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Showing posts from August, 2018

पर्यावरण दोहे

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पर्यावरण पेड़ लगाओ मिल सभी,  देते हैं जी  छाँव । शुद्ध हवा सबको मिले  , पर्यावरण बचाव ।।1।। पेड़ों से मिलती हमें , लकड़ी फल औ फूल । गाँव गली में छोरियाँ  , रस्सी बाँधे झूल  ।।2।। पर्यावरण विनाश से,  मरते हैं सब लोग । कहीं बाढ़ सूखा कहीं,  जीव रहे हैं भोग ।।3।। जब जब काटे वृक्ष को , मिलती उसकी आह । भुगत रहे प्राणी सभी  , ढूँढ रहे हैं राह ।।4।। सड़क बनाते लोग हैं  , वृक्ष रहे हैं काट । पर्यावरण विनाश कर , देख रहे हैं बाट ।।5।। पानी डालो रोज के  , पौधे सभी बचाव । मत काटो तुम पेड़ को , मिलजुल सभी लगाव ।।6।। पंछी बैठे डाल में  , फुदके चारों ओर । चींव चींव करते सभी  , होते ही वह भोर ।।7।। पेड़ों से मिलती हवा , श्वासों का आधार । कट जाये यदि पेड़ तो  , टूटे जीवन तार ।।8।। माटी में मिलते सभी  , सोना चाँदी हीर । पर्यावरण बचाय के  , समझो माटी पीर ।।9।। दो दिन की है जिंदगी  , समझो इसका मोल । माटी बोले प्रेम से  , सबसे मीठे बोल ।।10।। महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 @Mahendra Dewangan Mati 30/08/2018

गेंड़ी

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छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन आ गे भइया । हरियर हरियर चारों कोती, चरे घास ला गइया ।। छन्न पकैया छन्न पकैया,  कर ले नाँगर पूजा । मया प्रेम ला राखे रहिबे, झन करबे तैं दूजा ।। छन्न पकैया छन्न पकैया,  लइका चढहे गेड़ी । रिच्चिक रिच्चिक बाजत हावय , मचय उठा के एड़ी ।। छन्न पकैया छन्न पकैया,  घर घर खोंचय डारा । बइगा मन हा घूमत संगी , ए पारा वो पारा ।। **********************    मात्रा ---- 16 + 12 = 28 ये हर सार छन्द के एक किसम हरे । येमा "छन्न पकैया छन्न पकैया" एक टेक बरोबर शुरु मा आथे । बाकी सब नियम सार छन्द के लागू होथे । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ 8602407353 @Mahendra Dewangan Mati

लहरा ले ले

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छन्न पकैया छन्न पकैया  , लहरा ले ले भैया । पाप सबो कट जाही तोरे , हावय गंगा मैया ।।1।। छन्न पकैया छन्न पकैया,  दान धरम ला कर ले । नाम तोर रहि जाही जग मा , पुन के झोली भर ले ।।2।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , करथे जेहा सेवा । कभू दुखी नइ होवय संगी , खाथे वोहा मेवा ।।3।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , बोलव मीठा बानी । सेवा करले मातु पिता के , झन कर आना कानी ।।4।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , माटी के चोला हा संगी  , माटी मा मिल जाही ।। *******************   मात्रा ---- 16 + 12 = 28 ये हर सार छन्द के एक किसम हरे । येमा "छन्न पकैया छन्न पकैया" एक टेक बरोबर शुरु मा आथे । बाकी सब नियम सार छन्द के लागू होथे । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ 8602407353 @Mahendra Dewangan Mati

बरसा पानी

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छन्न पकैया छन्न पकैया  , आ गे बरसा पानी । नदियाँ नरवा लहरा मारे , होय करेजा चानी ।।1।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , डोंगा हा लहरावे । काँपत हावय पोटा संगी , कइसे पार लगावे ।।2।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , पानी पूरा भरगे । बूड़त हावय गाँव गली हा,  कतको मनखे मरगे ।।3।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , राहत दल हा आइस । जान अपन जोखिम मा डारे , लइका लोग बचाइस ।।4।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , परलय हा जब आथे । बड़े बड़े जी महल अटारी  , माटी मा मिल जाथे ।।5।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , कतको राहय चोखा । ऊपर वाला के आघू मा , खा जाथे जी धोखा ।।6।। **************** मात्रा ---- 16 + 12 = 28 ये हर सार छन्द के एक किसम हरे । येमा "छन्न पकैया छन्न पकैया" एक टेक बरोबर शुरु मा आथे । बाकी सब नियम सार छन्द के लागू होथे । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ 8602407353 @Mahendra Dewangan Mati

नशा पान

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छन्न पकैया छन्न पकैया  , नशा पान ला छोड़ो । होथे जी बीमारी अब्बड़  , एकर से मुँह मोड़ो ।।1।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , गुटखा जेहा खाथे । केंसर होथे वोला संगी ,  अब्बड़ दुख ला पाथे ।।2।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , नशा पान जे करथे । किसम किसम बीमारी होथे  , जल्दी वोहा मरथे ।।3।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , हावय जेहा आदी । पइसा कौड़ी कुछु नइ बाँचे  , हो जाथे बरबादी ।।4।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , पी के  जेहा सुतथे । घोंडे रहिथे सूरा जइसे  , कुकुर मुँहू मा मुतथे ।।5।। छन्न पकैया छन्न पकैया  , जेहा पीथे खाथे । देंह खोखला हो जाथे अउ , माटी मा मिल जाथे ।।6।। ******************* मात्रा ---- 16 + 12 = 28 ये हर सार छन्द के एक किसम हरे । येमा "छन्न पकैया छन्न पकैया" एक टेक बरोबर शुरु मा आथे । बाकी सब नियम सार छन्द के लागू होथे । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ 8602407353 @Mahendra Dewangan Mati

झंडा ला फहराबो

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देश हमर हे सबले प्यारा , येकर मान बढ़ाबो । नइ झूकन देन हम तिरंगा , झंडा ला फहराबो ।। भेदभाव ला छोड़ के सँगी , सब झन आघू बढ़बो । हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई , मिल के हम सब लड़बो ।। अपन देश के रक्षा खातिर , बाजी सबो लगाबो । नइ झूकन देन हम तिरंगा  , झंडा ला फहराबो ।। रानी लक्ष्मी बाई आइस , अपन रूप देखाइस । गोरा मन ला मार काट के  , सब ला मजा चखाइस ।। हिलगे सब अंग्रेजी सत्ता  , ओकर गुन हम गाबो । नइ झूकन देन हम तिरंगा  , झंडा ला फहराबो ।। आन बान अउ शान तिरंगा  , लहर लहर लहराबो । देश विदेश जम्मो जगा मा , येकर यश फइलाबो ।। भारत भुँइया के माटी ला , माथे तिलक लगाबो । नइ झूकन देन हम तिरंगा  , झंडा ला फहराबो ।। ***************** नियम -- मात्रा 16 + 12 = 28 तुकांत के नियम  --- दू दू डाँड़ मा ( सम सम चरण मा ) आखिर मा एक बड़कू ( गुरु ) या दू नान्हे  (लघु ) होना चाहिए । तुकांत मा दू बड़कू (गुरु ) आये ले छन्द अउ गुरतुर हो जाथे । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  ( कवर्धा ) छत्तीसगढ़ @Mahendra Dewangan Mati

मोबाइल

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आज काल के नोनी बाबू , मोबाइल ला धरथे । फुसुर फुसुर दूसर के सँग मा , बात अबड़ जी करथे ।। दिन भर देखत रहिथे वोला , भात घलो नइ खाये । आनी बानी पिक्चर देखे , रँग रँग गाना गाये ।। काम बुता तो करना नइहे,  जाँगर ओकर जरथे । फुसुर फुसुर दूसर के सँग मा , बात अबड़ जी करथे ।। दाई बाबू कतको बोले , कहना ला नइ माने । पढ़ई लिखई जीरो हावय , काँही ला नइ जाने ।। नाम कमाही बेटा कहिके  , दाई आशा करथे । फुसुर फुसुर दूसर के सँग मा , बात अबड़ जी करथे ।। **************** नियम -- मात्रा 16 + 12 = 28 तुकांत के नियम  --- दू दू डाँड़ मा ( सम सम चरण मा ) आखिर मा एक बड़कू ( गुरु ) या दू नान्हे  (लघु ) होना चाहिए । तुकांत मा दू बड़कू (गुरु ) आये ले छन्द अउ गुरतुर हो जाथे । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

बादर आवय

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उमड़त घुमड़त बादर आवय , गिरय झमाझम पानी । आ गे सावन महीना सँगी , चूहत परछी छानी ।। गाँव गली मा पानी भरगे,  बोहावत हे रेला । लइका मन सब नाचत कूदत , खेलत हावय खेला ।। खेत खार मा चिखला मातय,  धरथे अब्बड़ लेटा । दाई हा चेतावत हावय , बने रेंगबे बेटा ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati नियम -- मात्रा 16 + 12 = 28 तुकांत के नियम  --- दू दू डाँड़ मा ( सम सम चरण मा ) आखिर मा एक बड़कू ( गुरु ) या दू नान्हे  (लघु ) होना चाहिए । तुकांत मा दू बड़कू (गुरु ) आये ले छन्द अउ गुरतुर हो जाथे ।

माटी के चोला ( सार छन्द )

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माटी के चोला  राम भजन ला गा ले भैया,  इही काम गा आही । माटी के चोला हा संगी , माटी मा मिल जाही ।। कतको धन दौलत ला रखबे , काम तोर नइ आये । छूट जही जब जीव ह तोरे,  सँग मा कुछु नइ जाये ।। देखत रइही नाता रिश्ता,  बरा भात ला खाही । माटी के चोला हा संगी , माटी मा मिल जाही ।। मया मोह के फेरा मा तैं,  दुनिया सबो भुलाये । काम करे तैं मर मर सब बर , पाछू बर पछताये ।। कर ले सेवा दीन दुखी के,  नाम तोर रहि जाही । माटी के चोला हा संगी , माटी मा मिल जाही ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ 8602407353 @Mahendra Dewangan Mati नियम -- मात्रा 16 + 12 = 28 तुकांत के नियम  --- दू दू डाँड़ मा ( सम सम चरण मा ) आखिर मा एक बड़कू ( गुरु ) या दू नान्हे  (लघु ) होना चाहिए । तुकांत मा दू बड़कू (गुरु ) आये ले छन्द अउ गुरतुर हो जाथे ।

अमृत ध्वनि छंद

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अमृत ध्वनि छन्द (1) आइस सावन झूम के, दिखय घटा घनघोर । बिजुरी चमके जोर से, नाचय वन मा मोर ।। नाचय वन मा , मोर पंख ला, अपन उठाके, देखय सबझन, आँखी फारे, हँसय लुकाके । चिरई चिरगुन, ताली पीटे, दादुर  गाइस, सबके मन मा, खुशी समागे, सावन आइस । (2) नाँगर बइला फाँद के,  जोंतत खेत किसान । खातू कचरा डार के,  बोंवत हावय धान ।। बोंवत हावय , धान पान हा , एसो होही, पउर साल के, रोना अब तो, नइ तो रोही । करथे सबझन, काम बरोबर, चलथे जाँगर, कोड़ा देवय , दवई डारय , फाँदय नाँगर । (3) गुटका पाउच खाय जे , होथे अब्बड़ रोग । खाथे जेहा रोज के, भुगते अइसन लोग ।। भुगते अइसन, लोग मुँहू मा , केंसर होथे, पइसा खोथे,  पीरा करथे,  अब्बड़ रोथे । झगरा होथे,  गारी खाथे, सहिथे मुटका , बात मान ले , कान पकड़ ले , झन खा गुटका । (4) घर के अँगना मा सबो , तुलसी पेड़ लगाव । पानी देवव रोज के,  शुद्ध हवा ला पाव ।। शुद्ध हवा ला , पाव बिमारी, नइ तो आवय, सरदी खाँसी, भगा जथे जे, पत्ती खावय । दीया बारव, पूजा कर लो, पाँव पर के, अब्बड़ गुन हे, एला जानव, तुलसी घर के । (5) पीना छोड़व दारु ला , करथे येहा नाश । जाब

भाजी पाला

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भाजी पाला भाजी पाला हा बने , गरमी माह सुहाय । फोरन दे के राँध ले , अब्बड़ भात खवाय ।। भौजी जाय बजार मा , लावय भाजी चेंच । भैया मन भर खात हे , लमा लमा के घेंच ।। तिंवरा भाजी देख के,  मन हा बड़ ललचाय । चना दार मा राँध ले , आगर भात खवाय ।। मुनगा भाजी खाय के , मुसुर मुसुर मुसकाय। कतको हरथे रोग ला , दांत बने चमकाय ।। कांदा भाजी मा घलो, अबड़ विटामिन पाय । ताकत आवय देंह मा , बबा बतावय राय ।। दार संग मा राँध ले , सुघ्घर भाजी लाल । खाथे जेहा रोज के , चिक्कन दिखथे गाल ।। तरिया नदियाँ तीर मा , चुनचुनिया ला पाय । चटनी सहीं बनाय के,  चाट चाट के खाय ।। करमत्ता के साग मा , करमा माता आय । भोग लगा के प्रेम से,  आशीरवाद  पाय ।। पटवा भाजी राँध ले , सँग मा लहसुन डार । परोसीन हा सूंघ के,  टपकावत हे  लार ।। मखना हावय नार मा , भाजी ला तैं टोर । खाये के मन आज हे , झोला मा ले जोर ।। चौंलाई के चाल ला , जानत नइहे कोन । खा के बड़ गुन गात हे , बहू लगावय फोन ।। भाजी मा हे गुन बहुत  , जेहा येला खाय । होय बिमारी दूर जी,   ताकत अब्बड़ आय ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ @M

बेटी बेटा

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बेटी बेटा भेदभाव ला छोड़ के  , दूनों ला तँय मान । बेटी  बेटा  एक  हे ,  कुल के दीपक जान ।। रौशन करथे एक दिन , दो दो कुल के नाम । बेटी बने पढ़ाव जी  , बनही बिगड़े काम ।। पढ़े लिखे से होत हे,  घर मा शिष्टाचार । गारी गल्ला छोड़ के,  सीखय सब संस्कार ।। बेटी बेटा संग मा , सब ला बने पढ़ाव । भरही झोली ज्ञान के,  जग मा नाम कमाव ।। मनखे मनखे एक हे , झन कर कोनों भेद । जेमा तैंहा खाय हस , ओमे झनकर छेद ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati दोहा -- 13 +11 = 24 मात्रा

गणेश वंदना ( दोहे )

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गणेश वंदना ( दोहा छन्द ) ************* पहिली पूजा तोर हे , गण नायक महराज । हाथ जोड़ विनती हवय , पूरा कर दे काज ।। आये हावन तोर कर , लेके छप्पन भोग । सबो कष्ट ला दूर कर , माँगत हे सब लोग ।। हाथी जइसे सूड़ हे , सूपा जइसे कान । सबके मन के बात ला , तेंहा लेथस जान ।। लड्डू मोदक खाय के , मुसवा करे सवार । तोर बुद्धि के सामने ,  पाय न कोनों  पार ।। नइ जानँव जी पाठ ला , मँय बालक नादान । भूल चूक माफी करव,  हाँवव मँय अनजान ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @ मात्रा 13 + 11 = 24

राखी के तिहार

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राखी के तिहार (महेन्द्र देवांगन माटी ) सावन के पावन महीना में, आइस राखी तिहार । राखी के बंधन में हावय , भाई बहन के प्यार । सजे हावय दुकान में,  आनी बानी के राखी । कोन ला लेवँव कोन ला छोंड़व , नाचत हावय आँखी । छांट छांट के बहिनी मन , राखी ला लेवत हे । किसम किसम के मिठाई ले के , पइसा ला देवत हे । भैया के कलाई में,  राखी ला बांधत हे । रक्षा करे के वचन,  भाई से मांगत हे । भाई बहिन के पवित्र प्रेम,  सबले हावय प्यारा । हमर देश के संस्कृति,  सबले हावय न्यारा । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

मिलके सबझन लड़बो

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आज लेवत हन हम प्रतिज्ञा  , मिल जुल आघू बढ़बो । मांग पूरा नइ होही तब तक , मिलके सबझन लड़बो । नइ झुकन हम काकरो आघू  , चाहे कुछ हो जाये । अपन हक के खातिर लड़बो , चाहे तूफां आये । देना परही ओला संगी , नहीं ते हमू मन चढ़बो । मांग पूरा नइ होही तब तक , मिलके सबझन लड़बो । भेदभाव अब झन कर तैंहा , नहीं ते मुँह के खाबे । आही हमरो एक दिन पारी , पता नहीं कहाँ जाबे । देना हे तो दे दे तैंहा , नहीं ते चढ़ाई करबो । मांग पूरा नइ होही तब तक , मिलके सबझन लड़बो । धोखा अब्बड़ खायेन संगी , अब धोखा नइ खावन । काकरो बंहकावा में आ के  , ओकर संग नइ जावन । अपने दम में लड़बो हमन , आघू आघू बढ़बो । मांग पूरा नइ होही तब तक , मिलके सबझन लड़बो । आज लेवत हन ............................ रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @

माटी के दोहे

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बेटी बेटा एक हे , होथे घर के शान । दूनों कुल के दीप हे , एला तेंहा मान ।। झन कर गरब गुमान तैं , आये खाली हाथ । राखे धन ला जोर के,  नइ जाये वो साथ ।। पढ़ लिख के आघू बढ़त,  जग मा नारी आज । देखत रहिगे लोग हा, करथे पूरा काज ।। कंधा ले कंधा मिला  , चलथे नारी आज । चाहे कोनों काम हो , हावय सबला नाज ।। सतमारग मा रेंग के,  बाँटव सबला ज्ञान । गुरू कृपा ले हो जथे , मूरख भी  विद्वान ।। पत्नी हा सरपंच हे , पति हा करथे राज । धुर्रा झोंकत आँख मा , हावय धोखेबाज ।। नारी के मन साफ हे , होथे फूल समान । आथे इज्जत आंच तब , धरथे तीर कमान ।। जीवन भर सेवा करय, सबला अपने मान । नारी छँइहा देत हे , होथे पेड़ समान ।। नदियाँ नरवा ताल मा,  पानी सबो सुखाय। बांधे नइहे पार ला , कइसे जल सकलाय ।। पानी हा अनमोल हे , एकर महिमा जान । बाँध बना के रोक लो ,   बचही तभे परान ।। आवत जावत लोग ला , पानी जेन पियाय । मिलथे आशीर्वाद अउ , बहुते पुण्य कमाय ।। धन दौलत से हे बड़े, पानी के ये बूँद । कइसे बचही सोच ले , आँखी ला झन मूंद ।। माटी मा बाढ़े हवन , माटी हमर परान । माटी के सेवा करव, एहर स्वर्ग समान ।। माट

माता दुर्गा

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माता दुर्गा माता दुर्गा राख ले , हमरो तैंहा लाज । आये हावन तीर मा , पूरा कर दे काज ।। नान नान लइका हमन , सेवा  करथन तोर । सबके संकट दूर कर , विनती सुनले मोर ।। दरशन खातिर तोर माँ, नर नारी सब आय । आनी बानी फूल अउ , छप्पन भोग लगाय ।। खप्पर धर के हाथ मा , काली रुप देखाय । पापी मन ला मार के,  दुनिया सबो बचाय ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @

जागव

जागव  दूसर राज के कोलिहा मन , शेर सही गुर्रावत हे । हमरे राज में आके संगी , हमी ल आंखी देखावत हे  छत्तीसगढ़ीया सबले बढ़िया, सुन सुन के आवत हे । थारी लोटा धर के आइस तेमन , अपन धाक जमावत हे । जेन ल हम ह जगा देहन , उही हक जमावत हे । हमर घर हे टूटहा फूटहा, वो महल अटारी बनावत हे । पहुना होथे भगवान बरोबर,  थारी थारी खवावत हे । उही थारी में छेदा करके, अब चार आंसू रोवावत हे । जागो जी सब छत्तीसगढ़ीया, अब तो होश में आवव । छत्तीसगढ़ के लाज रखे बर , सबझन आवाज उठावव । रचना महेन्द्र देवांगन माटी  पंडरिया कवर्धा  छत्तीसगढ़  Mahendra Dewangan Mati 

बेटी

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बेटी  ( सरसी छन्द ) (1) मारव झन जी बेटी ला अब , येला लक्ष्मी जान । नाम कमाथे जग मा सुघ्घर,  बेटा जइसे मान ।। अबला नइहे नारी अब तो,  हे दुर्गा अवतार । रक्षा अपन करे खातिर बर , धर लेथे तलवार ।। आज चलावत हावय बेटी,  मोटर गाड़ी रेल । खेलत हावय फूटबाल अउ , कुश्ती जइसे खेल ।। (2) भेद करव झन बेटी बेटा , दूनों एक समान । होथे दूनों कुल के दीपक, येला तैंहर जान ।। पढ़ा लिखा दे बेटी ला तँय , बोझा झन तैं मान । पढ़ही लिखही आघू बढ़ही , जग मा होही गान ।। कमती झन आँकव बेटी ला , बढ़ के हावय आज । अपन मूँड़ मा पागा बाँधे , करत हवय जी राज ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati मात्रा -- 16 , 11 = 27

आबे हमर गाँव

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आबे हमर गाँव  (सरसी छन्द ) आबे तैंहर गाँव हमर जी, बर पीपर के छाँव । देखत रइहूँ रस्ता तोरे, माटी मोरे नाँव ।। चारों कोती हरियर हरियर , हावय खेती खार । गाय चरावत रहिथे भोला , बइठे तरिया पार ।। बारी बखरी बोंथय सबझन,  लामे रहिथे नार । रहिथे सुघ्घर हिलमिल के सब , जुड़े मया के तार ।। पहुना आथे घर मा कोनों,  कँउवा करथे काँव । सबला सकला करके दाई,  बइठे परछी छाँव ।। लोटा मा जी पानी दे के,  पहुना पाँव पखार । मान गउन सब करथे ओकर, हिरदय मया अपार ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ 8602407353 Mahendra Dewangan Mati मात्रा  --- 16 + 11 = 27 सम चरण के आखिर मा बड़कू लघु  (गुरु लघु ) 2 , 1 होना चाहिए ।

सरसी छन्द

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सरसी छन्द  ( महेन्द्र देवांगन माटी ) (1) वीणा वाली हंस सवारी , सुन ले मोर पुकार । तोर शरण मा आये हाँवव  , मोला  तैंहर तार । मँय अज्ञानी बालक माता,  नइहे मोला ज्ञान । आ के  कंठ बिराजो दाई , अपने लइका जान। तोर दया से कोंदा बोलय,  राग छतीसो गाय । महिमा तोर अपार हवय माँ, कोई पार न  पाय । (2) भेद करव झन बेटी बेटा , दूनों एक समान । होथे दूनों कुल के दीपक, येला तैंहर जान ।। पढ़ा लिखा दे बेटी ला तँय , बोझा झन तैं मान । पढ़ही लिखही आघू बढ़ही , जग मा होही गान ।। कमती झन आँकव बेटी ला , बढ़ के हावय आज । अपन मूँड़ मा पागा बाँधे , करत हवय जी राज ।। (3) रिमझिम रिमझिम बरसे पानी,  दादुर गावय फाग । उचक उचक के मछरी घोंघी , झोंकत हावय राग ।। डबरी डबरा सब्बो भर गे , छलकत तरिया पार । नदियाँ नरवा उर्रा पुर्रा , बोहावत हे धार ।। गाँव गली मा पानी भरगे, भरगे खेती खार । चारों कोती पानी पानी, माचय हाहाकार ।। सावन महिना आ गे भोला , सुनले हमर पुकार । प्राण बचा दे अब तो तैंहर, विनती बारंबार ।। (4) मोहन नाचय राधा सँग मा , बृज मा रास रचाय । मुरली वाले नटवर नागर , अब्बड़ नाच नचाय ।। बंशी के