पेड़ लगावव ( कुकुभ छंद)
पेड़ लगावव (कुकुभ छंद)
पेड़ लगावव मिलजुल संगी , तभे तुमन फल पाहू जी ।
बड़का होही बिरवा तब तो , सबझन छँइहा पाहू जी ।।1।।
मिलही छ़ँइहा घर अँगना मा , पंछी के होही डेरा ।
चिरई चिरगुन चहकत रइही, रोज लगाही जी फेरा ।।2।।
सुघ्घर खुशबू आही घर मा , छाया मा सुरताहू जी ।
पेड़ लगावव मिलजुल संगी , तभे तुमन फल पाहू जी ।।3।।
जंगल झाड़ी रहिथे तब तो , होथे जी बरसा पानी ।
धान पान सब बढ़िया होथे , चलथे सुघ्घर जिनगानी ।।4।।
आज लगालव सबझन बिरवा , नइते सब पछताहू जी ।
पेड़ लगावव मिलजुल संगी , तभे तुमन फल पाहू जी ।।5।।
रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कबीरधाम )
छत्तीसगढ़
8602407353
Mahendra Dewangan. Mati
मात्रा- - 16 + 14 = 30
पदांत में 2 गुरु अनिवार्य
Comments
Post a Comment