हलाकान *************** गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान , चिरई चिरगुन प्यासे हे, कइसे बांचही परान। सूरज देवता के ताप में, भुंईयां ह जरत हे रुख राई के पत्ता झरगे,पऊधा मन मरत हे। छेरी पठरु भूख मरत, बांचे नइहे पान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान । रहि रहि के टोंटा ह , अब्बड़ सुखावत हे, खवात नइहे भात ह, पानी भर पीयावत हे। घेरी बेरी दाई मांगत, पानी ल लान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान। तरिया नदिया के सब, पानी अटावत हे कुंवा बावली अऊ, बोरिंग पटावत हे। कोन जनी संगी , कइसे बांचही परान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान। घेरी बेरी लाइन गोल, पुटठा ल धुंकत हे चटक गेहे पेट ह, कुकुर मन भुंकत हे। बबा ह चिल्लावत हे, डंडा ल लान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया