बादर गरजे ( कुकुभ छंद)

बादर गरजे

बादर गरजे बिजली चमके,  अब दादुर शोर मचाये ।
रहि रहि के जियरा हा काँपे,  जब करिया बादर  छाये ।।1।।

बिजली चमके अइसे जइसे,  कोनों हा खींचे फोटू ।
डर के मारे भागे सबझन,  आँखी मूंदे जी छोटू ।।2।।

गिरय झमाझम पानी अब्बड़,  बइहा पूरा गा आये ।
घर दुवार मा पानी भरगे,  मनखे तक हा बोहाये ।।3।।

जब जब बड़थे अत्याचारी ,  बाढ़ अइसने  गा आथे ।
कोप अपन देखाथे अब्बड़,  सब ला बोहा ले जाथे ।।4।।

काटव झन अब जंगल झाड़ी, सब  मिल के  पेड़ लगावौ ।
तभे बाँचही जीव हा सँगी , अब पर्यावरण बचावौ ।।5।।
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(2)

प्रेम सबो से कर ले बंदे , नाम तोर रहि जाही जी ।
झनकर तैंहा दुवा भेद ला , काम तोर नइ आही जी ।।1।।

मया पिरित ला राखे राहव,  मीठ मीठ बोलव बोली ।
घूम घाम ले दुनिया मा तैं , झन खुसरे राहव खोली ।।2।।

दया धरम ला तैंहा कर ले , डारव सबझन बर दाना ।
भूखा प्यासा घूमत हावय , वोला देवव तुम खाना ।।3।।

रखबे कतको पइसा तैंहा , काम तोर नइ आही जी ।
छूट जही जब तोर जीव हा,  सँग मा कछु नइ जाही जी ।।4।।
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(3)

घर के मुखिया दारू पी के  , झगरा रोज मतावे जी ।
गारी गल्ला देवय अब्बड़,  आँखी ला देखाये जी ।।1।।

मुरगा मटन रोज खावत हे , करजा मा बूड़े हावे ।
चिंता नइहे घर के वोला , लइका मन हा का खावे ।।2।।

चाँउर नइहे घर मा संगी , बेचागे गहना सूता ।
गोल्लर जइसे घूमत हावय , करय नहीं गा कुछु बूता ।।3।।

झन पीयव दारू गा संगी , इज्जत सब बेचा जाथे ।
बीमारी हो जाथे अब्बड़,  देंहे फोकट दुख पाथे ।।4।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया  (कबीरधाम)
छत्तीसगढ़
mahendradewanganmati@gmail.com

कुकुभ छंद
मात्रा- --- 16 +14 = 30
पदांत- - दो गुरु अनिवार्य

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