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Showing posts from April, 2018

गरमी बाढ़त

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गरमी अब्बड़ बाढ़त हे , कइसे दिन ल पहाबो । गरम गरम हावा चलत हे , कूलर पंखा चलाबो।। घेरी बेरी प्यास लगत हे , पानी दिनभर पियाथे । भात ह खवाय नही जी  , बासी गट गट लिलाथे। आमा के चटनी ह , गरमी म अब्बड़ मिठाथे। नान नान लइका मन , नून मिरचा संग खाथे । पेड़ सबो कटा गेहे , छाँव कहा ले पाबो । पानी सबो सुखा गेहे , प्यास कइसे बुझाबो ।। चिरई चिरगुन भटकत हे , चारा खाय बर तड़पत हे। पेड़ सबो कटा गेहे , घोसला बनाय बर तरसत हे। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ Priya Dewangan priyu

तुलसी ( दोहा छन्द )

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घर अँगना अउ चौक मा , तुलसी पेड़ लगाव । पूजा करके प्रेम से ,    पानी रोज चढ़ाव ।।1।। तुलसी हावय जेन घर , वो घर स्वर्ग समान । रोग दोष सब दूर कर , घर मा लावय जान ।।2।। तुलसी पत्ता पीस के,  काढा बने बनाव । सरदी खाँसी रोग मा , खाली पेट पियाव ।।3।। तुलसी पत्ता टोर के  , रोज बिहनिया खाव । स्वस्थ रहय जी देंह हा , ताकत बहुते पाव ।।4।। तुलसी माला घेंच मा  , पहिरय जे दिन रात । मिटथे कतको रोग हा,  कभू न होवय वात ।।5।। तुलसी पत्ता खाय जे , बाढ़य ओकर ज्ञान । मन पवित्र हो जात हे , लगय पढ़े मा ध्यान ।।6। तुलसी माला जाप कर , माता खुश हो जाय । बाढ़य घर मा प्रेम जी,  संकट कभू न आय ।।7।। महेन्द्र देवांगन माटी   पंडरिया 8602407353 @ mahendra dewangan mati

उल्लाला छन्द - 3

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सुन राम नाम से होत हे , भव सागर हा पार जी । तँय सेवा करले दीन  के, जिनगी के दिन चार जी  ।। सुन जिनगी जब तक तोर हे ,  दया धरम अउ दान कर । तँय का ले जाबे साथ मा ,  सबके इँहचे मान कर ।। जब रइही तन मा साँस हा, तब करबे तैं काम जी । सुन छुट जाही जब जीव हा , जाबे ऊपर धाम जी ।। सुन किरपा होथे गुरु मिलय , देवय सबला ज्ञान जी । सब अंधकार मिट जात हे , लगय पढ़े मा ध्यान जी ।। झन बेटी बेटा भेद कर , दूनों एक समान जी । ये घर के मर्यादा रखय , कुल के दीपक जान जी ।। सुन जब जब होथे देश मा , अब्बड़ अत्याचार जी । तब बेटी आथे रूप मा  , दुर्गा के अवतार जी ।। सुन सेवा करले गाय के,  आथे अब्बड़ काम जी । सब देवी देवता वास हे , येहा तीरथ धाम जी ।। सुन दूध दही ला खाय से, ताकत अब्बड़ आय जी । अब पालव सबझन गाय ला , कामधेनु ये ताय जी  ।। नियम -- (1)  2 पद 4 चरण (2) सम - सम चरण मा तुकान्तता । (3) 15 - 13 मात्रा में यति         यानी विषम चरण में 15 मात्रा अउ           सम चरण में 13 मात्रा । (4) विषम चरण के शुरु में "द्वि कल" याने        दो मात्रा वाले शब्द आना चाहिए । (5) येला "उल्ल

उल्लाला छन्द -- 2

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13 - 13 में यति । विषम अउ सम चरण में तुकांत । करथे जेहा काम जी, ओकर होथे नाम जी । दया धरम अउ दान कर , सबके तेंहा मान कर ।। भेद भाव झन मान जी,  सबला अपने जान जी । सेवा करले दीन के,  कोनों ला झन हीन के ।। बेटी घर के शान हे , जग मा ओकर मान हे । कुल के दीपक मान लव , बेटी ला पहिचान लव ।। गरमी बाढ़त जात हे , माथ पसीना आत हे । पानी नइहे बोर मा , लइका रोवय खोर मा ।। पानी राखव ढाँक के, देखव थोरिक झाँक के । धुर्रा माटी झन परय , कीट पतंगा झन मरय ।। चट चट जरथे पाँव हा,  मिलते नइहे छाँव हा । पत्ता सबो झरत हवय , पौधा घलो मरत हवय ।। करही जेहा सेवा जी, खाही ओहा मेवा जी । दीन दुखी ला दान कर , सबके आदर मान कर ।। महेन्द्र देवांगन माटी @ Mahendra Dewangan Mati

उल्लाला छंद - 1

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( 13 + 13 मात्रा । सम - सम चरण तुकांत ) जिनगी के हे चार दिन, सब ले मीठा बोल जी । कड़ुवा भाखा बोल के, अपन भेद झन खोल जी ।। गरमी अइसे बाढ़ गे , जीव सबो थर्राय जी । पानी नइहे बूँद भर , कइसे प्यास बुझाय जी ।। तीपय हावय भोंभरा , पनही नइहे पाँव जी । दिखत नइहे पेड़ हा , खोजत हाँवव छाँव जी ।। दू दिन के जिनगी हवय , जादा झन इतराव जी । कर ले सुघ्घर काम ला , जग मा नाम कमाव जी ।। आज काल के छोकरा, हीरो कट हे बाल जी । घूमत हावय खोर मा , बिगड़े हावय चाल जी ।। आजकाल के लोग मन , मानत नइहे बात जी । पूछत नइहे बाप ला , मारत हावय लात जी ।। बिन आँखी के देखथे , सुन लेथे बिन कान जी । बिना गोड़ के रेंगथे , अइसन हे भगवान जी ।। घूमत हावय गाय हा, सुध ना कोनों लेत जी । कागज झिल्ली खात हे , करलव थोकिन चेत जी ।। महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 @  Mahendra Dewangan Mati

ढोंगी बाबा

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ढोंगी बाबा *************** गाँव शहर मा घूमत हावय , कतको बाबा जोगी । कइसे जानबे तँहीं बता, कोन सहीं कोन ढोंगी  ? बड़े बड़े गोटारन माला,  घेंच मा पहिने रहिथे । मोर से बढ़के कोनों नइहे,  अपन आप ला कहिथे । फँस जाथे ओकर जाल मा , गाँव के कतको रोगी । कइसे जानबे तँही बता,  कोन सही कोन ढोंगी ? जगा जगा आश्रम खोल के, कतको चेला बनाथे । पढ़े लिखे चाहे अनपढ़ हो , सबला वोहा फंसाथे । आलीशान बंगला मा रहिके, सबला बुद्धू बनाथे । माया मोह ला छोड़ो कहिके, झूठा उपदेश सुनाथे । आश्रम अंदर कुकर्म करत हे, धन के हावय लोभी । कइसे जानबे तँही बता, कोन सही कोन ढोंगी  ? जागव रे मोर भाई अब तो,  एकर चाल ला जानव । छोड़ दे बाबा के चक्कर ला , घर के देवता ला मानव । अइसन अत्याचारी मन ला,  मिल के सजा देवावव । पहिरे हावय साधु के चोला , ओकर नकाब उतारव । हमर संस्कृति ला बदनाम करत हे , अइसन पापी भोगी । कइसे जानबे तँही बता , कोन सही कोन ढोंगी  ? गाँव शहर मा घूमत हावय , कतको बाबा जोगी । कइसे जानबे तँही बता,  कोन सही कोन ढोंगी  ? रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ वाटसप नंबर

अकती

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अकती पुतरी पुतरा के बिहाव होवत हे , देखे बर सब आवव जी । नाचत हावय लइका मन हा, सुघ्घर गाना गावय जी । नेवतत हावय घर घर जाके , टीकावन मा आहू जी । झारा झारा नेवता हावय , खा के तुमन जाहू जी । लाये हावय डूमर डारा , मड़वा ला छवावय जी । सजावत हे सुघ्घर घर ला , तोरन पताका लगावय जी । तेल चढावत मड़वा मा अउ , गाना सबझन गावय जी । नाचत हावय मगन होके,  दमऊ दफड़ा बजावय जी । परत हावय भांवर संगी , मजा सबझन लेहू जी । टीकावन ला टीक के संगी, आशीर्वाद सब देहू जी । अकती के तिहार ला संगी , मिलके  सबो मनावव जी । भेदभाव ला दूर करव अउ , भाईचारा देखावव जी । महेन्द्र देवांगन "माटी" पंडरिया छत्तीसगढ़ 8602407353 18/04/2018

बारी के फूट

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बारी के फूट *************** वाह रे बारी के  फूट , फरे हस तैं चारों खूँट । बजार में आते साठ , लेथय आदमी लूट । दिखथे सुघ्घर गोल गोल, अब्बड़ येहा मिठाय । छोटे बड़े जम्मो मनखे , बड़ सऊंख से खाय । जेहा येला नइ खाय , अब्बड़ ओहा पछताय । मीठ मीठ लागथे सुघ्घर, खानेच खान भाय । बखरी मा फरे हावय , पाना मा लुकाय । कलेचुप बेंदरा आके, कूद कूद के खाय । नान नान लइका मन , चोराय बर जाय । कका ह लऊठी धर के, मारे बर कुदाय । कूदत फांदत भागे टूरा , नइ पावय पार । डोकरी ह चिल्लात हावय , मुँहू ल तोर टार । अब्बड़ फरे हे बारी मा , नइ बोलंव मय झूठ । सबो झन ला नेवता हावय , खाय बर आहू फूट । रचना प्रिया देवांगन "प्रियू" पंडरिया  (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ priyadewangan1997@gmail.com

दोहे के रंग

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दोहे के रंग गरम गरम हावा चलत ,  माथ पसीना आय । जेठ महीना घाम हा,  सबला बहुत जनाय ।।1।। मूड़ म साफी बाँध के, पानी पीके जाव  । रखव गोंदली जेब मा , *लू* से होत बचाव ।।2।। जनम दिवस के मौज मा , काटव झन जी केक । ओकर बदला प्रेम से,   पेड़ लगावव एक ।।3।। पानी नइहे खेत मा,  कइसे होही धान । देखत हवय अगास ला , भुँइया के भगवान ।।4।। बेटा राखव एक झन , कुल मा करय प्रकाश । जइसे तारा बीच मा ,  चंदा रहय अगास ।।5।। करिया दिखय अगास हा,  घटा हवय घनघोर । गरजत बादर जोर से, वन मा नाचय मोर ।।6।। खेलव झन जी आग से, हो जाथे ये काल । धन दौलत हा बर जथे, बन जाथे कंगाल ।।7।। भेद भाव करके कभू, आगी झने लगाव । सुनता से रहि के सबो,  घर परिवार चलाव ।।8।। आगी पानी देख के, लइका लोग बचाव । अलहन झन आवय कभू , सुघ्घर चेत लगाव ।।9।। पनही नइहे गोड़ मा , चट चट जरथे पाँव । आगी जइसे  घाम  हे , खोजय सबझन छाँव ।।10।। जंगल मा आगी लगय  , जुर मिल सबो  बुझाव । झन होवय नुकसान जी, सबके जीव  बचाव ।।11।। पानी हा अनमोल हे , कीमत एकर जान । बिन पानी जीवन नहीं  , येला तैंहर मान ।।12।। छत के उपर टांग दे , पानी भरे गिलास ।