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Showing posts from April, 2019

अक्षय तृतीया के तिहार

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अक्षय तृतीया ( अकती ) के तिहार हिन्दू धर्म में बहुत अकन तिहार मनाये जाथे । ये तिहार हा मनखे मे नवा जोश अउ उमंग पैदा करथे । आदमी तो रोज काम बुता करत रहिथे फेर काम ह कभू नइ सिराय । येकर सेती हमर पूर्वज मन ह कुछ विशेष तिथि ल तिहार के रुप में मनाय के संदेश दे हे । वइसने एक तिहार अक्छय तृतीया के भी मनाय जाथे । छत्तीसगढ़ में अकती या अक्छय तृतीया तिहार के बहुत महत्व हे । ये दिन ल बहुत ही शुभ दिन माने गेहे। ये दिन कोई भी काम करबे ओकर बहुत जादा लाभ या पुण्य मिलथे। अइसे वेद पुरान में बताय गेहे। कब मनाथे ---- अकती के तिहार ल बैसाख महीना के अंजोरी पाख के तीसरा दिन मनाय जाथे। एला अक्छय तृतीया या अक्खा तीज कहे जाथे। अक्छय के मतलब ही होथे जेकर कभू नाश नइ होये । माने जो भी शुभ  काम करबे ओकर कभू क्षय नइ होये। एकरे सेती एला अक्छय तृतीया कहे जाथे। अक्छय तृतीया के महत्व  ----- अक्छय तृतीया ल स्वयं सिद्ध मुहूर्त माने गे हे । ये दिन कोनों भी काम करे बर मुहूर्त देखे के जरुरत नइ परे । जइसे  -- बिहाव करना , नवा घर में पूजा पाठ करके प्रवेश करना , जमीन जायदाद खरीदना , सोना चाँदी गहना खरीदना  । ये स

हे दुर्गा माता

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आये हावँव तोर शरण मा , हे दुर्गा माता । मँय बालक हँव तोरे मइया , हे अटूट नाता ।। सबके दुख ला हरथस मइया , मोरो ला हर दे । झोली खाली हावय माता  , येला तैं भर दे ।। नइ जानव मँय पूजा तोरे , राग द्वेष हर दे । प्रेम करँव मँय सबले मइया , निर्मल मन कर दे ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati छत्तीसगढ़ी रचना विष्णु पद छंद मात्रा  -- 16 +10 = 26 पदांत -- गुरु (2)

का ले के आये

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का लेके तै आये संगी , का ले के जाबे । सरग नरक के सुख दुख ला तैं , सबो इँहे पाबे ।। करत हवस तैं हाय हाय जी , ये सब हे माया । नइ आवय कुछु काम तोर गा , छूट जही काया ।। का राखे हे तन मा संगी , जीव उड़ा जाही । देखत रइही रिश्ता नाता , पार कहाँ पाही ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati विष्णु पद छंद मात्रा  -- 16 + 10 = 26 लक्षण -- डाँड़ (पद) 2  ,   चरण  4 सम - सम चरण मा तुकांत पदांत -- लघु  गुरु या गुरु गुरु

चौपई छंद

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राम नाम के महिमा ( चौपई छंद) राम नाम के महिमा सार । बाकी हावय सब बेकार ।। भज ले तैंहा येकर नाम । बन जाही सब बिगड़े काम ।। जिनगी के हावय दिन चार । झन कर तैंहा अत्याचार ।। मोह मया ला तैंहर त्याग । खुल जाही जी तोरे भाग ।। ****************** (2) हमर देश ( चौपई छंद) सुनलव संगी सुनव मितान । देश हमर हे अबड़ महान ।। सबझन गाथे येकर गान । सैनिक चलथे सीना तान ।। गंगा यमुना नदियाँ धार । हरियर हरियर खेती खार ।। उपजाथे सब गेहूँ धान । खुश रहिथे गा सबो किसान ।। ************** (3) हनुमान जी (चौपई छंद) जय बजरंग बली हनुमान । सबले जादा तैं बलवान ।। महिमा हावय तोर अपार । कोनों नइ पाइन गा पार ।।  राम लला के तैंहर दूत । तोर नाम ले काँपय भूत ।। लेथे जेहा तोरे नाम । तुरते होथे ओकर काम।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

मैगी

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जब ले आहे मैगी संगी , कुछु नइ सुहावत हे। भात बासी ला छोड़ के , मैगी ला सब खावत हे।। दू मिनट की मैगी कहिके , उही ला बनावत हे। माई पिल्ला सबो झन , मिल बाँट के खावत हे।। सब लइका ला प्यारा हावय ,  एकरे गुन ल गावत हे । स्कूल हो चाहे पिकनिक हो , मैगी धर के जावत हे।। लइका हो चाहे सियान,  सबला मैगी सुहावत हे । कोनो कोती जावत हे ,  पहिली मैगी बनावत हे।। कोनो आलू प्याज डार के, त कोनो सुक्खा बनावत हे। कोनो सूप बनावत त ,  कोनो सादा खावत हे।। फरा मुठिया के नइ हे जमाना , मैगी के  जमाना हे। दू मिनट की मैगी बनाके  ,  माइ पिल्ला ल खाना हे।। प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़) Priyadewangan1997@gmail.com

प्यारा तोता

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प्यारा तोता (बाल गीत) तोता मेरा है अलबेला , दिन भर गाने गाता है । बड़े मजे से बच्चों के सँग , ए बी सी दुहराता है ।। कभी बैठता कंधे पर तो , कभी शीश चढ़ जाता है । बच्चों को वह देख देखकर,  आँखों को मटकाता है ।। लाल मिर्च है उसको प्यारा , देख दौड़ कर आता है । आम पपीता सेव जाम को , बड़े चाव से खाता है ।। घूमे दिन भर घर आँगन में  , बहुते शोर मचाता है । सुंदर प्यारा मेरा तोता ,  सबका मन बहलाता है ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 (ताटंक छंद)

गरमी ले बचव

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गरमी ले बचव गरमी के मौसम में बहुत गरम - गरम हवा चलत रहिथे । घर ले निकले के मन नइ करय । सूरज देव ह आकाश ले आगी बरसात रहिथे । धरती ह लकलक ले तीप जथे अउ अबड़ भोंभरा जरे ल धर लेथे । जादा घाम में निकले ले कई प्रकार के बीमारी घलो हो जथे । जइसे  --- आदमी ल चक्कर आ जाथे । फोड़ा फुंसी हो जाथे । पेट में पीरा होथे । अनपचक हो जाथे । उल्टी दस्त हो जाथे अउ बुखार भी हो जाथे । आदमी ल झोला (लू ) घलो लग जाथे । एकर सेती गरमी के मौसम में बहुत सावधानी बरतना चाहिए अउ गरमी ले बच के रहना चाहिए । मनखे ल कुछु न कुछु काम से बाहिर निकले ल पर जथे । त घाम ले बचे बर कुछ उपाय कर लेना चाहिए । झोला ( लू ) ले बचे के उपाय ------- (1) गरमी के मौसम में घाम ले बचे बर मुड़ में साफी बाँध लेना चाहिए या छाता धर के जाना चाहिए । (2) पानी के उपयोग जादा करना चाहिए । हमेशा पानी पी के बाहिर निकलना चाहिए । (3) खाली पेट नइ निकलना चाहिए । कुछ न कुछ खा पी के निकलना चाहिए । (4) नींबू पानी के उपयोग जादा करना चाहिए । (5) गोंदली ( प्याज ) ल जेब में धर के जाना चाहिए । (6) सूती कपड़ा के जादा उपयोग करना चाहिए । (7) जादा मिरची म

बाबा साहब

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बाबा साहब कठिन डगर पर चलकर जिसने , सबको राह दिखाया है । मानवता की खातिर उसने  , सब अधिकार दिलाया है ।। खून सभी का एक है बंधु , भेदभाव क्यों करते हो । ऊँचा नीचा जाति बताकर , आपस में क्यों लड़ते हो ।। भीमराव ने भीम प्रतिज्ञा  , पूरा कर दिखलाया है । ऊँच नीच का भेद मिटाकर , सबको आगे लाया है ।। संविधान है एक हमारा , एक हमारी माता है । भारत माता सबकी माता,  सबसे अपना नाता है ।। कठिन परिश्रम करके उसने,  ये संविधान बनाया है । जग में हुए महान वही तो , बाबा साहब कहाया है ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

नदियाँ

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नदियाँ ( सार छंद) कलकल करती नदियाँ बहती  , झरझर करते झरने । मिल जाती हैं सागर तट में  , लिये लक्ष्य को अपने ।। सबकी प्यास बुझाती नदियाँ  , मीठे पानी देती । सेवा करती प्रेम भाव से  , कभी नहीं कुछ लेती ।। खेतों में वह पानी देती  , फसलें खूब उगाते । उगती है भरपूर फसल तब , हर्षित सब हो जाते ।। स्वच्छ रखो सब नदियाँ जल को , जीवन हमको देती । विश्व टिका है इसके दम पर , करते हैं सब खेती ।। गंगा यमुना सरस्वती की  , निर्मल है यह धारा । भारत माँ की चरणें धोती , यह पहचान हमारा ।। विश्व गगन में अपना झंडा , हरदम हैं लहराते । माटी की सौंधी खुशबू को , सारे जग फैलाते ।। शत शत वंदन इस माटी को , इस पर ही बलि जाऊँ । पावन इसके रज कण को मैं  , माथे तिलक लगाऊँ ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com

मतदान

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सुन लव संगी सुनव मितान । करलव सब झन गा मतदान ।। लोकतंत्र के इही अधार । तब होही जी नइया पार ।। नेता मन सब आही द्वार । माथ नवाही बारंबार ।। लालच दे के चलही चाल । फँसहू झन गा ओकर जाल ।। दारू मुरगा बाँटय नोट । जेकर मन मा हावय खोट ।। धोखा देके करथे चोट । देहू झन गा वोला वोट ।। परिचय पत्र ल धर के जाव । कोनों ला गा झन डर्राव।। छाप देख के बटन दबाव ।  वोट अपन गा देके आव ।। एक वोट के कीमत जान । कहना ला अब तैंहर मान ।। एक वोट ले होथे हार । काम बुता मा जावव डार ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati चौपई छंद मात्रा  -- 15 + 15 = 30  अंत -- लघु गुरु

पढ़व लिखव

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सुन लव संगी सुनव मितान । पढ़ लिख के गा बनव महान ।। पढ़बे लिखबे मिलही ज्ञान । होही तब  तुँहरे कल्यान ।। बस्ता धर के पढ़ेल जाव । पढ़ लिख के सब नाम कमाव । अव्वल नंबर सबझन आव । पुरखा के सब नाम जगाव ।। कहिनी किस्सा सुनहू रोज । बन वैज्ञानिक करहू खोज ।। भागव झन जी जावव सोज । विद्यालय मा करहू भोज ।। खाये बर गा मिलथे भात । मारव झन तुम येला लात ।। माटी के जी  मानव बात । झनकर बेटा तैंहर घात ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ चौपई छंद मात्रा  -- 15 + 15 = 30 पदांत -- गुरु लघु

माता ला परघाबो

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आवत हावय दुर्गा दाई,  चलव आज परघाबो । नाचत गावत झूमत संगी , आसन मा बइठाबो ।। लकलक लकलक रूप दिखत हे , बघवा चढ़ के आये । लाली चुनरी ओढे मइया , मुचुर मुचुर मुस्काये ।। ढोल नँगाड़ा ताशा माँदर , सबझन आज बजाबो । आवत हावय दुर्गा दाई  , चलव आज परघाबो ।। नव दिन बर आये हे माता  , सेवा गजब बजाबो । खुश होही माता हमरो बर , अशीष ओकर पाबो ।। नव दिन मा नव रुप देखाही , श्रद्धा सुमन चढाबो । आवत हावय दुर्गा दाई  , चलव आज परघाबो ।। सुघ्घर चँऊक पुराके संगी , तोरन द्वार सजाबो। ध्वजा नरियर पान सुपारी  , वोला भेंट चढ़ाबो ।। गलती झन होवय काँही अब , मिलके सबो मनाबो । आवत हावय दुर्गा दाई  , चलव आज परघाबो ।।  रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 सार छंद मात्रा  -- 16 + 12 = 28 पदांत -- दो गुरु

मोर ( मयूर)

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घोर घटा जब नभ में छाये , अंधकार छा जाता है । बादल गरजे बिजली कड़के , मोर नाचने आता है ।। जंगल में यह दृश्य देखकर  , मन मयूर खिल जाता है । खुश हो जाते जीव जंतु सब  , भौरा गाने गाता है । पंखो को फैलाये ऐसे , जैसे चाँद सितारे हों । आसमान पर फैले जैसे  , टिम टिम करते तारें हों ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati 8602407353 ताटंक छंद नियम  -- मात्रा  -- 16 + 14 = 30 पदांत -- तीन  गुरु अनिवार्य

जागो

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जाग सबेरे चिड़ियाँ चहके , कोयल गाना गाये । कमल ताल में खिले हुए हैं  , सबके मन को भाये ।। रंभाती हैं गैया देखो  , बछड़ा भी  रंभाये । दाना पानी लेकर अब तो , मोहन भैया आये ।। उठ जाओ अब सोकर प्यारे  , मुर्गा बाँग लगाये । आलस छोड़ो बिस्तर त्यागो , सबको आज जगाये ।। माटी पुत्र चले खेतों में  , हल को लेकर जाये । इस माटी का कण कण पावन,  माथे तिलक लगायें ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 12/04/19 Mahendra Dewangan Mati सार छंद मात्रा  -- 16 + 12 = 28 पदांत -- एक गुरु या दो लघु दो गुरु आने से लय अच्छा बनता है ।

आतंकवादी

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भारत माँ के रक्षा खातिर  ,  कूद परे हे वीर जवान । गोला बारुद फेंकत हावय , कर बैरी ला लहू लुहान ।। आँख देखाथे बैरी जेहा , ओकर आँखी देबो फोर । चेत जही जी देखे बर वो , नस नस ला हम देबो टोर ।। बार बार चेतावत हावन , सुन रे बैरी पाकिस्तान । कहना हमर मान ले तैंहा , ले लेबो अब तोरे जान ।। आतंकी के सेवा करथस , मानाथस तैं ओकर बात । कठपुतली कस नाच नचाथे , देखे हन तोरे औकात ।। कुकुर गती हो जाही तोरे , सुन ले अपन खोल के कान । दस हाथी के ताकत रखथे , भारत माँ के एक जवान ।। छेड़े हस तैं हमला तैंहा , नइ देवय अब कोनों साथ । बिच्छी मंतर जानत नइ हस , साँप बिला मा डारे हाथ ।। माँग प्रेम से तैहर हमला , दूध नहीं हम देबो खीर । अउ माँगबे कश्मीर तैंहा , उही जगा हम देबो चीर ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati आल्हा छंद नियम  - 16 + 15 = 31 मात्रा पदांत -- गुरु लघु अतिश्योक्ति अंलकार

घाम के दिन

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चैतू रेंगत जावय गाँव । चट चट जरथे वोकर पाँव ।। रुख राई के नइहे छाँव । कँउवा बइठे करथे काँव ।। सुक्खा परगे तरिया बोर । पानी नइहे कोनों छोर ।। खोजत हावय बड़ लतखोर । जावय नदियाँ कोरे कोर ।। सबझन आज लगावव पेड़ । बारी बखरी भाँठा मेंड़ ।। झन कर संगी मन ला ढेर । नइ ते होही भारी देर ।। रुख राई ले मिलही छाँव । दिखही सुघ्घर सबके गाँव ।। ककरो जरय नहीं तब पाँव । होही जग मा तुहरें नाँव ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati चौपई छंद मात्रा  -- 15 + 15 = 30 पदांत -- गुरु लघु

पानी अनमोल हे

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पानी हावय बड़ अनमोल । फोकट के तैं नल झन खोल ।।  राखव बचा बचा के आज । सबके बनही तब जी काज ।। पानी बिन जिनगी बेकार । हो जाही सबझन लाचार ।। मछरी जइसे तड़पे प्रान , सबके निकल जही गा जान ।। नदियाँ नरवा तरिया बोर , बिहना ले होवत हे शोर ।। पानी बर भौजी हा जाय । लड़ई झगरा करके लाय ।। एक कोस मा रामू जाय । काँवर धरके पानी लाय ।। थक के वोहा बड़ सुरताय । भौजी हा अब्बड़ चिल्लाय ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati चौपई छंद विधान- -- मात्रा  -- 15 , 15 = 30 4 चरण अंत में गुरु लघु

नाम बड़े दर्शन छोटे

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जय गंगान ................... कइसे कइसे हावय नाम । नाम बरोबर नइहे काम ।। कतको झन करथे बदनाम । कोनों करय नहीं आराम ।। दान वीर हा माँगे भीख । लेख राम के मुड़ मा लीख ।। कोमल हावय बहुते ढीठ । मनराखन नइ बोलय मीठ ।। नैन सिंग के नइहे नैन । चैन सिंग ला नइहे चैन ।। पान सिंग नइ खावय पान । दानी राम करय नइ दान ।। सरवन हा नइ मानय बात । दाई ला मारय गा लात ।। घूम घूम के वोहर खात । घर मा झगरा रोज मतात ।। आशा के तैं झन कर आस । खुशबू बाई मारय बास ।। लक्ष्मी बाई लानय घास । रानी के नइहे गा दास ।। नाम बड़े हे दर्शन छोट । मन मा हावय कतको खोट ।। रोज भिखारी गिनथे नोट । कोटवार कर नइहे कोट ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati चौपई छंद ( जयकरी , जयकारी , बसदेवा गीत भी कहे जाथे ) नियम  -- 15 + 15 = 30 मात्रा  सबो लाइन शुरवात द्वि कल से होना चाहिए पदांत -- गुरु लघु

बासी ( चौपई छंद)

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बासी खा ले मिरचा संग । झन करबे तै मोला तंग ।। बढ़ जाही रे तोर उमंग । करबे झन काँही उतलंग ।। खा ले बासी बिहना बोर । मुनगा संग बरी के झोर ।। राँधे हावय दाई तोर । फोकट के झन दाँत निपोर ।। बिहना ले उठथे मजदूर । खा के बासी जाथे दूर । चटनी अउ आमा के कूर । मेहनत करय तब भरपूर ।। अब्बड़ परत हवय जी  घाम । चट चट जरही सबके चाम ।। खा के बासी करबे काम। सिरतो मा मिलही आराम। खावय जे बासी अमचूर । पाय विटामिन वो भरपूर ।। बीमारी सब होवय दूर ।  होवय नहीं कभू मजबूर ।। बासी खावय हमर सियान । बाँटय वोहर सबला ज्ञान ।। लइका मन बर देवय ध्यान । सबझन के करथे कल्यान ।। खावय चैतू चाँटय हाथ । भोंदू देवय वोकर साथ ।। पकलू देखय पीटय माथ । अक्कल दे दे भोलेनाथ ।। बासी खावत "माटी "आज । डारे हावय मिरचा प्याज ।। खाये मा हे काबर लाज । चटनी बासी सबके ताज ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati चौपई छंद विधान  -- 15 , 15 = 30 मात्रा चरन -- 4 पदांत --- गुरु लघु शुरुवात द्वि कल से होना चाहिये ।

मतदान जरुर करव

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हमर भारत देश ह संसार के सबले बड़े लोकतंत्र देश हरे । इंहा चुनाव के माध्यम से मुखिया चुने जाथे । जेन पार्टी ला सबले जादा वोट मिलथे उही पार्टी के  आदमी मुख्यमंत्री  अउ प्रधानमंत्री बनथे । मताधिकार- ---- हमर देश में मताधिकार या वोट डारे के काम 18 साल या 18 ले जादा के महिला पुरुष मन कर सकथे । मतदाता जागरुकता कार्यक्रम  ------- चुनाव आयोग द्वारा चुनाव के समय में मतदाता जागरुकता कार्यक्रम चलाय जाथे । ताकि हर आदमी अपन वोट के सही उपयोग कर सके । ये कार्यक्रम चलाय जाना भी बहुत जरुरी हे । एक एक वोट के बहुत महत्व होथे । एक वोट से आदमी के हार अउ जीत होथे । एकर सेती हर आदमी ला वोट देना बहुत  जरुरी हे । चुनाव आयोग के द्वारा हर साल 25 जनवरी के दिन राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रुप में मनाये जाथे । एकर इही उद्देश्य हे कि गाँव  - गाँव के हर नागरिक अपन कर्तव्य के प्रति जागरूक मतदाता बने अउ सही आदमी के चुनाव कर सके । मतदाता जागरुकता काबर जरुरी हे -------- मतदाता जब जागरूक होही तभे वोहर सही  आदमी के चुनाव कर सकथे । अक्सर गाँव में देखे जाथे के बहुत कम वोट डारे जाथे । वोला चुनाव से कोनों मतलब नइ रहय ।

नक्सल वादी

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(आल्हा छंद) जीना मुश्किल हो गे संगी , कइसे बचही अब तो प्रान । नक्सल वादी हमला करके , लेवत हावय सबके जान ।। जंगल भीतर खुसरे हावय , छूप छूप के करथे वार । पुलिस सिपाही नेता मन ला , मौका पा के देथे मार ।। गोला बारुद बम अउ बंदुक , कइसे पाथे ये हथियार । आका बनके बइठे कोनों  , हावय जउन हा मददगार ।। बढ़गे हावय नक्सल वादी , सेना ला अब देवव छूट । मार भगावव बैरी मन ला , जनता ले जे करथे लूट ।। छेंक छेंक के मारव अब तो , जाये झन अब कोनों भाग । नाम मिटा दो येकर मन के , गोली ऊपर गोली दाग ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati आल्हा छंद  मात्रा  -- 16 + 15 = 31 पदांत -- गुरु लघु

कलिंदर खाव रोग भगाव

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कलिंदर खाव रोग भगाव कलिंदर के नाम सुनते साठ मुँहू मा पानी आ जाथे । काबर कलिंदर खाय मा बहुत मजा आथे , अउ विटामिन भी भरपूर रहिथे । नान - नान लइका मन जब कलिंदर खाथे त ओकर पानी ह हाथ के कोहनी तक चुचवात रहिथे । कपड़ा लत्ता सबो सना जाथे । देखइया मन तक भारी मजा लेथे । कलिंदर ल हिन्दी मा तरबूज कहे जाथे । रुप रंग ------- कलिंदर के फर ह गोल आकार के होथे । येकर वजन ह एक किलो से दस किलो तक घलो होथे । एकर उपर ह हरियर रंग के होथे अउ भीतरी ह लाल रंग के होथे । लाल - लाल गुदा के बीच - बीच मा छोटे - छोटे करिया - करिया बीजा घलो रहिथे । कलिंदर के लाल भाग ल खाय जाथे अउ बीजा ल फेंक देथे या बीजहा राखे के काम आथे । सुवाद ------ कलिंदर मा पानी के मात्रा जादा रहिथे , फेर खाय मा बहुत स्वादिष्ट अउ मीठा लागथे । येला लइका सियान सबोझन रुचि पूर्वक खाथे । भोभला मनखे मन तक येला चबा के खा सकथे । खेती ---------- कलिंदर के फसल ह गरमी के मौसम मा जादा होथे । जतके जादा गरमी रहिथे ओतके जादा एकर फसल होथे । कलिंदर के फसल ह रेती मा या रेती वाला माटी मा जादा होथे । एकर अधिकांश खेती ह नदियाँ के किनारे जादा होथे । नद

नवरात्रि के महिमा

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माँ जगरंबा के महिमा अपरंपार हे । माता के प्यार अउ त्याग के तुलना कोनों से नइ करे जा सकय । जेकर ऊपर माँ दुर्गा के कृपा हो जाथे , ओकर भाग्य उदय हो जाथे । माता के आशीर्वाद से सब प्रकार के मनोकामना पूरा हो जाथे अउ आदमी ल मोक्ष के प्राप्ति होथे । शक्ति अउ आराधना के पर्व ------ नवरात्रि के पर्व ह आदि शक्ति दुर्गा दाई के पूजा, आराधना अउ शक्ति के पर्व आय । नवरात्रि में कतको मनखे उपवास रहिथे अउ नौ दिन तक पूजा पाठ , जाप अउ तप भी करथे । एकर से सिद्धी अउ शक्ति मिलथे । नवरात्रि के पर्व में नौ दिन तक माँ दुर्गा के अलग-  अलग रुप में पूजा करे जाथे । नवरात्रि पर्व साल में दू बार मनाये जाथे । (1) चैत मास में  अउ (2) कुंवार मास में । चैत मास के नवरात्रि ल बसंत नवरात्रि भी कहे जाथे । हिन्दू नववर्ष के शुरुवात भी इही दिन होथे । कलश स्थापना  -------- नवरात्रि में माता जी के पूजा ह नौ दिन तक चलथे । एकर पूजा करे बर सबले पहिली कलश के स्थापना करे जाथे । कलश ल भगवान गणेश जी के रुप माने जाथे । कोई भी शुभ काम करे के पहिली गणेश जी के पूजा करे जाथे , तभे काम ह सफल होथे । नवरात्रि में भी सबले पहिली गणेश जी क