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माटी के दीया जलावव

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माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव । चाइना माल के चक्कर छोड़ो, स्वदेसी ल अपनावव। माटी के दीया  ........................ बइठे हे कुमहारिन दाई, देखत हाबे रसता । राखे हाबे माटी के दीया, बेचत सस्ता सस्ता । का सोंचत हस ले ले संगी, घर घर  में बगरावव। माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव झालर मालर छोड़ो संगी, दीया ल बगरावव। माटी के दीया जलाके संगी, लछमी दाई ल बलावव । घर में आही सुख सांति, जुर मिल तिहार मनावव। माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव । चाइना माल से होवत हाबे, जन धन सबमे हानि । हमर देस में बिकरी करके, करत हे मनमानी । आंख देखावत हमला ओहा, वोला तुम दुतकारव माटी के दीया जलावव संगी,माटी के दीया जलावव । आवत हे देवारी तिहार, घर कुरिया ल लीपावव । गली खोर ल साफ  रखो, स्वच्छता के संदेश लावव। ओदरत हाबे घर कुरिया ह, सब ल तुम छबनावव। माटी के दीया जलावव संगी, अंधियारी ल भगावव । रचना महेन्द्र देवांगन माटी Mahendra Dewangan Mati संपर्क -- 8602407353

एक दीपक बन जायें

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करो कुछ ऐसा काम साथियों,घर घर खुशियां लायें । भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें | चारों तरफ है आज अंधेरा,किसी को कुछ न सूझे। पथराई है सबकी आंखें,आशा की किरण बुझे । कर दें दूर अंधेरा अब,नया जोश हम लायें । भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें । शोषित पीड़ित दलित जनों का,हम सेवक बन जायें । सभी हैं अपने बंधु बांधव,इसको मार्ग दिखायें । कोई रहे न भूखा जग में,मिल बांटकर खायें । भूले भटके राह जनों का, एक दीपक बन जायें । शिक्षा का संदेश लेकर,घर घर पर हम जायें । अशिक्षा अज्ञानता के, तम को दूर भगायें । नही उपेक्षित कोई जन अब,अपना लक्ष्य बनायें । भूले भटके राह जनों का, एक दीपक बन जायें । ऊंच नीच और जाति पांति के,भेद को दूर भगायें । अमावश की कालरात्रि में,मिलकर दीप जलायें । त्योहारों की खुशियां हम सब,मिलकर साथ मनायें । भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें || रचनाकर महेन्द्र देवांगन "माटी"    पंडरिया Mahendra Dewangan Mati