गीतिका छंद

गीतिका छंद

1
मान ले तैं बात संगी , झूठ कहना छोड़ दे ।
नाम होही तोर जग मा , पाप ले मुँह मोड़ दे ।
दान कर ले रोज के तैं , दीन दुखिया जान के ।
मीठ बानी बोल ले तैं , आज रिश्ता मान के ।
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2
ज्ञान के भंडार भर दे , शारदे माँ आज तैं ।
हाथ जोंड़व पाँव परके , राख मइयाँ लाज तैं ।
कंठ बइठो मातु मोरे , गीत गाँवव राग मा ।
होय किरपा तोर माता,  मोर सुघ्घर भाग मा ।

तोर किरपा होय जे पर , भाग वोकर जाग थे ।
बाढ़ थे बल बुद्धि वोकर , गोठ बढ़िया लाग थे ।
बोल लेथे कोंदा मन हा , अंधरा सब देख थे ।
तोर किरपा होय माता  , पाँव बिन सब रेंग थे ।
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3
योग ला तैं रोज कर ले , भाग ही सब रोग हा ।
जाग तैंहा आज संगी , जाग ही सब लोग हा ।
देह रइही तोर सुघ्घर , बात ला तैं मान ले ।
रोग राई दूर होही , सार येला जान ले ।
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4
जाड़ लागय जोर से जी , ओढ सेटर शाल ला ।
ताप आगी बइठ के तैं , सेक दूनो गाल ला ।
बाँध ले तैं कान मुँह ला , हवा अब्बड़ आत हे ।
बनत हावय गरम भजिया , पेट भर सब खात हे ।
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5
हाथ पहिरे लाल चूड़ी  , होंठ लाली रंग हे ।
माथ बिन्दी चाँद जइसे  , देख के सब दंग हे ।
फूल गजरा मूड़ खोंचय , खोर तक ममहात हे ।
देख दरपन रूप सुघ्घर  , वो अबड़ मुसकात हे ।
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6
फूल फुलगे बाग सुघ्घर,  जे अबड़ ममहात हे ।
केंवरा अउ मोंगरा ला , गूँथ के सब लात हे ।
बेंचथे सब फूल माला , लोग लइका घूम के ।
पाय पइसा खाय रोटी  , नाचथे तब झूम के ।

पेट खातिर काम करथे , घूम के जी घाम मा ।
पोंसथे परिवार अपने  , फूल तीरथ धाम मा ।
माँग के नइ खाय कभ्भू  , राखय हवय लाज ला ।
काम करथे रात दिन तब , बाँधथे मुड़ ताज ला ।
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7
बोलथे जे मीठ भाखा , बात सुघ्घर लागथे ।
बात करुहा बोलथे ता , आदमी सब भागथे ।
बोल ले तैं मीठ बोली , तोर होही मान जी ।
याद रखही लोग तोला , तोर करही गान जी ।
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8
फेंक झन कचरा ल तैंहा , राख सुघ्घर साफ तैं ।
फेंकथे जे रोज वोला , आज कर दे माफ तैं ।
साफ करबे रोज तैंहा , बात वोहा मानही ।
सीख जाही देख के जी  , स्वच्छता ला जानही ।

साफ रइही गाँव सुघ्घर  , देख के सब जागही ।
स्वस्थ रइही लोग सब्बो , रोहर ग राई भागही ।
नाम होही देश भर मा , गाँव ला सब जानही ।
देखही सब साफ सुथरा , आदमी सब मानही ।
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9
राम के तैं नाम ले ले , रोज कर ले जाप ला ।
मोह माया छोड़ के तैं , काट सब्बो पाप ला ।
दीन दुखिया दान करबे , तोर लेही नाम जी ।
बोल भाखा मीठ बोली , होय सुघ्घर काम जी ।
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10
चेहरा हे चाँद जइसे  , मीठ बोली बोलथे ।
फूल गजरा मूँड़ डारे , नागिन सहीं डोलथे ।
माथ टिकली नाक नथली , पाँव पैरी बाजथे ।
होंठ लाली रूप सुघ्घर , अप्सरा जस लागथे ।
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11
पेड़ देथे छाँव अब्बड़  , फूल सुघ्घर लागथे ।
रोज खाबे फूल फल ला , रोग राई भागथे ।
काट झन तैं पेड़ ला जी , देव धामी मान ले ।
काम आथे लोग सबके  , आज तैंहा जान ले ।
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नियम
डाँड़ (पद) -- 4
चरण -- 8
यति -- 14 + 12 या 12 + 14 = 26 मात्रा
3 , 10 , 17 , अउ 24 वाँ मात्रा नान्हे (लघु) होय मा जादा गुरतुर लागथे ।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353
Mahendra Dewangan Mati

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