो । मांग पूरा नइ होही तब तक , मिलके सबझन लड़बो । भेदभाव अब झन कर तैंहा , नहीं ते मुँह के खाबे । आही हमरो एक दिन पारी , पता नहीं कहाँ जाबे । देना हे तो दे दे तैंहा , नहीं ते चढ़ाई करबो । मांग पूरा नइ होही तब तक , मिलके सबझन लड़बो । धोखा अब्बड़ खायेन संगी , अब धोखा नइ खावन । काकरो बंहकावा में आ के  , ओकर संग नइ जावन । अपने दम में लड़बो हमन , आघू आघू बढ़बो । मांग पूरा नइ होही तब तक , मिलके सबझन लड़बो । आज लेवत हन ............................ रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @

नाग पंचमी

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नाग पंचमी (प्रिया देवांगन प्रियू ) नागपंचमी के तिहार हरे जी , मिलके सब मनाबो । नाग देव के पूजा करके , दूध वोला पियाबो । कोनों ल चाबे झन कहिके  , विनती  हमन करबो । फूल पान अउ दूध चढ़ा के , ओकर पूजा करबो। शिव बाबा के भक्त हरे , घेंच मा बइठे रहिथे । कोनों ल दुख नइ देवे  , भोला संग मा रहिथे। खेत के रखवाला हरे  , क्षेत्रपाल कहाथे । बइठे रहिथे खेत मा  , नागदेव कहाथे ।। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ Priya Dewangan Priyu

बरस जा बादर

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बरस जा बादर , गिर जा पानी, देखत हावन । तरसत हावन, तोर दरस बर, कहाँ जावन । आथे बादर, लालच देके, तुरंत भगाथे । गिरही पानी, अब तो कहिके, आश जगाथे । सुक्खा हावय, खेत खार हा,  कइसे बोवन । बइठे हावन, तोर अगोरा, सबझन रोवन । झमाझम अब, गिर जा पानी, हाथ जोरत हन । सबो किसान के,  सुसी बुता दे, पाँव परत हन । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati

कीरा मकोड़ा

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कीरा मकोड़ा *********** संझा के बेरा मा , कीरा मकोड़ा आथे । दीया हा बरत रहिथे, उही मा आके झपाथे । रंग रंग के कीरा मकोड़ा , अब्बड़ उड़ाथे । एको ठन ला रमंज देबे , बिक्कट बस्साथे । खाय पीये के बेरा मा , तीरे तीर मा आथे । कतको तोपे रहिबे तभो , भात मा गिर जाथे । हाथ गोड़ मा रेंगत रहिथे, चुट चुट चाबथे । एको ठन खुसर जथे , अब्बड़ गुदगुदासी लागथे । तोप ढाँक के रखव सँगी , कीरा मकोड़ा झन परे। खाय पीये के चीज मा , कीरा हा मत मरे । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ @Mahendra Dewangan Mati

किसानी के दिन

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किसानी के दिन आ गे दिन किसानी के अब , नाँगर धरे किसान । खातू कचरा डारत हावय , मिल के दूनों मितान । गाड़ा कोप्पर टूटहा परे , वोला अब सिरजावे । खूंटा पटनी छोल छाल के, कोल्लर ला लगावे । एसो असकूड़ टूटे हावय , नावा ले के लाये । ढील्ला हावय चक्का दूनों, बाट ला चढ़ाये । पैरा भूसा बाहिर हावय , कोठार मा रखवावय । ओदर गेहे बियारा भाँड़ी , माटी मा छबनावय । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati Pandaria

खटिया

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खटिया खटिया के गय जमाना, अब तो पलंग आ गे । पटवा डोरी अऊ बूच के, जमाना हा नँदागे । खटिया  में बइठे बबा , ढेंरा ला आँटे । सुख दुख के गोठ ला , सबो झन कर बाँटे । सगा पहुना सबोझन, खटिया मा बइठे । बड़ मजबूत हाबे कहिके, मुछा ला अइठे । अब तो नवा नवा , पलंग अउ दीवान आ गे । मचोली अउ खटिया के, जमाना हा नँदागे । नींद भर बबा हा,  खोड़रा खटिया मा सोवय । फसर फसर नाक बाजे, कतको हल्ला गुल्ला होवय। अब तो पलंग मा सुतथे तभो , नींद नइ आवय । सुपेती हा गरमथे अउ , एती वोती कस मसावय। नेवार के तक गय जमाना, अब तो दीवान  आ गे । पटवा डोरी अउ बूच के, जमाना हा नँदागे । खटिया के गय जमाना, अब तो पलंग आ गे । पटवा डोरी अउ बूच के, जमाना हा नँदागे । महेन्द्र देवांगन माटी       पंडरिया  (कबीरधाम ) Mahendra Dewangan Mati @ 01/06/18

तोर शरण मा आँवव

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तोर शरण मा आँवव जय अंबे जगदंबे भवानी, तोर महिमा ला गाँवव । दरशन दे दे मोला माता, तोर शरण मा आँवव । लकलक लकलक तोर रुप हे , अष्ट भुजा अवतारी । जगत के संकट तैंहर हरथस, सबके तैं महतारी । तोला छोड़ के मँय हर माता, अऊ कहां मँय जाँवव । दरशन दे दे मोला ............................ तोर अँगना ला लीप पोंछ के, सुंदर चँऊक पुरायेंव । सुंदर सजे हे रंग रंगोली , ध्वजा पताका लगायेंव । चंदन बंदन रोला टीका, कपुरी पान चढावँव । दरशन दे दे मोला ............................. तोर दरश ला पाये खातिर, सब नर नारी आथे । फल फूल अऊ नरियर भेला, सब झन तोला चढाथे । मँहू आये हँव तोर ठऊर मा , छप्पन भोग लगावँव । दरशन दे दे मोला  ........................... महेन्द्र देवांगन माटी    पंडरिया (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati Pandaria chattisgarh Dist - Kabirdham

वेलेंटाइन डे

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*वेलेंटाइन डे* *के चक्कर* *********************** वेलेंटाइन डे के चक्कर में,  महूं एक ठन गुलाब लायेंव । हैप्पी वेलेंटाइन डे कहिके,  अपन बाई ल थमायेंव । वोला देखिस बाई ह , वहू ह लजागे । यहा ऊमर में तोला , का जवानी छागे । देके दिन में दे नइ हस, अब गुलाब देवत हस । छुछू कस मुँहू लमा के, फोकट के चूमा लेवत हस । नून तेल के चिंता नइहे, फूल ल धर के लानत हस । मोर अइसने जी बगियाय हे , अऊ जरे मा नून डारत हस । मेंहा कहेंव - चार दिन के जिनगी पगली, आ हांस के गोठियाले । का राखे हे जिनगी में,  चल आज वेलेंटाइन डे मनाले । वोहा कथे का होगे तोला, बड़ आशियाना मुड देखावत हस । चुंदी दांत झरगे तभो ले , अपन थोथना ल लमावत हस । अरे लोग लइका के चिंता कर , ये तो विदेशी संस्कृति आय । हमर मया तो जनम जनम तक हे , हमर बर तो रोज वेलेंटाइन डे आय । ये झोला ल धर अऊ साग भाजी लान । ये जगा ले सोज बाय , अपन मुँहू ल टार । झोला ल धराके वोहा, भीतरी में खुसरगे । वेलेंटाइन डे के भूत ह , मोरो मुड़ ले उतरगे । गयेंव बजार अऊ गुलाब नहीं, अब गोभी के फूल ल लायेंव । ये ले मोर रानी कहिके,  ओकर हाथ में थमायेंव । फूल गोभी

ढोंगी बाबा

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ढोंगी बाबा *************** गाँव शहर मा घूमत हावय , कतको बाबा जोगी । कइसे जानबे तँहीं बता, कोन सहीं कोन ढोंगी  ? बड़े बड़े गोटारन माला,  घेंच मा पहिने रहिथे । मोर से बढ़के कोनों नइहे,  अपन आप ला कहिथे । फँस जाथे ओकर जाल मा , गाँव के कतको रोगी । कइसे जानबे तँही बता,  कोन सही कोन ढोंगी ? जगा जगा आश्रम खोल के, कतको चेला बनाथे । पढ़े लिखे चाहे अनपढ़ हो , सबला वोहा फंसाथे । आलीशान बंगला मा रहिके, सबला बुद्धू बनाथे । माया मोह ला छोड़ो कहिके, झूठा उपदेश सुनाथे । आश्रम अंदर कुकर्म करत हे, धन के हावय लोभी । कइसे जानबे तँही बता, कोन सही कोन ढोंगी  ? जागव रे मोर भाई अब तो,  एकर चाल ला जानव । छोड़ दे बाबा के चक्कर ला , घर के देवता ला मानव । अइसन अत्याचारी मन ला,  मिल के सजा देवावव । पहिरे हावय साधु के चोला , ओकर नकाब उतारव । हमर संस्कृति ला बदनाम करत हे , अइसन पापी भोगी । कइसे जानबे तँही बता , कोन सही कोन ढोंगी  ? गाँव शहर मा घूमत हावय , कतको बाबा जोगी । कइसे जानबे तँही बता,  कोन सही कोन ढोंगी  ? रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ वाटसप नंबर

अकती

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अकती पुतरी पुतरा के बिहाव होवत हे , देखे बर सब आवव जी । नाचत हावय लइका मन हा, सुघ्घर गाना गावय जी । नेवतत हावय घर घर जाके , टीकावन मा आहू जी । झारा झारा नेवता हावय , खा के तुमन जाहू जी । लाये हावय डूमर डारा , मड़वा ला छवावय जी । सजावत हे सुघ्घर घर ला , तोरन पताका लगावय जी । तेल चढावत मड़वा मा अउ , गाना सबझन गावय जी । नाचत हावय मगन होके,  दमऊ दफड़ा बजावय जी । परत हावय भांवर संगी , मजा सबझन लेहू जी । टीकावन ला टीक के संगी, आशीर्वाद सब देहू जी । अकती के तिहार ला संगी , मिलके  सबो मनावव जी । भेदभाव ला दूर करव अउ , भाईचारा देखावव जी । महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 18/04/2018

बारी के फूट

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बारी के फूट *************** वाह रे बारी के  फूट , फरे हस तैं चारों खूँट । बजार में आते साठ , लेथय आदमी लूट । दिखथे सुघ्घर गोल गोल, अब्बड़ येहा मिठाय । छोटे बड़े जम्मो मनखे , बड़ सऊंख से खाय । जेहा येला नइ खाय , अब्बड़ ओहा पछताय । मीठ मीठ लागथे सुघ्घर, खानेच खान भाय । बखरी मा फरे हावय , पाना मा लुकाय । कलेचुप बेंदरा आके, कूद कूद के खाय । नान नान लइका मन , चोराय बर जाय । कका ह लऊठी धर के, मारे बर कुदाय । कूदत फांदत भागे टूरा , नइ पावय पार । डोकरी ह चिल्लात हावय , मुँहू ल तोर टार । अब्बड़ फरे हे बारी मा , नइ बोलंव मय झूठ । सबो झन ला नेवता हावय , खाय बर आहू फूट । रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ priyadewangan1997@gmail.com

दोहे के रंग

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दोहे के रंग गरम गरम हावा चलत ,  माथ पसीना आय । जेठ महीना घाम हा,  सबला बहुत जनाय ।।1।। मूड़ म साफी बाँध के, पानी पीके जाव  । रखव गोंदली जेब मा , *लू* से होत बचाव ।।2।। जनम दिवस के मौज मा , काटव झन जी केक । ओकर बदला प्रेम से,   पेड़ लगावव एक ।।3।। पानी नइहे खेत मा,  कइसे होही धान । देखत हवय अगास ला , भुँइया के भगवान ।।4।। बेटा राखव एक झन , कुल मा करय प्रकाश । जइसे तारा बीच मा ,  चंदा रहय अगास ।।5।। करिया दिखय अगास हा,  घटा हवय घनघोर । गरजत बादर जोर से, वन मा नाचय मोर ।।6।। खेलव झन जी आग से, हो जाथे ये काल । धन दौलत हा बर जथे, बन जाथे कंगाल ।।7।। भेद भाव करके कभू, आगी झने लगाव । सुनता से रहि के सबो,  घर परिवार चलाव ।।8।। आगी पानी देख के, लइका लोग बचाव । अलहन झन आवय कभू , सुघ्घर चेत लगाव ।।9।। पनही नइहे गोड़ मा , चट चट जरथे पाँव । आगी जइसे  घाम  हे , खोजय सबझन छाँव ।।10।। जंगल मा आगी लगय  , जुर मिल सबो  बुझाव । झन होवय नुकसान जी, सबके जीव  बचाव ।।11।। पानी हा अनमोल हे , कीमत एकर जान । बिन पानी जीवन नहीं  , येला तैंहर मान ।।12।। छत के उपर टांग दे , पानी भरे गिलास ।