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Showing posts from 2019

जाड़ ह जनावत हे

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जाड़ ह जनावत हे चिरई-चिरगुन पेड़ में बइठे,भारी चहचहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। हसिया धर के सुधा दीदी ,खेत डहर जावत हे। धान लुवत-लुवत दुलारी,सुघ्घर गाना गावत हे।। लू-लू के धान के,करपा ल मढ़ावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। पैरा डोरी बरत सरवन ,सब झन ल जोहारत हे। गाड़ा -बइला में जोर के सोनू ,भारा ल डोहारत हे।। धान ल मिंजे खातिर सुनील,मितान ल बलावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। पानी ल छुबे त ,हाथ ह झिनझिनावत हे। मुँहू में डारबे त,दांत ह किनकिनावत हे।। अदरक वाला चाहा ह,बने अब सुहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। खेरेर-खेरेर लइका खाँसत,नाक ह बोहावत हे। डाक्टर कर लेग-लेग के,सूजी ल देवावत हे।। आनी-बानी के गोली-पानी, टानिक ल पियावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। पऊर साल के सेटर ल,पेटी ले निकालत हे। बांही ह छोटे होगे,लइका ह रिसावत हे।। जुन्ना ल नइ पहिनो कहिके,नावा सेटर लेवावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। रांधत - रांधत बहू ह,आगी ल अब तापत हे। लइका ल नउहा हे त ,कुड़क

जाड़ा

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जाड़ा जाड़ा अब्बड़ बाढ़ गे,  नइ होवत कुछु काम। दिन जल्दी बित जात हे, होवत झटकुन शाम ।। लकर धकर सब जाग के , बिहना काम म जाय । सेटर शाल ल ओढ़ के , जाड़ा रोज भगाय ।। रोवत लइका जाड़ मा , नाक घलो बोहाय। छेना लकड़ी बार के , लइका ला सेंकाय ।। पोंगा लानय काट के , दाई बरी बनाय । बादर हावय दोखहा , घेरी बेरी छाय ।। भाजी पाला जाड़ मा , अब्बड़ रोज मिठाय । राँधय भूँज बघार के , चाँट चाँट सब खाय ।। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" Priya Dewangan "Priyu"

चुनाव

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चुनाव आ गे हवय चुनाव,  सोच के वोट ल देहू । देही लालच रोज,  कभू झन पइसा लेहू ।। कहना माटी मान , वोट के कीमत जानव । करय सबो के काम , उही ला नेता मानव ।। पाँच साल मा आत हे , नेता मन हा गाँव जी । जीतथे जब चुनाव ला , खाथे अब्बड़ भाव जी ।। महेन्द्र देवांगन "माटी"

आभार सवैया

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आभार सवैया गुरु वंदना पावैं पखारौं गुरू आज तोरे बुरा आदमी ला भला तैं बनायेस। अज्ञान के राह मा रोज जावौं धरे हाथ मोरे लिखे ला सिखायेस। दोहा सवैया सबो छंद जानेंव का होय रोला ह तेला बतायेस। कैसे चुकावौं गुरू तोर कर्जा महा मूर्ख चोला ल ज्ञानी बनायेस।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ (छत्तीसगढ़ी भाषा में) विधान  --- 8 तगन 221 × 8

मंदार माला सवैया

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मंदार माला सवैया कन्हैया बंशी बजाके सुनाये कन्हैया नदी के किनारे नचाये सबो । गैया चराये सखा संग जाये धरे गेंद छोटे ल खेले सबो । राधा ह आये मने मा हँसे पाँव पैरी बजाये त देखे सबो । नाचे कन्हैया रचाये ग लीला मजा लेय ताली बजाये सबो । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ विधान --- 7 तगन + गुरु 221 × 7 + 2

सर्वगामी सवैया

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सर्वगामी सवैया ******************* (1) जुन्ना खेल नँदागे आ गे जमाना नवा खेल के जी पुराना सबो खेल संगी नँदागे। जाने न जुन्ना कहाँ खेल खेले न गिल्ली न डंडा सबो हा भगागे। कुश्ती ल जाने न मस्ती ल जाने धरे फोन हाथे म जम्मो समागे। टी वी ल देखे मचाये ग हल्ला सबो आदमी हा उही मा झपागे।। (2) मारे फुटानी मारे फुटानी चलाये ग गाड़ी गिरे हाथ टूटे छिलाये ग माड़ी। माने नहीं आज बाते ल कोनों कुदाये गली खोर जाये ग बाड़ी। फूटे कभू माथ टूटे भले दाँत चेते नहीं वो चलाये ल गाड़ी । धोखा ल खाथे परे मार डंडा बचाये न कोनों जुड़ाथे ग नाड़ी।। (3) बेटी ल जानो बेटी ल जानो ग बेटी ल मानो कभू कोख मा आज येला न मारो। लक्ष्मी सहीं होय बेटी ह संगी रखो प्रेम से रोज येला दुलारो। सेवा करे रोज दाई ददा के कभू भेद जाने न चाहे ग मारो। बेटा कभू संग देवे नहीं ता चले आय बेटी ह वोला पुकारो।। (4) नशा छोड़ो छोड़ो नशा पान बीड़ी ल संगी करे जेन जादा बिमारी ग होथे। पैसा न बाँचे न कौड़ी न बाँचे मरे हाल होथे सुवारी ह रोथे। होथे ग पीरा सबे लूट जाथे खुदे आदमी रोज काँटा ल बोंथे। आघू न सोंचे न पाछू ल देखे नशा जेन बूड़े ग पैसा

हाथी आ गे

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हाथी आ गे ( कुण्डलियाँ छंद) हाथी आ गे खेत मा , देखे पूरा गाँव । रौंदत हावय धान ला , दुख ला कहाँ सुनाव।। दुख ला कहाँ सुनाव , हमर किसमत हे खोटा । जागत हावन आज  , रात भर काँपय पोटा ।। होगे बड़ नुकसान  , रोत हे सबझन साथी । जंगल झाड़ी छोड़  , खेत मा आ गे हाथी ।। जंगल झाड़ी काट के , सबझन महल बनाय । लाँघन मरगे जानवर , कइसे चारा पाय ।। कइसे चारा पाय , खेत मा खोजत आवय । देखत हरियर खार , पेट भर चारा खावय ।। सुन "माटी" के बात , कहाँ ले होवय मंगल । पछताही सब बाद  , साफ होगे हे जंगल ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati @

छ ग के वीर सपूत

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छ ग के वीर सपूत (आल्हा छंद) रामराय के घर मा आइस , भारत माता के गा लाल। ढोल नँगाड़ा ताँसा बाजे , अँगरेजन के बनगे काल।। लइका मन सँग खेलय कूदे , कभु नइ माने वोहर हार। भाला बरछी तीर चलावै , कोनों नइ पावय गा पार।। जंगल झाड़ी पर्वत घाटी  , घोड़ा चढ़ के वोहर जाय। अचुक निशाना वोकर राहय , बैरी मन ला मार गिराय।। नारायण सिंह नाम सुन के , अँगरेजन मन बड़ थर्राय। पोटा काँपय गोरा मन के , जंगल झाड़ी भाग लुकाय।। जब जब अत्याचार बढ़य जी , निकल जाय ले के तलवार । गाजर मूली जइसे काटे , मच जाये गा हाहाकार ।। खटखट खट तलवार चलाये , सर सर सर सर तीर कमान । लाश उपर गा लाश गिराये , बैरी के नइ बाँचे जान ।। सन छप्पन अकाल परीस तब , जनता बर माँगीस अनाज । जमाखोर माखन बैपारी  , नइ राखिस गा वोकर लाज ।। आगी कस बरगे नारायण , लूट डरिस जम्मो गोदाम । सब जनता मा बाँटिस वोहर , कर दिस ओकर काम तमाम।।  चालाकी ले अँगरेजन मन , नारायण ला डारिस जेल। देश द्रोह आरोप लगा के , खेलिस हावय घातक खेल।। दस दिसम्बर संतावन मा , बीच रायपुर चौंरा तीर। हाँसत हाँसत फँदा चूम के , झुलगे फाँसी माटी वीर ।। छंदकार महेन्द्

वीर नारायण सिंह

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छ ग. के पहिली शहीद  -- वीर नारायण सिंह जनम -- छत्तीसगढ़ राज के पहिली शहीद वीर नारायण सिंह हा हरे । वीर नारायण सिंह के जनम सन 1795 ई में बलौदा बजार जिला के सोनाखान नाम के एक छोटे से गाँव में होय रिहिसे । वोकर ददा (पिताजी) के नाम श्री रामराय सिंह रिहिसे । साहसी लइका  ------ वीर नारायण सिंह हा बचपना ले निडर अउ साहसी लइका रिहिसे । वोहर कोनों से डर्रावत नइ रिहिसे । तीरंदाजी , तलवार बाजी , अउ घुड़सवारी में घलो माहिर रिहिसे । वोहर अपन संगवारी मन ला भी ये सब ला सीखाय। ताकि मौका परे मा काम आ सके। घनघोर जंगल में घलो वोहर अकेल्ला घुमे बर चल देय। देशभक्ति के भावना ----- वीर नारायण सिंह में देश भक्ति के भावना रग रग में भरे रिहिसे । वोहर अंग्रेज मन के विरोध में हमेशा आवाज उठाइस अउ ओकर खिलाफ आंदोलन भी करीस । ये पाय के अंग्रेज मन ओकर से बहुत चिढहे। जनता के सेवा  ----- वीर नारायण सिंह हा जनता के सेवा करे बर हमेशा आघू राहय। वोकर से जो भी सहायता बन परे वो जरुर करय। वीर नारायण सिंह के पास एक घोड़ा राहय । वोहर हमेशा घोड़ा में चढ़ के घुमे। एक दिन जब वोहर अपन रियासत में घूमत रिहिसे तब कुछ आदमी मन ब

कछुआ और खरगोश

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कछुआ और खरगोश कछुआ और खरगोश में , हुई दोनो में रेस । बहुत घमण्डी था खरगोश , मारता था वह टेस । दोनों में एक बात चली, चलो लगाएँ रेस। हाथी आया बंदर आया , आया जंगल का राजा। चिड़िया रानी गाना गाई, लोमड़ी बजाया बाजा। दोनो निकल पड़े रेस में, खरगोश दौड़ लगाया । धीरे धीरे कछुआ चलकर, मंद मंद मुस्काया। थक कर बैठा खरगोश राजा, खाने लगा वह गाजर। खाते खाते वहीं सो गया, नाक बजा बजा कर। कछुआ आया धीरे धीरे , देखा खरगोश को सोते। निकल पड़ा वह आगे भैया खुश होते होते। नींद खुली जब खरगोश का, फिर से दौड़ा होकर खुश । जीत गया कछुआ राजा ख़रगोश को हुआ दुःख। आया जंगल का राजा , कछुआ को दिया पुरस्कार । घमंडी एक खरगोश का , हो गया तिरस्कार । रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  (कवर्धा)  छत्तीसगढ़

अगहन बिरसपति

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अगहन बिरसपति के पूजा हिन्दू पंचाग मा अगहन महीना के बहुत महत्व हे। कातिक मास के बाद अगहन मास में बिरस्पत (गुरुवार)  के दिन अगहन बिरसपति के पूजा करे जाथे। बिरसपति देव के पूजा करे ले घर मा सुख शांति,  समृद्धि, धन वैभव अउ सबो मनोकामना पूरा हो जाथे। पूजा के तैयारी  ------- अगहन बिरसपति पूजा के तैयारी ल बुधवार के साँझकुन ले ही शुरु कर देथे। सबले पहिली घर दुवार , अँगना , खोर ला बढ़िया लीप बहार के साफ सुथरा करे जाथे। घर के बाहिर दरवाजा मा बढ़िया रंगोली बनाय जाथे।  घर मा लक्ष्मी माता के आसन बनाय जाथे। लक्ष्मी दाई के पाँव बनाय जाथे। घर ल तोरण पताका से सजाय जाथे। लक्ष्मी माता के आसन ------- अगहन बिरसपति के दिन बृहस्पति देव अउ लक्ष्मी माता के चित्र आसन मा रखे जाथे। आसन के तीर मा रखिया, अँवरा (आँवला), अँवरा के डारा, केरा पत्ती, धान के बाली आदि सामान रखे जाथे। ये पूजा मा रखिया अउ अँवरा के बहुत महत्व हे। एकर अलावा गेंदा के फूल,  पीला चाँऊर , चना ,पीला कपड़ा अउ मीठा पकवान रखे जाथे। पूजा के बाद मँझनिया (दोपहर) कुन कथा सुने जाथे तभे पूजा पूरा होथे। पूजा पाठ करे के बाद प्रसाद बाँटे

दीपों का पर्व दीपावली

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दीपों का पर्व दीपावली दीपावली का नाम सुनते ही बच्चे बूढ़े सभी के मन में खुशियाँ  छा जाती है । यह त्योहार खुशियों का त्योहार है । इस त्योहार की तैयारी कई दिन पूर्व से शुरु हो जाती है । दीपावली का अर्थ  ---- दीपावली शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है । दीप + अवली । दीप का मतलब होता है दीपक और अवली का अर्थ होता है कतार या पंक्ति । इसका मतलब ये हुआ कि दीपक को पंक्ति बद्ध जलाना रौशनी करना । इस दिन लोग अपने घर , द्वार,  दुकान सभी जगह बहुत सारे दीपक जलाकर माँ लक्ष्मी का स्वागत करते हैं । गाँव शहर सभी जगह दीपक की रौशनी से जगमगा उठता है । कब मनाया जाता है  ----- दीपावली का त्योहार कार्तिक मास के अमावस्या तिथि को मनाया जाता है । अमावस्या की काली रात में दीपक की रोशनी से अंधकार दूर हो जाता है । उस दिन काली रात का पता ही नहीं चलता । असतो मा सदगमय , तमसो मा ज्योतिर्गमय । अर्थात असत्य से सत्य की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर जाना ही मनुष्य का मुख्य लक्ष्य है । दीपावली का त्योहार इसी चरितार्थ को पूरा करता है । दीपावली क्यों मनाते हैं  ----- भगवान श्री राम चंद्र जी 14 वर्ष के व

मुनगा के गुन

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मुनगा के गुन (दोहा छंद) मुनगा मा हे गुन अबड़ , होय रोग सब दूर । ताकत मिलथे देंह ला , खावव जी भरपूर ।।1।। घर बारी अउ खेत मा , मुनगा पेड़ लगाव। बेंचव वोला गाँव मा , पइसा अबड़ कमाव।।2।। मुनगा ले औषधि बनय , आथे अब्बड़ काम। गाँव शहर मा बेंच ले , मिलही पूरा दाम।।3।। मुनगा पत्ती पीस के , सरसों तेल मिलाव। चोट मोच अउ घाव मा , येला तुरत लगाव।।4।। मुनगा पत्ती पीस के , काढ़ा बने बनाव। पीयव खाली पेट मा , गठिया रोग भगाव।।5।। मुनगा के गुन जान ले ,  छेवारी जे खाय। बीमारी सब भागथे , ताकत अब्बड़ आय।।6।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

करवा चौथ

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करवा चौथ ( सरसी छंद) आज सजी है देखो नारी, कर सोलह श्रृंगार । करे आरती पूजा करके , पाने पति का प्यार ।। पायल बाजे रुनझुन रुनझुन , बिन्दी चमके माथ । मंगलसूत्र गले में पहने , लगे मेंहदी हाथ ।। करवा चौथ लगे मन भावन, आये बारम्बार । आज सजी है देखो नारी,  कर सोलह श्रृंगार ।। रहे निर्जला दिनभर सजनी , माँगे यह वरदान । उम्र बढे हर दिन साजन का , बने बहुत बलवान ।। छत के ऊपर देखे चंदा , खुशियाँ मिले अपार । भोली सी सूरत को देखे , सजन लुटाए प्यार ।। सुखी रहे परिवार सभी का, जुड़े ह्रदय का तार। आज सजी है देखो नारी,  कर सोलह श्रृंगार ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati 

शरद पूर्णिमा मनायेंगे

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शरद पूर्णिमा मनायेंगे शरद पूर्णिमा मनायेगे, घर में खीर बनाएंगे। अमृत बरसेगा खीर में, मिल बांट कर खाएंगे।। चाँद की रौशनी से , सारा जग जगमगायेगा। सोलह कला से पूर्ण हुआ ,अमृत वह बरसायेगा।। जो जो अमृत खायेगा , बीमारी छू न  पायेगा। शीत बरसेगा धरती पर ,मोती सा बन जायेगा।। जब  बरसेगा ओस की बूंदें, ठंडी की लहरें होगी। धुंधला हो जाएगा आसमा , गीत गायेगा कोई जोगी ।। ताजा ताजा पवन चलेगा , वातावरण शुद्ध हो जायेगा । स्वस्थ रहेंगे मनुष्य सारे , हर पल खुशी मनायेगा ।। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"

शरद पूर्णिमा

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खीर खाबो -- शरद पुन्नी मनाबो ( छत्तीसगढ़ी भाषा में) हिन्दू पंचाग के अनुसार वइसे तो हरेक महीना पुन्नी तिथि आथे , फेर शरद पुन्नी  (पूर्णिमा)  के अलग महत्व हे । ये बार शरद पुन्नी ह 13 अक्टूबर 2019 दिन रविवार के परत हे । शारदीय नवरात्रि के खतम होय के बाद कुंवार  ( आश्विन ) मास में जे पुन्नी आथे वोला शरद पुन्नी के रुप में मनाय जाथे । शरद पुन्नी ल कोजागर पुन्नी  , रास पुन्नी अउ कौमुदी पुन्नी के नाम से भी जाने जाथे । हिन्दू धर्म में येकर बहुत महत्व हे । अमृत बरसा ------- शरद पुन्नी के दिन चंदा ( चंद्रमा) ह पूरा गोल दिखाई देथे अउ आन दिन के अलावा सबले जादा चमकत रहिथे । ये दिन ऊपर से जे शीत बरसथे तेहा चंद्रमा के किरण से अमृत के समान हो जाथे । जेहा आदमी के स्वास्थ्य बर बहुत लाभदायक होथे । येकर सेती शरद पुन्नी के दिन खीर बना के छत के ऊपर खुले आसमान में टाँगे जाथे । ये खीर ल खाय से बहुत अकन असाध्य रोग ह दूर हो जथे अउ आदमी के उमर ह बढ़ जथे । पौराणिक मान्यता  ------- पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ह गोपी मन के संग वृंदावन के निधिवन में इही दिन रास लीला रचाय रिहिसे । कहे ज

आ जाओ साजना

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चित्र आधारित दोहे आ जाओ साजना नदी किनारे बैठकर , ताँक रही हूँ राह । कब आओगे साजना , भरती हूँ मैं आह ।। प्रेम लगन की आग से , जलती हूँ दिन रात । आ जाओ अब पास में  , कर लूं तुमसे बात ।। पथराई अब आँख हैं  , तोड़ो मत तुम आस । वर्षा कर दो प्रेम की , बुझ जाये सब प्यास ।। पायल बैरी पाँव में  , करती है झंकार । चूड़ी खनके हाथ में  , मत कर तू इंकार ।। ना माँगू मैं साजना , कोई मोती हार । बाँह पकड़ कर थाम लो , विनती बारंबार ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

गाँधी जी के बंदर

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गाँधी जी के बंदर गाँधी जी के तीनों बंदर , बहुते धूम मचाते थे । उछले कूदे डंगालों पर , सबको नाच दिखाते थे ।। इस डाली से उस डाली पर , कूद कूद कर जाते थे । खट्टे मीठे फलें देखकर,  खूब मजे से खाते थे ।। बच्चे उसको बहुत सताते , मार गुलेल भगाते थे । इधर उधर सब भागा करते, खूब छलांग लगाते थे ।। बंदर बोले सुन लो बच्चों,  बात ज्ञान की कहता हूँ । गाँठ बाँध कर इसे पकड़ लो , कैसे मैं चुप रहता हूँ ।। करो नहीं तुम कभी बुराई , आपस में मिलकर रहना । सत्य मार्ग पर चलते रहना , झूठ कभी ना तुम कहना ।। बुरा न देखो बुरा न सुनना , बुरा नहीं तुम बोलो जी । अडिग रहो तुम सत्य मार्ग पर , आँखें अपनी खोलो जी ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com

गाँव गँवई

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गाँव गँवई (लावणी छंद) गाँव गली हा सुघ्घर लागे , सबझन मिलजुल रहिथे जी । सुख दुख मा सब हाथ बँटाथे, बबा कहानी कहिथे जी ।। होत बिहनिया कुकरा बासे, सबझन हा उठ जाथे जी । धरे नाँगर ल मोहन भैया,  खेत डहर मा जाथे जी ।। कोठा मा नरियाये गइया ,  राउत भैया आथे जी । पैरा भूसा दाई देथे , बछरू ह मेछराथे जी ।। घर अँगना ला लीपे दाई,  भौजी चँउक पुराथे जी । खेले कूदे लइका मन हा, भैया गाना गाथे जी ।। हँसी ठिठोली दिनभर करथे , देवर अउ भौजाई जी । हाँसत रहिथे कका बबा मन, खावत मुर्रा लाई जी ।। सखी सहेली खेलत रहिथे, एक दुसर घर जाथे जी । नाता रिश्ता जुड़े सबो के, बइठे बर सब आथे जी ।। संझा होथे कका बबा मन , चँउरा मा सकलाथे जी । हालचाल सब पूछत रहिथे, दुख पीरा ल बताथे जी ।। सुघ्घर लागे मोर गाँव हा , घूमे बर तैं आबे जी ।  अइसन मया पिरीत ल संगी, कहाँ शहर मा पाबे जी ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati 30/09/2019 ( छत्तीसगढ़ी भाषा में) 

बाल गणेश

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बाल गणेश मूसक ऊपर चढ़ कर आये , बाल गणेश हमारे द्वार । हाथ जोड़ कर भक्त खड़े हैं,  विनय करें सब बारंबार ।। फूल पान सब अर्पण करते , दीप जलाये घर पर आज। हम क्या जानें पूजा भगवन , आप बचाओ हमरे लाज।। लड्डू मोदक बहुत सुहाये, सभी लगाये तुमको भोग । पूजे जो भी सच्चे दिल से , मिट जाये जी सारे रोग।। बच्चे बूढे खुश हो जाये, मोदक खाये बाल गणेश । आशीर्वाद सभी को देते , काटे पल भर में सब क्लेश।। करें आरती दीप जलायें,  माँगें सब तुमसे वरदान । ज्ञान बुद्धि दो हमको दाता, मिट जाये सारे अज्ञान।। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया छत्तीसगढ़ Priya Dewangan

छोटे छोटे हाथ जोड़कर

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छोटे छोटे हाथ जोड़कर ( ताटंक छंद) छोटे छोटे हाथ जोड़कर,  प्रभु को शीश झुकाता हूँ । पूजा पाठ न जानू भगवन , लड्डू भोग चढ़ाता हूँ ।। ज्ञान बुद्धि के दाता हो तुम,  संकट सब हर लेते हो । ध्यान मग्न हो जो भी माँगे , उसको तुम वर देते हो ।। सूपा जैसे कान तुम्हारे  , लड्डू मोदक खाते हो । भक्तों पर जब संकट आये, मूषक चढ़कर आते हो ।। पहिली पूजा करते हैं सब , बच्चों के तुम प्यारे हो । नहीं कभी भी गुस्सा करते,  सब भगवन से न्यारे हो ।। छोटे छोटे बालक हैं हम , शरण आपके आते हैं । दूर करो सब संकट प्रभु जी,  भजन आपके गाते हैं ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

पुरखा के इज्जत

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पुरखा के इज्जत जनम भर के कमाई ल , थोकिन मा उड़ावत हे । पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।। मर मर के काम करके , धन ल सकेलीस । लोग लइका पोसीस , अउ कतका दुख ल झेलीस।। बाढ़ गे टूरा तब , गली में मेछरावत हे । पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।। गली गली मा दारु पी के , लाल आँखी देखाथे । दाई ददा ल कुछु नइ समझे , मारे बर कुदाथे ।। काम बुता तो करना नइहे  , फोकट के घुमथे । जतका लोफ्फड़ टूरा हाबे , हटरी मा मिलथे ।। सबोझन मिल के , रंग रेली मनावत हे । पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।। मुड़ धर के बइठ गेहे , दाई ददा हा आज । करे बिनती भगवान से , रख ले हमर लाज ।। चढ़ गेहे टूरा मन ल , फैशन के बीमारी । ओकरे पाय नइ करय , छोटे बड़े के चिन्हारी ।। चसमा ल पहिन के , कनिहा ल मटकावत हे । पुरखा के इज्जत ल , माटी मा मिलावत हे ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी (बोरसी  - राजिम वाले ) पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

नमन करुं

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नमन करुं (ताटंक छंद) मातु पिता के श्री चरणों में,  नित नित शीश झुकाता हूँ । और गुरू के पद रज को मैं,  अपने माथ लगाता हूँ ।। कृपा करो हे मातु शारदा,  शरण आपकी आता हूँ । भूल चूक सब माफ करो माँ , तेरे ही गुण गाता हूँ ।। नमन करुं मैं धरती अंबर , नील गगन के तारों को । नमन करुं मैं चंदा सूरज , उनके सब उपकारों को ।। नमन करुं मैं ईष्ट देव को , कृपा सदा बरसाते हैं । नमन करुं उस सूक्ष्म जगत को , जो उजियारा लाते हैं ।। नमन करुं उस परि परिजन को,  जो सुख दुख में आते हैं । नमन करुं उन मित्र सभी को, हरदम राह बताते हैं ।। नमन करुं मैं सकल चराचर , नदियाँ पर्वत घाटी को । नमन करुं मैं इस धरती के,  कण कण पावन माटी को ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

तीजा - पोरा के तिहार

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तीजा - पोरा के तिहार छत्तीसगढिया सब ले बढ़िया । ये कहावत ह सिरतोन मा सोला आना सहीं हे । इंहा के मनखे मन ह बहुत सीधा साधा अउ सरल विचार के हवे । हमेशा एक दूसर के सहयोग करथे अउ मिलजुल के रहिथे । कुछु भी तिहार बार होय इंहा के मनखे मन मिलजुल के एके संग मनाथे । छत्तीसगढ़ ह मुख्य रुप ले कृषि प्रधान राज्य हरे । इंहा के मनखे मन खेती किसानी के उपर जादा निर्भर हे । समय - समय मा किसान मन ह अपन खुशी ल जाहिर करे बर बहुत अकन तीज - तिहार मनावत रहिथे । खेती किसानी के तिहार ह अकती के दिन ले शुरू हो जाथे । अकती के बाद में हरेली तिहार मनाथे । फेर ओकर बाद पोरा तिहार मनाय जाथे । पोरा तिहार  ---- पोरा पिठोरा ये तिहार ह घलो खेती किसानी से जुड़े तिहार हरे ।येला भादो महीना के अंधियारी पाँख ( कृष्ण पक्ष) के अमावस्या के दिन मनाय जाथे । ये तिहार ल विशेष कर छत्तीसगढ़,  मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र अउ कर्नाटक मा जादा मनाय जाथे । पोरा काबर मनाय जाथे ---- पोरा तिहार मनाय के पाछु एक कहावत ये भी हावय के भादो माह (अगस्त)  में खेती किसानी के काम ह लगभग पूरा हो जाय रहिथे । धान के पौधा ह बाढ़ जाय रहिथे । धान ह निकल

तोर सपना

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तोर सपना (गीतिका छंद  - श्रृंगार रस ) देख तोला आज मोरे , मन मचल अब जात हे । रात दिन गुनत रहिथौं मँय , तोर सपना आत हे ।। डार खोपा रेंगथस तैं , मोंगरा ममहात हे । देख के भौंरा घलो हा , तोर तीर म आत हे ।। आँज के काजर ल तैंहा , बाण हिरदे मारथस । गाल होथे लाल तोरे , खिल खिला के हाँसथस ।। काय जादू डार दे हस , तोर सुरता आत हे । देखथँव मँय जेन कोती , चेहरा झुल  जात हे रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 17/08/2019 ( छत्तीसगढ़ी भाषा में)

कम परिवार सुखी परिवार

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कम परिवार सुखी परिवार ( चौपाई छंद) जेकर जादा लइका होवय । घेरी बेरी वोहर रोवय ।। पइसा कौड़ी कुछु नइ बाँचय । मुड़ मा चढ़ के लइका नाचय ।। एक कमइया चार खवइया । कइसे बाँचय पइसा भैया । होवत हावय ताता थैया । कइसे पार लगावे नैया ।। रोज रोज के झगरा होवय । घर में दाई अब्बड़ रोवय ।। सिरतो कहिथों नोहय ठठ्ठा । मुड़ के येहा भारी गट्ठा ।। माटी के गा कहना मानव । कम लइका के महिमा जानव ।। कम परिवार सुखी हे जादा । नइ आवय काँही जी बाधा ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 17/08/2019 ( छत्तीसगढ़ी भाषाा में) 

आ गे हरेली तिहार

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आ गे हरेली तिहार  (गीत) आगे आगे हरेली तिहार जी संगी , जुरमिल सबे मनाबो । नांगर बइला के पूजा करबो , चाँउर के चीला चढाबो ।। आगे आगे हरेली तिहार .............................. हरियर हरियर दिखत हे भुइयाँ ,खेती खार लहराये । छलकत हावय नदियाँ तरिया,  सबे के मन ला भाये ।। छत्तीसगढ़ के सुघ्घर माटी,  माथे तिलक लगाबो । आगे आगे हरेली तिहार ..................... .......... नांगर बक्खर के पूजा करबो , गरुवा ल लोंदी खवाबो । राउत भैया मन राखे रहिथे , दसमूल कांदा खाबो ।। हरियर हरियर लीम के डारा , घर घर आज लगाबो । आगे आगे हरेली तिहार ................................ बरा सोंहारी ठेठरी खुरमी , चीला के भोग लगाबो । खो खो कबड्डी फुगड़ी बिल्लस , सब्बो खेल खेलाबो ।। लइका मन सब गेड़ी मचही , सबझन खुशी मनाबो । आगे आगे हरेली तिहार ................................. गीतकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

नाग पंचमी

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" नागपंचमी " के तिहार हिन्दू समाज में देवी - देवता के पूजा करे के साथ - साथ पशु - पक्षी अऊ पेंड़ - पौधा के भी पूजा  करे  के  रिवाज हे । सब जीव - जन्तु उपर दया करना हिन्दू समाज के परम्परा हरे । उही परंपरा के अंतर्गत हमर समाज में सांप के भी पूजा करे जाथे । सावन महीना के अंजोरी पाँख के पंचमी के दिन नाग देवता के पूजा करे जाथे । ये दिन नाग पंचमी के रूप में मनाये जाथे । नाग पंचमी के दिन गाँव - गाँव में विशेष उत्साह रहिथे । ये दिन धरती ल खोदना मना रहिथे । आज के दिन नाग देवता ल दूध पियाय के परंपरा हे । एकर पहिली माटी के नाग देवता या चित्र बनाके ओकर पूजा करे जाथे । नारियल, धूप , अगरबत्ती जलाके दूध चढ़ाये जाथे अऊ कोनो परकार के हानि मत पहुंचाय कहिके विनती करे जाथे । आज के दिन गाँव - गाँव में कुसती प्रतियोगिता होथे । जेमे आसपास के बड़े - बड़े पहलवान मन आके अपन दांव पेंच देखाथे , अऊ वाहवाही लूटथे । हमर देश ह कृषि प्रधान देश हरे । खेत मन में सांप ह  रहिथे अऊ जीव - जन्तु ,  मुसवा आदि मन फसल ल नुकसान पहुंचाथे ओकर से भी रकछा करथे । एकरे पाय एला छेत्रपाल भी  कहे जाथे । साप ह बिना क

शिव शंकर

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शिव शंकर शिव शंकर ला मान लव , महिमा एकर जान लव । सबके दुख ला टार थे , जेहा येला मान थे ।। काँवर धर के जाव जी  , बम बम बोल लगाव जी । किरपा ओकर पाव जी  , पानी खूब चढ़ाव जी ।। तिरशुल धर थे हाथ में  , चंदा चमके माथ में । श्रद्धा रखथे नाथ में  , गौरी ओकर साथ में ।। सावन महिना खास हे , भोले के उपवास हे । जेहर जाथे द्वार जी  , होथे बेड़ा पार जी ।। महेन्द्र देवांगन "माटी"  (शिक्षक) पंडरिया  (कबीरधाम) छत्तीसगढ़ 8602407353 mahendradewanganmati@gmail.com

अण्डा के फण्डा

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अण्डा के फण्डा ( Egg ) कोनो खावत सेव केरा , कोनो अण्डा खावत हे । लइका मन हा मगन होके , रोज स्कूल जावत हे ।। कोनों ह विरोध करत , कोनों ह खवावत हे । असमंजस मे हे सरकार ह , मिटिंग में बलावत हे ।। कोनों काहत बंद करव , कोनों गुण ल गावत हे । लइका मन ह मगन होके , रोज स्कूल जावत हे ।। गुरुजी मन घेरी बेरी , पालक के घर जावत हे । अण्डा चाही के केरा चाही , सहमति ल लिखावत हे ।। राजनीति के फण्डा मा  , अण्डा ह उबलावत हे । लइका मन ह मगन होके , रोज स्कूल जावत हे ।। पहिली के जमाना ह , अब्बड़ सुरता आवत हे । पहिली कापी में मिले अंडा , अब थारी में आवत हे ।। अब पढ़े ल नइ आय तभो , मुरगा नइ बनावत हे । लइका मन ह मगन होके , रोज स्कूल जावत हे ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम       छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

पानी बरसा दे

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पानी बरसा दे तोर अगोरा हावय बादर , सबझन देखत रस्ता । कब आबे अब तिही बता दे , हालत होगे खस्ता ।। धान पान सब बोंयें हावय , खेत म नइहे पानी । कोठी डोली सुन्ना परगे , चलय कहाँ जिनगानी ।। बादर आथे उमड़ घुमड़ के , फेर कहाँ चल देथे । आस जगाथे मन के भीतर,  जिवरा ला ले लेथे ।। माथा धर के सबझन रोवय , कइसे करे किसानी । सुक्खा हावय खेत खार हा , नइहे धान निशानी ।। किरपा करहू इन्द्र देव जी  , जादा झन तरसावव । विनती हावय हाथ जोड़ के , पानी ला बरसावव ।। सौंधी सौंधी खुशबू हा जब , ये माटी ले आही । माटी के खुशबू ला पा के , माटी खुश हो जाही ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम      छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

शोभन छंद

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(1) आज बदलत हे जमाना  , देख ओकर चाल । बात ला माने नहीं अउ , ठाड़ राखय बाल ।। बाप हा बरजत रथे गा , मान तैंहर बात । मारथे टूरा फुटानी , गुन कभू नइ गात ।। (2) पेड़ पौधा ला लगाके , छाँव सुघ्घर पाव । फूल फर मिलही सबो ला , बाँट के सब खाव ।। गाँव आही आदमी मन , देख के खुश होय । जागही अब भाग सबके , बीज ला जब बोय ।। रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati विधान  -- शोभन छंद 14 + 10 = 24 मात्रा 3 , 10 , 17 , 21 , 24 मात्रा लघु लाललाला  लाललाला, लाल लाल ललाल 2122        2122 ,  21  21  121

शंकर छंद

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(1) आजकाल के लइका मन हा , मानय नहीं बात । घूम घूम के खावत रहिथे , मेछा ल अटियात ।। धरे हाथ मा मोबाइल ला , चलावत हे नेट । कोनों चिल्लावय बाहिर ले , खोलय नहीं गेट ।। ************************************ (2) तीपे हावय भुइयाँ अब्बड़  , जरय चटचट पाँव । सुरताये बर खोजे सबझन , दिखत नइहे छाँव ।। एसो गरमी बाढ़े हावय , चलत अब्बड़ झाँझ । निकलत नइहे घर ले कोनों , सबो घूमय साँझ ।। ************************************ (3) पेड़ सबो कट गेहे संगी , मिलत नइहे छाँव । भटकत हावय जीव जंतु सब , कहाँ मिलही ठाँव ।। नवतप्पा के गरमी भारी , जरत हावय पाँव । मुश्किल होगे निकले बर जी , गाँव कइसे जाँव ।। ***************************************** (4) तोर शरण मा आवँव मइया , मोर रखले लाज । गलती झन होवय काँही वो ,बनय बिगड़े काज ।। सुमिरन करके तोरे माता , लिखँव मँय मतिमंद । कंठ बिराजो शारद मइया , रोज गावँव छंद । ***************************************** (5) गरजत हावय बादर संगी , घटा हे घनघोर । रहि रहि अब्बड़ बिजुरी चमके , ह्दय काँपे मोर ।। रापा कुदरी सकला करके , चलव खेती खार । आय किसानी के दिन

आया नया जमाना

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आया नया जमाना सोते उठते दिन भर देखो , बच्चे गाये गाना । यू ट्यूब और टीक टाक का , आया नया जमाना ।। रहे मस्त मोबाइल में सब , पढ़ना लिखना भूले । इयर फोन को कान लगाकर , हौले हौले झूले ।। वाटसाप में बातें करते  , पिकनिक में हैं जाना । यू ट्यूब और टीक टाक का , आया नया जमाना ।। सर्च करे गूगल में जाकर , कौन कहाँ हैं रहते । खोज निकाले सभी चीज को , नहीं किसी से डरते ।। छूट रहे सब रिश्ते नाते  , नानी के घर जाना । यू टयूब और टीक टाक का , आया नया जमाना ।। गेम खेलते मोबाइल से  , मैदानों को छोड़े । तरह तरह के गेम खेलकर  , माथा अपना फोड़े ।। बात न माने बच्चे अब तो , करे बहुत मनमाना । यू ट्यूब और टीक टाक का , आया नया जमाना ।। छोटे छोटे बच्चे देखो , मोबाइल के आदी । पड़े प्रभाव नसों पर प्यारे  , होते हैं बरबादी ।। दूर रखो बच्चों को इससे  , पीढ़ी नई बचाना । यू ट्यूब और टीक टाक का , आया नया जमाना ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी  (शिक्षक) पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

प्यासी मोहब्बत

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प्यासी मोहब्बत  दिल का हाल समझ ना पाये , मैं तो निर्बल दासी हूँ । नदी किनारे रहकर भी मैं  , देखो कितनी प्यासी हूँ  ।। जिसे समझ कर अपना माना , साथ वही तो छोड़ गए । कसमें खाई रहने की जो , मुँह वो अपना मोड़ गए ।। पड़े अकेले ताँक रही हूँ  , अब केवल वनवासी हूँ । नदी किनारे रहकर भी मैं  , देखो कितनी प्यासी हूँ ।। सूखी लकड़ी जैसी काया , कुछ ना अब तो भाता है । किसे बताऊँ हाल चाल अब , केवल रोना आता है ।। भूल गई सब सुध बुध अपना  , अब केवल आभासी हूँ । नदी किनारे रहकर भी मैं  , देखो कितनी प्यासी हूँ ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

तेरी अदाएँ

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तेरी अदाएँ काली काली जुल्फों को क्यूँ  , नागिन सी लहराती हो । चंचल नयना शोख अदाएँ , क्यों हरदम इठलाती हो । । लाल गुलाबी होंठ शराबी , देख नशा चढ जाता है । फूलों सी खुशबू को पाकर,  भौरा गाने गाता है ।। कली गुलाब सी कोमल काया , धूप लगे मुरझाती हो । चंचल नयना शोखअदाएँ , क्यों हरदम इठलाती हो ।। पाँवो की पायल से तेरी, धुन  संगीत  निकलता है । सुन आवाजें ताल मारकर , आशिक रोज थिरकता है ।। कोयल जैसी कंठ तुम्हारे  , गीत मधुर तुम गाती हो । चंचल नयना शोखअदाएँ , क्यों हरदम इठलाती हो ।। माथे की बिन्दी यूँ चमके , जैसे चाँद सितारे हों । दाँत तुम्हारे चमके ऐसे  , ज्यों मोती की हारें हों ।। भर भर कंगन पहन हाथ में  ,चूड़ी क्यों खनकाती हो । चंचल नयना शोख अदाएँ  , क्यों हरदम इठलाती हो ।। परियों की रानी लगती हो , सबका मन हर लेती है । नैनों से तुम बाण चलाकर , घायल सब कर देती है ।। घोर घटा छा जाती है जब , जुल्फों को लहराती हो । चंचल नयना शोख अदाएँ  , क्यों हरदम इठलाती हो ।। चंचल चितवन मस्त अदाएँ  ,  क्या जादू कर जाती हो । देख तुझे सब आहें भरते , दिल को क्यों तड़पाती हो ।। चाँद निकल

सुरता

लइकापन के सुरता लइकापन के आथे  सुरता । पहिरे राहन चिरहा कुरता ।। गुल्ली डंडा अब्बड़ खेलन । भौंरा बाँटी सबझन लेवन ।। रेस टीप अउ छू छूवउला । घर घुँदिया अउ चुरी पकउला ।।  खो खो फुगड़ी खेल कबड्डी । लड़ई झगरा मिट्ठी खड्डी ।। आमा अमली तेंदू खावन । सरी मँझनिया घुमेल जावन ।। बइला गाड़ी दँउरी फाँदन । उलान बाँटी अब्बड़ खावन ।। संझा बेरा सब सकलावन । मिल के सबझन गाना गावन ।। कथा कहानी बबा सुनाये । किसम किसम के बात बताये ।। अब तो संगी सबो नँदागे ।  मोबाइल मा सबो फँदागे ।। खुसरे हावय घर के कुरिया । बइठे सबझन धुरिहा धुरिहा ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

बिदाई

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बिदाई (सरसी छंद) जावत हावय आज छोड़ के , बेटी हा ससुरार । रोवत हावय दाई ददा ह , करके मया दुलार ।। सुन्ना परगे घर कुरिया हा , कइसे रात पहाय । सुरता करके दाई रोवय , कइसे भात खवाय ।। तोर बिना मँय कइसे राँहव ,होगे जग अँधियार । रोवत हावय दाई ददा ह , करके मया दुलार ।। मोर दुलौरिन बेटी सुघ्घर , रखबे तैंहर लाज । सेवा करबे सबझन के तैं , रखबे घर ला साज ।। काम बुता मा हाथ बँटाबे , सुखी रहय परिवार । रोवत हावय दाई ददा ह , करके मया दुलार ।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati

लालू अऊ कालू

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लालू अऊ कालू (कहानी) लाल कुकुर ह बर पेड़ के छांव में बइठे राहे।ओतके बेरा एक ठन करिया कुकुर ह लुडुंग - लाडंग पुछी ल हलावत आवत रिहिस। ओला देख के लाल कुकुर ह आवाज दिस। ऐ कालू कहां जाथस ? आ थोकिन बइठ ले ताहन जाबे। ओकर आवाज ल सुन के कालू ह तीर में आइस अऊ कहिथे --- काये यार लालू काबर बलाथस। लालू ह कहिथे ----- आ थोकिन बइठ ले कहिथों यार। कहां लकर - धकर जात हस। कोनो पारटी - वारटी हे का ? कालू ह कहिथे  ---- कहां के पारटी - वारटी यार आजकाल कोनो पूछत नइहे। जिंहा जाबे तिंहा साले मन धुरिया ले भगा देथे। ते बता तोर का हाल - चाल हे। तेहा तो बने चिक्कन - चिक्कन दिखत हस। लालू कहिथे ---- मेंहा तो बने हँव , फेर तोला देखथों दिनो दिन कइसे सुखावत जात हस। बने खात - पियत नइ हस का यार। का चिंता धर लेहे तोला। फोकट में चांउर दार मिलत तभो ले संसो करत हस। डपट के खा अऊ गोल्लर बरोबर घूम साले ल। त कालू कहिथे ----- अरे यार कहां ले फोकट के चांउर दार  मिलत हे। मोर तो साले ल राशन कारड नइ बने हे। लालू कहिथे ---- त राशन कारड काबर नइ बनवाय हस रे लेडगा। कालू ------ अरे यार मेंहा सरपंच अऊ सचिव के कई घंऊ चक्कर लगा ड

आमा खाव मजा पाव

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आमा खाव मजा पाव ******* गरमी के मौसम आते साठ सब झन ला आमा के सुरता आथे।लइका मन ह सरी मंझनिया आमा टोरे ला जाथे , अऊ घर में आ के नून - मिरचा संग खाथे।लइका मन ला आमा चोरा के खाय बर बहुत मजा आथे।मंझनिया होथे तहान आमा बगीचा  मा आमा चोराय ला जाथे। आमा एक प्रकार के रसीला फल होथे।ऐला भारत में फल के राजा बोले जाथे।आमा ला अंग्रेजी में मैंगो कहिथे एकर वैज्ञानिक नाम - मेंगीफेरा हे। आमा के किसम ---- आमा भी कई किसम के होथे अउ सबके सुवाद अलग अलग होथे। जइसे - तोतापरी आमा , सुंदरी आमा , लंगडा आमा , राजापुरी आमा , पैरी अउ बंबइया आमा । फल के राजा  --- आमा ला फल के राजा कहे जाथे । आमा ला फल के राजा  काबर कहिथे जबकि सबो फल हा स्वास्थ्य वर्धक होथे । दरअसल ,भारतीय आमा अपन स्वाद के लिए पूरा दूनिया में मशहूर हे।भारत में मुख्य रूप से 12 किसम के आमा होथे । आमा के उपयोग  ----- आमा के उपयोग   सिरिफ फल के तौर में नही बल्कि  सब्जी , चटनी , पना , जूस , कैंडी , अचार , खटाई, शेक , अमावट (आमा पापड़) अऊ बहुत से खाये - पीये के चीज के सुवाद बढाये बर करे जाथे। आमा के फायदा ------ आमा के बहुत से फायदा भी हे

पुतरी पुतरा के बिहाव

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पुतरी पुतरा के बिहाव पुतरी पुतरा के बिहाव होवत हे , आशीष दे बर आहू जी । भेजत हाँवव नेवता सब ला , लाड़ू खा के जाहू जी ।। छाये हावय मड़वा डारा , बाजा अब्बड़ बाजत हे । छोटे बड़े सबो लइका मन , कूद कूद के नाचत हे ।। तँहू मन हा आके सुघ्घर , भड़ौनी गीत ल गाहू जी । भेजत हावँव नेवता सब ला , लाड़ू खा के जाहू जी ।। तेल हरदी हा चढ़त हावय , मँऊर घलो सौंपावत हे । बरा सोंहारी पपची लाड़ू , सेव बूंदी बनावत हे ।। बइठे हावय पंगत में सब , माई पिल्ला सब आहू जी । भेजत हावँव नेवता सब ला , लाड़ू खा के जाहू जी ।। आये हावय बरतिया मन हा , मेछा ला अटियावत हे । खड़े हावय बर चौंरा मा , मिल के सब परघावत हे ।। नेंग जोग हा पूरा होगे , टीकावन मा आहू जी । भेजत हावँव नेवता सब ला , लाड़ू खा के जाहू जी ।। (अक्षय तृतीया विशेष) रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  (कवर्धा) छत्तीसगढ़ priyadewangan1997@gmail.com

अक्षय तृतीया के तिहार

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अक्षय तृतीया ( अकती ) के तिहार हिन्दू धर्म में बहुत अकन तिहार मनाये जाथे । ये तिहार हा मनखे मे नवा जोश अउ उमंग पैदा करथे । आदमी तो रोज काम बुता करत रहिथे फेर काम ह कभू नइ सिराय । येकर सेती हमर पूर्वज मन ह कुछ विशेष तिथि ल तिहार के रुप में मनाय के संदेश दे हे । वइसने एक तिहार अक्छय तृतीया के भी मनाय जाथे । छत्तीसगढ़ में अकती या अक्छय तृतीया तिहार के बहुत महत्व हे । ये दिन ल बहुत ही शुभ दिन माने गेहे। ये दिन कोई भी काम करबे ओकर बहुत जादा लाभ या पुण्य मिलथे। अइसे वेद पुरान में बताय गेहे। कब मनाथे ---- अकती के तिहार ल बैसाख महीना के अंजोरी पाख के तीसरा दिन मनाय जाथे। एला अक्छय तृतीया या अक्खा तीज कहे जाथे। अक्छय के मतलब ही होथे जेकर कभू नाश नइ होये । माने जो भी शुभ  काम करबे ओकर कभू क्षय नइ होये। एकरे सेती एला अक्छय तृतीया कहे जाथे। अक्छय तृतीया के महत्व  ----- अक्छय तृतीया ल स्वयं सिद्ध मुहूर्त माने गे हे । ये दिन कोनों भी काम करे बर मुहूर्त देखे के जरुरत नइ परे । जइसे  -- बिहाव करना , नवा घर में पूजा पाठ करके प्रवेश करना , जमीन जायदाद खरीदना , सोना चाँदी गहना खरीदना  । ये स

हे दुर्गा माता

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आये हावँव तोर शरण मा , हे दुर्गा माता । मँय बालक हँव तोरे मइया , हे अटूट नाता ।। सबके दुख ला हरथस मइया , मोरो ला हर दे । झोली खाली हावय माता  , येला तैं भर दे ।। नइ जानव मँय पूजा तोरे , राग द्वेष हर दे । प्रेम करँव मँय सबले मइया , निर्मल मन कर दे ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati छत्तीसगढ़ी रचना विष्णु पद छंद मात्रा  -- 16 +10 = 26 पदांत -- गुरु (2)

का ले के आये

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का लेके तै आये संगी , का ले के जाबे । सरग नरक के सुख दुख ला तैं , सबो इँहे पाबे ।। करत हवस तैं हाय हाय जी , ये सब हे माया । नइ आवय कुछु काम तोर गा , छूट जही काया ।। का राखे हे तन मा संगी , जीव उड़ा जाही । देखत रइही रिश्ता नाता , पार कहाँ पाही ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया कबीरधाम छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati विष्णु पद छंद मात्रा  -- 16 + 10 = 26 लक्षण -- डाँड़ (पद) 2  ,   चरण  4 सम - सम चरण मा तुकांत पदांत -- लघु  गुरु या गुरु गुरु

चौपई छंद

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राम नाम के महिमा ( चौपई छंद) राम नाम के महिमा सार । बाकी हावय सब बेकार ।। भज ले तैंहा येकर नाम । बन जाही सब बिगड़े काम ।। जिनगी के हावय दिन चार । झन कर तैंहा अत्याचार ।। मोह मया ला तैंहर त्याग । खुल जाही जी तोरे भाग ।। ****************** (2) हमर देश ( चौपई छंद) सुनलव संगी सुनव मितान । देश हमर हे अबड़ महान ।। सबझन गाथे येकर गान । सैनिक चलथे सीना तान ।। गंगा यमुना नदियाँ धार । हरियर हरियर खेती खार ।। उपजाथे सब गेहूँ धान । खुश रहिथे गा सबो किसान ।। ************** (3) हनुमान जी (चौपई छंद) जय बजरंग बली हनुमान । सबले जादा तैं बलवान ।। महिमा हावय तोर अपार । कोनों नइ पाइन गा पार ।।  राम लला के तैंहर दूत । तोर नाम ले काँपय भूत ।। लेथे जेहा तोरे नाम । तुरते होथे ओकर काम।। रचनाकार महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

मैगी

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जब ले आहे मैगी संगी , कुछु नइ सुहावत हे। भात बासी ला छोड़ के , मैगी ला सब खावत हे।। दू मिनट की मैगी कहिके , उही ला बनावत हे। माई पिल्ला सबो झन , मिल बाँट के खावत हे।। सब लइका ला प्यारा हावय ,  एकरे गुन ल गावत हे । स्कूल हो चाहे पिकनिक हो , मैगी धर के जावत हे।। लइका हो चाहे सियान,  सबला मैगी सुहावत हे । कोनो कोती जावत हे ,  पहिली मैगी बनावत हे।। कोनो आलू प्याज डार के, त कोनो सुक्खा बनावत हे। कोनो सूप बनावत त ,  कोनो सादा खावत हे।। फरा मुठिया के नइ हे जमाना , मैगी के  जमाना हे। दू मिनट की मैगी बनाके  ,  माइ पिल्ला ल खाना हे।। प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़) Priyadewangan1997@gmail.com

प्यारा तोता

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प्यारा तोता (बाल गीत) तोता मेरा है अलबेला , दिन भर गाने गाता है । बड़े मजे से बच्चों के सँग , ए बी सी दुहराता है ।। कभी बैठता कंधे पर तो , कभी शीश चढ़ जाता है । बच्चों को वह देख देखकर,  आँखों को मटकाता है ।। लाल मिर्च है उसको प्यारा , देख दौड़ कर आता है । आम पपीता सेव जाम को , बड़े चाव से खाता है ।। घूमे दिन भर घर आँगन में  , बहुते शोर मचाता है । सुंदर प्यारा मेरा तोता ,  सबका मन बहलाता है ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 (ताटंक छंद)

गरमी ले बचव

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गरमी ले बचव गरमी के मौसम में बहुत गरम - गरम हवा चलत रहिथे । घर ले निकले के मन नइ करय । सूरज देव ह आकाश ले आगी बरसात रहिथे । धरती ह लकलक ले तीप जथे अउ अबड़ भोंभरा जरे ल धर लेथे । जादा घाम में निकले ले कई प्रकार के बीमारी घलो हो जथे । जइसे  --- आदमी ल चक्कर आ जाथे । फोड़ा फुंसी हो जाथे । पेट में पीरा होथे । अनपचक हो जाथे । उल्टी दस्त हो जाथे अउ बुखार भी हो जाथे । आदमी ल झोला (लू ) घलो लग जाथे । एकर सेती गरमी के मौसम में बहुत सावधानी बरतना चाहिए अउ गरमी ले बच के रहना चाहिए । मनखे ल कुछु न कुछु काम से बाहिर निकले ल पर जथे । त घाम ले बचे बर कुछ उपाय कर लेना चाहिए । झोला ( लू ) ले बचे के उपाय ------- (1) गरमी के मौसम में घाम ले बचे बर मुड़ में साफी बाँध लेना चाहिए या छाता धर के जाना चाहिए । (2) पानी के उपयोग जादा करना चाहिए । हमेशा पानी पी के बाहिर निकलना चाहिए । (3) खाली पेट नइ निकलना चाहिए । कुछ न कुछ खा पी के निकलना चाहिए । (4) नींबू पानी के उपयोग जादा करना चाहिए । (5) गोंदली ( प्याज ) ल जेब में धर के जाना चाहिए । (6) सूती कपड़ा के जादा उपयोग करना चाहिए । (7) जादा मिरची म