छप्पय छंद

छप्पय छंद
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(1)
आ गे कातिक मास , जाड़ हा अब्बड़ लागे ।
ओढ़े सेटर शाल , तभे अब जाड़ा भागे ।
किट किट बाजे दाँत,  घाम हा बने सुहाये ।
काँपत हावय हाथ , बबा हा गाना गाये ।
भुररी बारय रोज के,  लकड़ी पैरा खोज के ।
सेंकत हावय हाथ ला , सहलावत हे माथ ला।।
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(2)
दाई कलपय आज,  बात बेटा नइ मानय ।
मरधे भूख पियास , तभो पीरा नइ जानय ।
बेटा खावय रोज,  बहू सँग आनी बानी ।
दाई ला तो देय , छोटकुन चटनी चानी ।
मानय नइ जे बात ला , वोहर खाथे लात ला ।
सबला अपने मान ले , दुख पीरा ला जान ले ।।
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(3)
आथे अब तो रोज,  गाँव में भाजी पाला ।
जाथे हाट बजार , छाँट के लेथे लाला ।
राँधे भूँज बघार , विटामिन रहिथे भारी ।
खाथे जेहा रोज , होय नइ कभू बिमारी ।
खावव भाजी रोज के,  बारी बखरी खोज के ।
दाई देथे बाँट के , खाथे सबझन चाट के ।।
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(4)
झन कर तैं अभिमान,  प्रेम से नाम कमा ले ।
काया माटी जान , राम के गुण ला गा ले ।
जिनगी के दिन चार , संग मा कछु नइ जाये ।
जाबे खाली हाथ , जगत मा जइसन आये ।
राम नाम हा सार हे , बाकी सब बेकार हे ।
दया धरम अउ दान कर , सबके आदर मान कर ।।
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(5)
माँ के रूप अनेक , पार नइ कोनों पावय ।
खाथे सबला बाँट  , भले भूखा रहि जावय ।
करथे मया दुलार  , सबो ला अपने माने ।
बेटी बेटा एक  , भेद ला नइ तो जाने ।
दाई देथे राँध के , मया दुलार म बाँध के ।
करथे सबके मान जी , येला लक्ष्मी जान जी ।।
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(6)
भारत माँ के लाल , चले अब ताने सीना ।
बैरी मन ला देख , करे वो मुश्किल जीना ।
देथे पहरा रोज  , देश के रक्षा करथे ।
चाहे जाये जान , वतन के खातिर मरथे ।
पहरा देथे रोज के,  मारे बैरी खोज के ।
चलथे जेहा चाल जी , ओकर बनथे काल जी  ।।
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(7)
बाढ़त हावय जाड़ , सबोझन आगी तापय ।
ओढय चद्दर शाल , तभो ले लइका काँपय ।
किटकिट बाजय दाँत  , घाम हा बने सुहाये ।
बारय भुर्री रोज  , तीर मा सबझन जाये ।
काँपय सबझन जाड़ मा ,  चटके एड़ी गाल जी ।
बइठे हावय घाम मा ,  ओढे सेटर शाल जी ।।

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8
आ गे हवय चुनाव,  सोच के वोट ल देहू ।
देही लालच रोज,  कभू झन पइसा लेहू ।
कहना माटी मान , वोट के कीमत जानव ।
करय सबो के काम , उही ला नेता मानव ।
पाँच साल मा आत हे , नेता मन हा गाँव जी ।
जीतथे जब चुनाव ला , खाथे अब्बड़ भाव जी ।।
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9
नशा पान ला छोड़ , बीमारी अबड़ होथे ।
करथे जेहा रोज  , बाद मा अड़बड़ रोथे ।
किसम किसम के रोग  , देंह मा होथे बाबू ।
बाँचे नइ घर द्वार  , अभी मा कर ले काबू ।
नशा पान ला छोड़ दव , एकर से मुँह मोड़ लव ।
कहना ला तैं मान ले , खतरा हावय जान ले ।।
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10
दारू गाँजा भाँग , कभू झन पीयव भाई ।
करथे सब बरबाद , रोय घर भर के माई ।
होथे खरचा रोज  , दिनों दिन उम्मर घटथे ।
जाथे यम के द्वार  , आदमी जल्दी मरथे ।
कहना ला तैं मान ले , का होथे ये जान ले ।
नशा पान ला छोड़ दे , येकर से मुँह मोड़ दे ।।
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11
नेता मन के चाल , देख लो सबझन भाई ।
नइहे सेवा भाव ,  खाय वो माल मलाई ।
जनता रोवय आज  , बाढ़ गे हे मँहगाई ।
नइहे कौड़ी जेब ,कहाँ ले पइसा पाई ।
नेता चलथे चाल जी,  रोज उड़ाये माल जी ।
लूट लूट के खात हे , सब ला बुद्धु बनात हे ।।
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12
कंचन काया तोर , करे मन ला वो घायल ।
नींद उड़ाये मोर ,   पाँव के तोरे पायल ।
काजर आँजे आँख , बोलथे गुरतुर बोली ।
मारे नैना बान , करे वो हँसी ठिठोली ।
गजरा डारय मूड़ मा , महर महर ममहाय जी ।
मीठा बोली बोल के,  मन ला बहुत लुभाय जी ।।
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विधान- -
येहा एक संयुक्त विषम मात्रिक छंद हरे ।
पहिली चार पद रोला के ( 11 + 13 = 24 मात्रा) अउ
दो पद उल्लाला के (15 + 13 = 28 ) या (13 +13 = 26 मात्रा) होथे ।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़

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