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Showing posts from May, 2018

खटिया

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खटिया खटिया के गय जमाना, अब तो पलंग आ गे । पटवा डोरी अऊ बूच के, जमाना हा नँदागे । खटिया  में बइठे बबा , ढेंरा ला आँटे । सुख दुख के गोठ ला , सबो झन कर बाँटे । सगा पहुना सबोझन, खटिया मा बइठे । बड़ मजबूत हाबे कहिके, मुछा ला अइठे । अब तो नवा नवा , पलंग अउ दीवान आ गे । मचोली अउ खटिया के, जमाना हा नँदागे । नींद भर बबा हा,  खोड़रा खटिया मा सोवय । फसर फसर नाक बाजे, कतको हल्ला गुल्ला होवय। अब तो पलंग मा सुतथे तभो , नींद नइ आवय । सुपेती हा गरमथे अउ , एती वोती कस मसावय। नेवार के तक गय जमाना, अब तो दीवान  आ गे । पटवा डोरी अउ बूच के, जमाना हा नँदागे । खटिया के गय जमाना, अब तो पलंग आ गे । पटवा डोरी अउ बूच के, जमाना हा नँदागे । महेन्द्र देवांगन माटी       पंडरिया  (कबीरधाम ) Mahendra Dewangan Mati @ 01/06/18

रोला छन्द -- 2

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(1) झन बोलव जी झूठ , भेद हा खुलबे करही , करबे गलती काम , पाप भोगे ला परही । सत के रस्ता रेंग , देखथे ऊपर वाला , देवय सबके साथ,  जेन हावय रखवाला ।। (2) होवत हाहाकार , बाढ़ गे गरमी अइसे, तड़पत हावय जीव,  नीर बिन मछरी जइसे । माथ पसीना आय,  देंह हा झुलसत हावय , पनही नइहे पाँव, आदमी कइसे जावय ।। (3) पानी नइहे आज, कोन हा येला लाही , सुक्खा हावय बोर , कहाँ ले पानी आही । तरसत हावय जीव,  सबे झन माँगय पानी, बाढ़य गरमी खूब , आय सुरता तब नानी । (4) बाढ़त हावय घाम, रखव जी बहुते पानी, होटल बासा छोड़,  खाव झन आनी बानी । निकलव मुँह ला बाँध,  धरे झन तोला झोला , पीयव शरबत जूस,    कका चेतावय  मोला । (5) बेटी बेटा एक  , भेद तैं झन कर बाबू , दूनों करही मान , राख ले अपने काबू । पढ़ा लिखा के देख , होय जी तोर सहारा, रौशन करही नाम  , जगत हा जानय सारा ।। (6) जरथे चटचट पाँव,  घाम हा अबड़ जनावय, कटगे सब्बो पेड़,  कहाँ ले छइहाँ पावय । करलव जस के काम , सबो झन पेड़ लगावव , मिल जुल आवव आज , धरा ला सुघर बनावव ।। (7) दुनिया धोखे बाज , समय मा सँग नइ देवय , छोड़ बीच मझधार , बुड़ो के सब खुश ह

तोर शरण मा आँवव

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तोर शरण मा आँवव जय अंबे जगदंबे भवानी, तोर महिमा ला गाँवव । दरशन दे दे मोला माता, तोर शरण मा आँवव । लकलक लकलक तोर रुप हे , अष्ट भुजा अवतारी । जगत के संकट तैंहर हरथस, सबके तैं महतारी । तोला छोड़ के मँय हर माता, अऊ कहां मँय जाँवव । दरशन दे दे मोला ............................ तोर अँगना ला लीप पोंछ के, सुंदर चँऊक पुरायेंव । सुंदर सजे हे रंग रंगोली , ध्वजा पताका लगायेंव । चंदन बंदन रोला टीका, कपुरी पान चढावँव । दरशन दे दे मोला ............................. तोर दरश ला पाये खातिर, सब नर नारी आथे । फल फूल अऊ नरियर भेला, सब झन तोला चढाथे । मँहू आये हँव तोर ठऊर मा , छप्पन भोग लगावँव । दरशन दे दे मोला  ........................... महेन्द्र देवांगन माटी    पंडरिया (कबीरधाम ) छत्तीसगढ़ @ Mahendra Dewangan Mati Pandaria chattisgarh Dist - Kabirdham

वेलेंटाइन डे

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*वेलेंटाइन डे* *के चक्कर* *********************** वेलेंटाइन डे के चक्कर में,  महूं एक ठन गुलाब लायेंव । हैप्पी वेलेंटाइन डे कहिके,  अपन बाई ल थमायेंव । वोला देखिस बाई ह , वहू ह लजागे । यहा ऊमर में तोला , का जवानी छागे । देके दिन में दे नइ हस, अब गुलाब देवत हस । छुछू कस मुँहू लमा के, फोकट के चूमा लेवत हस । नून तेल के चिंता नइहे, फूल ल धर के लानत हस । मोर अइसने जी बगियाय हे , अऊ जरे मा नून डारत हस । मेंहा कहेंव - चार दिन के जिनगी पगली, आ हांस के गोठियाले । का राखे हे जिनगी में,  चल आज वेलेंटाइन डे मनाले । वोहा कथे का होगे तोला, बड़ आशियाना मुड देखावत हस । चुंदी दांत झरगे तभो ले , अपन थोथना ल लमावत हस । अरे लोग लइका के चिंता कर , ये तो विदेशी संस्कृति आय । हमर मया तो जनम जनम तक हे , हमर बर तो रोज वेलेंटाइन डे आय । ये झोला ल धर अऊ साग भाजी लान । ये जगा ले सोज बाय , अपन मुँहू ल टार । झोला ल धराके वोहा, भीतरी में खुसरगे । वेलेंटाइन डे के भूत ह , मोरो मुड़ ले उतरगे । गयेंव बजार अऊ गुलाब नहीं, अब गोभी के फूल ल लायेंव । ये ले मोर रानी कहिके,  ओकर हाथ में थमायेंव । फूल गोभी

पानी के दुख

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पानी के दुख ************* गाँव गाँव मा पानी बर , हाहाकार होवत हे । मरत हावय पियास मा , पानी बर रोवत हे । तरिया नदियाँ कुँवा मन , जम्मो हा सुखावत हे। चलत राहय बोर हमर , उहू हा अटावत हे। अटक अटक के नल चलथे , लाइन सबो लगावत हे । बूँद बूँद मा घड़ा भरथे , सीरतोन के कहावत हे । बिहनिया ले पनिहारिन मन , लड़ई झगरा होवत हे । घेरी बेरी होवत लाइन गोल , माथा धरके रोवत हे । का बताबे पानी के दुख ला , बहू हा गोठियावत हे । रोज रोज के मइके मा , फोन ला लगावत हे । रचना महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati

रोला छन्द -- 1

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रोला छन्द पहिली सुमिरँव आज,  गुरू के चरण पखारँव , जोड़त हाँवव हाथ , माथ ला अपन नवावँव । करबे किरपा नाथ , आज तँय मोला वर दे , मँय अज्ञानी ताँव , ज्ञान के झोली भर दे ।।1।। जय गणपति गणराज , शरण मा तोरे आँवव , दे दे मोला ज्ञान  , माथ मँय तोर नवाँवव । सबके करथस काज,  बुद्धि के दाता तैंहा  , रख ले मोरो लाज , परत हँव पँइया मैंहा ।।2।। झन कर तँय अभिमान,  प्रेम से नाम कमाले, काया माटी जान , राम के गुण ला गाले । जिनगी के दिन चार,  संग मा कछु नइ जाये , जाबे खाली हाथ,  जगत मा जइसन आये ।।3।। सेवा कर तँय आज,  जगत मा नाम कमाबे, दीन दुखी ला भोज,  अगर तँय रोज कराबे । दया धरम ला मान , पार हो जाही नइया, होही मन हा शांत,  परम गति पाबे भइया ।।4।। जब तक हावय जीव,  लगे हे अब्बड़ माया, छूट जथे जब प्राण , होय ये माटी काया । अजर अमर हे जीव,  बदल जाथे जी चोला , झन कर तेहा शोक , होय दुख काबर तोला ।।5।। जिनगी हे अनमोल,  राम के गुन ला गा ले, कट जाही सब पाप , दान कर पुण्य कमा ले । माया मोह ल छोड़,  काम जी कछु नइ आये, होही जग मा नाम,  संग मा कछु नइ जाये ।।6।। काया कंचन तोर  , एक दिन माट