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शारदे वंदन

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शारदे वंदन चरण कमल में तेरे माता,  अपना शीश झुकाते हैं । ज्ञान बुद्धि के देने वाली,  तेरे ही गुण गाते हैं ।। श्वेत कमल में बैठी माता,  कर में पुस्तक रखती है । राजा हो या रंक सभी का , किस्मत तू ही लिखती है ।। वीणा की झंकारे सुनकर,  ताल कमल खिल जाते हैं । बैठ पुष्प में तितली रानी,  भौंरा गाना गाते हैं ।। मधुर मधुर मुस्कान बिखेरे , ज्ञान बुद्धि तू देती है । शब्द शब्द में बसने वाली,  सबका मति हर लेती है ।। मैं अज्ञानी बालक माता,  शरण आप के आया हूँ । झोली भर दे मेरी मैया,  शब्द पुष्प मैं लाया हूँ ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 07/09/18 mahendradewanganmati@gmail.com कुकुभ छंद मात्रा  ---- 16 +14 = 30 पदांत दो गुरु अनिवार्य

बादर गरजे ( कुकुभ छंद)

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बादर गरजे बादर गरजे बिजली चमके,  अब दादुर शोर मचाये । रहि रहि के जियरा हा काँपे,  जब करिया बादर  छाये ।।1।। बिजली चमके अइसे जइसे,  कोनों हा खींचे फोटू । डर के मारे भागे सबझन,  आँखी मूंदे जी छोटू ।।2।। गिरय झमाझम पानी अब्बड़,  बइहा पूरा गा आये । घर दुवार मा पानी भरगे,  मनखे तक हा बोहाये ।।3।। जब जब बड़थे अत्याचारी ,  बाढ़ अइसने  गा आथे । कोप अपन देखाथे अब्बड़,  सब ला बोहा ले जाथे ।।4।। काटव झन अब जंगल झाड़ी, सब  मिल के  पेड़ लगावौ । तभे बाँचही जीव हा सँगी , अब पर्यावरण बचावौ ।।5।। ************************* (2) प्रेम सबो से कर ले बंदे , नाम तोर रहि जाही जी । झनकर तैंहा दुवा भेद ला , काम तोर नइ आही जी ।।1।। मया पिरित ला राखे राहव,  मीठ मीठ बोलव बोली । घूम घाम ले दुनिया मा तैं , झन खुसरे राहव खोली ।।2।। दया धरम ला तैंहा कर ले , डारव सबझन बर दाना । भूखा प्यासा घूमत हावय , वोला देवव तुम खाना ।।3।। रखबे कतको पइसा तैंहा , काम तोर नइ आही जी । छूट जही जब तोर जीव हा,  सँग मा कछु नइ जाही जी ।।4।। ************************* (3) घर के मुखिया दारू पी के  , झगरा रोज मतावे जी । ग

राम नाम जप ले

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राम नाम जप ले  राम नाम ला जप ले भैया,  इही काम गा सब आही । चारे दिन के हावय जिनगी,  सँग मा तोरे का जाही ।।1।। कतको रखबे दौलत तैंहा , सब माटी मा मिल जाही । कुटुम कबीला जम्मो झन हा,  लूट लूट के गा खाही ।।2।। मया मोह के फांदा संगी , बगरे हावय सब कोती । झूठ लबारी सुघ्घर दिखथे,  जाबे झन तैंहर ओती ।।3।। सत के रस्ता चलबे तैंहा , पाप सबो गा कट जाही । दया मया ला राखे रहिबे,  गुन ला तोरे सब गाही ।।4।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ कुकुभ छंद मात्रा  --- 16 + 14 = 30 अंत में दो गुरु अनिवार्य

पेड़ लगावव ( कुकुभ छंद)

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पेड़ लगावव (कुकुभ छंद) पेड़ लगावव मिलजुल संगी , तभे तुमन फल पाहू जी । बड़का होही बिरवा तब तो , सबझन छँइहा पाहू जी ।।1।। मिलही छ़ँइहा घर अँगना मा , पंछी के होही डेरा । चिरई चिरगुन चहकत रइही,  रोज लगाही जी फेरा ।।2।। सुघ्घर खुशबू आही घर मा , छाया मा सुरताहू जी । पेड़ लगावव मिलजुल संगी , तभे तुमन फल पाहू जी ।।3।। जंगल झाड़ी रहिथे तब तो , होथे जी बरसा पानी । धान पान सब बढ़िया होथे  , चलथे सुघ्घर जिनगानी ।।4।। आज लगालव सबझन बिरवा , नइते सब पछताहू जी । पेड़ लगावव मिलजुल संगी  , तभे तुमन फल पाहू जी ।।5।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan. Mati मात्रा- - 16 + 14 = 30 पदांत में 2 गुरु अनिवार्य