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छत्तीसगढ़ वंदना

महानदी अउ अरपा पैरी , इंहा के मैहर थाती अंव । छत्तीसगढ़ के माटी अंव , मय छत्तीसगढ़ के माटी अंव । देवभोग बस्तर सरगुजा , सबमे रतन भराये हे । राजिम रायपुर बिलासपुर में,  मया के बोली समाये हे । दर्शन कर लो महामाया के, केशकाल के घाटी अंव । छत्तीसगढ़ के माटी अंव -------

नवा साल

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नवा साल धरे हवय मुरगा मटन , बोतल ल हलावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । वाह रे टेसिया टूरा , गली मा मटमटावत हे । चुँदी हावय कुकरी पाँख , हनी सिंह जइसे कटवावत हे । सबो संगवारी मिल के , पिकनिक में जावत हे । घोण्डे हावय सूरा सही  , नवा साल मनावत हे । नशा पान के आदी हावय , गुटखा तंबाखू खावत हे । नाचत हावय डी जे में  , रंग रंग के गाना गावत हे । लाज शरम तो बेचा गेहे , कनिहा ला मटकावत हे । नाक तो पहिली ले कटा गेहे , अब कान ला छेदावत हे । भट्टी डाहर चुप्पे जा के , लाइन ला लगावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । यहा का जमाना आ गे , बबा हा खिसियावत हे । टूरा मन हा बात नइ माने , बोतल ला हलावत हे । धरे हे मोबाइल ला , रंग रंग के गोठियावत हे । टूरी टूरा हाथ धर के , कनिहा ला मटकावत हे । अपन संस्कृति ला भुला के , विदेशी ला अपनावत हे । घोण्डे हावय सूरा सहीं , नवा साल मनावत हे । नशा पान ला छोड़ंव संगी , सादा जीवन बीतावव । छोड़ विदेशी रिवाज ला , अपन संस्कृति अपनावव । अंग्रेजी साल छोड़ के , हिन्दू नव वर्ष मनावव । इंहा के रीति रिवाज ला , दुनिया में बगरावव

हाय रे मोर गोंदा फूल

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हाय रे मोर गोंदा फूल  हाय रे मोर गोंदा फूल , आँखी आँखी तैंहा झूल । चुकचुक ले दिखथस तैंहा , कइसे जाहूँ तोला भूल ।। मोहनी कस रुप हे तोर , लेथस तैंहा जीव ला मोर । का जादू तैं डारे हावस , आथँव मँय हा तोरेच ओर ।। अबड़ ममहाथस महर महर , दिखथस तैंहा चारो डहर । आजकाल हे तोरे लहर , बरसाथस तैं अबड़ कहर ।। लागय झन अब तोला नजर,  हाँसत रहिथस बड़े फजर । छोड़बे झन तैं आधा डगर , बन जा तैंहा मोर गजल ।। हाय रे मोर गोंदा फूल , ............................... महेन्द्र देवांगन माटी  पंडरिया  ( कवर्धा)  छत्तीसगढ़  mahendradewanganmati@gmail.com

मनखे मनखे एक

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मनखे मनखे एक सत्य नाम के अलख जगा के , बाबा जी हा आइस । गाँव नगर मा घूम घूम के , झंडा ला फहराइस ।। मनखे मनखे एक हरे जी , भेदभाव झन मानव । सबके एके लहू हवय जी , एला सबझन जानव ।। दया करव सब जीव जन्तु मा , कोनों ला झन मारव । पाप करव झन जान बूझ के , आँखी अपन उघारव ।। बाबा जी के संदेशा ला  ,    घर घर मा पहुचावव । जैत खाम के पूजा करलव , सेत धजा फहरावव ।। सादा जीवन उच्च विचार ल , जे मनखे अपनाइस । जीवन ओकर तरगे संगी , कभू दरद नइ पाइस ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353

जाड़ लागत हे

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जाड़ लागत हे रिमझिम रिमझिम बिहनिया ले , गिरत हावय पानी । कुड़कुड़ कुड़कुड़ जाड़ लागत , याद आ गे नानी । हाथ गोड़ जुड़ा गेहे , तापत हावन आगी । सांय सांय धुंका चलत , का बतावँव रागी । चुनुन चुनुन चुल्हा में,  भजिया ल बनावत हे । गरमे गरम भजिया , लइका ल खवावत हे । चुल्हा तीरन बइठ के , हाथ गोड़ सेंकत हन । बइठे बइठे टी वी मा , शपथ ग्रहण देखत हन । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़

छप्पय छंद

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छप्पय छंद ***************************** (1) आ गे कातिक मास , जाड़ हा अब्बड़ लागे । ओढ़े सेटर शाल , तभे अब जाड़ा भागे । किट किट बाजे दाँत,  घाम हा बने सुहाये । काँपत हावय हाथ , बबा हा गाना गाये । भुररी बारय रोज के,  लकड़ी पैरा खोज के । सेंकत हावय हाथ ला , सहलावत हे माथ ला।। *********************************** (2) दाई कलपय आज,  बात बेटा नइ मानय । मरधे भूख पियास , तभो पीरा नइ जानय । बेटा खावय रोज,  बहू सँग आनी बानी । दाई ला तो देय , छोटकुन चटनी चानी । मानय नइ जे बात ला , वोहर खाथे लात ला । सबला अपने मान ले , दुख पीरा ला जान ले ।। **************************************** (3) आथे अब तो रोज,  गाँव में भाजी पाला । जाथे हाट बजार , छाँट के लेथे लाला । राँधे भूँज बघार , विटामिन रहिथे भारी । खाथे जेहा रोज , होय नइ कभू बिमारी । खावव भाजी रोज के,  बारी बखरी खोज के । दाई देथे बाँट के , खाथे सबझन चाट के ।। *************************************** (4) झन कर तैं अभिमान,  प्रेम से नाम कमा ले । काया माटी जान , राम के गुण ला गा ले । जिनगी के दिन चार , संग मा कछु नइ जाये । जाबे खाल