माँ

माँ

मंदिर में तू पूजा करके,  छप्पन भोग लगाये ।
घर की माँ भूखी बैठी है , उसको कौन खिलाये ।
कैसे तू नालायक है रे , बात समझ ना पाये ।
माँ को भूखा छोड़ यहाँ पर , दर्शन करने जाये ।।
भूखी प्यासी बैठी है माँ , दिनभर कुछ ना खाये ।
मांगे जब वह पानी तो फिर , क्यों उसपर झल्लाये ।।
करे दिखावा कितना देखो , मंदिर  चुनर चढ़ाये ।
घर की माई साड़ी मांगे , उसको तो धमकाये ।।
पाल पोसकर बड़ा किया जो , उस पर तरस न खाये ।
भूल गये संस्कारों को सब , लज्जा भी ना आये ।।
कैसे  होगी खुश अब माता,  अपने दिल से बोलो ।
पछताओगे तुम भी बेटा ,  आँखें अब तो खोलो ।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353

Mahendra Dewangan Mati

सार छंद
16 + 12 = 28 मात्रा
पदांत --- 2 लघु या 1 गुरु

Comments

  1. सभी मित्रों को बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. बहुत सुंदर एवम् सार्थक सन्देश देती यह रचना प्रशंसनीय है बहुत बहुत बधाई

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