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Showing posts from 2017

नवा साल मुबारक हो

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नवा साल मुबारक हो ****************** बड़े मन ल नमस्कार, अऊ जहुंरिया से हाथ मिलावत हों । मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो । पढहैया के बुद्धि बाढहे , होवय हर साल पास । कर्मचारी के वेतन बाढहे , बने आदमी खास । नेता के नेतागिरी बाढहे , दादा के दादागिरी । मिलजुल के राहव संगी , झन होवव कीड़ी बीड़ी। बैपारी के बैपार बाढहे , जादा ओकर आवक हो । मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो । किसान के किसानी बाढहे , राहय सदा सुख से। मजदूर के मजदूरी बाढहे , कभू झन मरे भूख से । कवि के कविता बाढहे , लेखक के लेखनी । पत्रकार के पत्र बाढहे , संपादक के संपादकी । छोटे छोटे दुकानदार मन के, धन के सदा आवक हो । मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो । प्रेमी ल प्रेमिका मिले,  बेरोजगार ल रोजगार । रेंगइया ल रददा मिले , डुबत ल मददगार । बबा ल नाती मिले , छोकरा ल छोकरी । पढ़े लिखे जतका हाबे , सब ल मिले नौकरी । अच्छा अच्छा दिन गुजरे,  ये साल ह लाभदायक हो । मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो । रचना महेन्द्र देवांगन माटी     पंडरिया 8602407353 Mahendra Dewangan Mati @

मोर छत्तीसगढ़ के किसान

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मोर छत्तीसगढ़ के किसान, जेला कहिथे भुंइया के भगवान । भूख पियास ल सहिके संगी , उपजावत हे धान । बड़े बिहनिया सुत उठ के, नांगर धर के जाथे । रगड़ा टूटत ले काम करके, संझा बेरा घर आथे । खून पसीना एक करथे, तब मिलथे एक मूठा धान । मोर छत्तीसगढ़ के किसान, जेला कहिथे भुंइया के भगवान । छिटका कुरिया घर हाबे, अऊ पहिनथे लंगोटी । आंखी कान खुसर गेहे , चटक गेहे बोडडी । करजा हाबे ऊपर ले , बेचागे हे गहना सुता । साहूकार घर में आ आके , बनावत हे बूता । मार मार के कोड़ा, लेवत हे ओकर जान । मोर छत्तीसगढ़ के किसान, जेला कहिथे भुंइया के भगवान । महेन्द्र देवांगन "माटी "✍ प ंडरिया छत्तीसगढ़ MAHENDRA DEWANGANMATI 🐂🐃🐂🐃🐂🐃🚶🏻👳🏼

बरबाद होगे

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बरबाद होगे *************** बरबाद होगे भैया, दारु पी के सब बरबाद होगे । सूरा सहीं घोन्डे हाबे 2, कइसन ए अजाद होगे। बरबाद होगे बरबाद होगे भैया .............................. एक पौवा पीथे ताहन, आंखी ल देखाथे । दूसर पौवा चढथे ताहन, शेर सही गुरराथे । रंग रंग के गारी देके, झगरा ल मताथे बरबाद होगे बरबाद होगे भैया, दारु पी के सब बरबाद होगे । लोग लइका भूखन मरत, ओकर नइहे चिंता । गली गली में घूमत हाबे, होवत ओकर हिंता । करजा में बूड़े हाबे, भागत हे लुकाके । बरबाद होगे बरबाद होगे भैया, दारु पी के सब बरबाद होगे । जेब में रहिथे पइसा ताहन, अब्बड़ मटमटाथे । मुरगा मटन खाथे अऊ , चार झन ल खवाथे । मारत हे पुटानी अऊ , खेत खार बेचागे । बरबाद होगे बरबाद होगे भैया, दारु पी के सब बरबाद होगे । एकरे सेती काहत हावों , झन पीयो जी दारु । लोग लइका के चेत करले , सुन ले ग समारु । शरीर ह खोखला होके, बढ जाथे बीमारी । बरबाद होगे बरबाद होगे भैया, दारु पी के  सब बरबाद होगे । महेन्द्र देवांगन माटी    पंडरिया (कवर्धा ) छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati @ 8602407353

माता की कृपा

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माता की कृपा *************** मां दुर्गा के चरणों में मैं, अपना शीश झुकाता हूँ । तेरे दर पे आकर माता, श्रद्धा के फूल चढाता हूँ । कोई न हो जग में दुखी मां , तेरी कृपा बनी रहे । बस इसी आशा से मैं, लोगों को भजन सुनता हूँ । जिस पर तेरी कृपा पड़े मां , भाग्य बदल जाता है । पल भर में ही वह मानव , रंक से राजा बन जाता है । जहां जहां तक नजरें जाती , सब पर तेरी माया है । प्रकृति का कण कण भी, तुझ पर ही बलि जाता है । तेरे दर पे आकर माता, मन का बगिया खिलता है । भूल जाता हूँ दुनियादारी, सुकून मन को मिलता है । तेरी याद में हर दिन माता, मैं ये भजन लिखता हूँ । तेरी कृपा के बिना तो माँ,  पत्ता भी न हिलता है । रचना  Mahendra Dewangan Mati महेन्द्र देवांगन "माटी"   पंडरिया (छत्तीसगढ़ ) मो नं -- 8602407353 Email - mahendradewanganmati@gmail.com

जाड़ ह जनावत हे

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जाड़ ह जनावत हे ************** चिरई-चिरगुन पेड़ में बइठे,भारी चहचहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे। हसिया धर के सुधा ह,खेत डाहर जावत हे। धान लुवत-लुवत दुलारी,सुघ्घर गाना गावत हे। लू-लू के धान के,करपा ल मढ़ावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे। पैरा डोरी बरत सरवन ,सब झन ल जोहारत हे। गाड़ा -बइला में जोर के सोनू ,भारा ल डोहारत हे धान ल मिंजे खातिर सुनील,मितान ल बलावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। पानी ल छुबे त ,हाथ ह झिनझिनावत हे। मुहू में डारबे त,दांत ह किनकिनावत हे। अदरक वाला चाहा ह,बने अब सुहावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत,जाड़ ह अब जनावत हे।। खेरेर-खेरेर लइका खांसत,नाक ह बोहावत हे डाक्टर कर लेग-लेग के,सूजी ल देवावत हे। आनी-बानी के गोली-पानी,अऊ टानिक ल पियावत हे। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। पऊर साल के सेटर ल,पेटी ले निकालत हे बांही ह छोटे होगे,लइका ह रिसावत हे। जुन्ना ल नइ पहिनो कहिके,नावा सेटर लेवावत हे।। सुरूर-सुरूर हवा चलत ,जाड़ ह अब जनावत हे।। रांधत - रांधत बहू ह,आगी ल अब तापत हे लइका ल नउहा हे त ,कुड़कुड़-कुड़कु

माटी के दीया जलावव

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माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव । चाइना माल के चक्कर छोड़ो, स्वदेसी ल अपनावव। माटी के दीया  ........................ बइठे हे कुमहारिन दाई, देखत हाबे रसता । राखे हाबे माटी के दीया, बेचत सस्ता सस्ता । का सोंचत हस ले ले संगी, घर घर  में बगरावव। माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव झालर मालर छोड़ो संगी, दीया ल बगरावव। माटी के दीया जलाके संगी, लछमी दाई ल बलावव । घर में आही सुख सांति, जुर मिल तिहार मनावव। माटी के दीया जलावव संगी, माटी के दीया जलावव । चाइना माल से होवत हाबे, जन धन सबमे हानि । हमर देस में बिकरी करके, करत हे मनमानी । आंख देखावत हमला ओहा, वोला तुम दुतकारव माटी के दीया जलावव संगी,माटी के दीया जलावव । आवत हे देवारी तिहार, घर कुरिया ल लीपावव । गली खोर ल साफ  रखो, स्वच्छता के संदेश लावव। ओदरत हाबे घर कुरिया ह, सब ल तुम छबनावव। माटी के दीया जलावव संगी, अंधियारी ल भगावव । रचना महेन्द्र देवांगन माटी Mahendra Dewangan Mati संपर्क -- 8602407353

एक दीपक बन जायें

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करो कुछ ऐसा काम साथियों,घर घर खुशियां लायें । भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें | चारों तरफ है आज अंधेरा,किसी को कुछ न सूझे। पथराई है सबकी आंखें,आशा की किरण बुझे । कर दें दूर अंधेरा अब,नया जोश हम लायें । भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें । शोषित पीड़ित दलित जनों का,हम सेवक बन जायें । सभी हैं अपने बंधु बांधव,इसको मार्ग दिखायें । कोई रहे न भूखा जग में,मिल बांटकर खायें । भूले भटके राह जनों का, एक दीपक बन जायें । शिक्षा का संदेश लेकर,घर घर पर हम जायें । अशिक्षा अज्ञानता के, तम को दूर भगायें । नही उपेक्षित कोई जन अब,अपना लक्ष्य बनायें । भूले भटके राह जनों का, एक दीपक बन जायें । ऊंच नीच और जाति पांति के,भेद को दूर भगायें । अमावश की कालरात्रि में,मिलकर दीप जलायें । त्योहारों की खुशियां हम सब,मिलकर साथ मनायें । भूले भटके राह जनों का,एक दीपक बन जायें || रचनाकर महेन्द्र देवांगन "माटी"    पंडरिया Mahendra Dewangan Mati

असली रावण को मारो

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भर गया है पाप का घड़ा, अब तो इसे निकालो । नकली रावण को छोड़कर, असली को अब मारो। गाँव गली में घूम रहे हैं, साधुओं के वेश में । राम नाम का माला जपते, बाबाओं के भेष में । जागो अब हनुमान बनकर, पापी को पहचानो । नकली रावण को छोड़कर, असली को अब मारो। मुंह में राम बगल में छुरी, ऐसे प्रपंच रचाते हैं । लूट रहे हैं लोगों को और , झूठे वचन सुनाते हैं । नोच लो इसके नकली चेहरा, कूट कूट कर मारो । नकली रावण को छोड़कर, असली को अब मारो। विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ महेन्द्र देवांगन माटी ✍       पंडरिया 8602407353 💐💐💐💐💐💐💐💐💐

आजादी का पर्व

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आजादी का पर्व *************** आजादी का पर्व मनाने, गाँव गली तक जायेंगे । तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे । नहीं भूलेंगे उन वीरों को , देश को जो आजाद किया । भारत मां की रक्षा खातिर, जान अपनी कुर्बान किया । आज उसी की याद में हम सब , नये तराने गायेंगे । तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे । चन्द्रशेखर आजाद भगतसिंह,  भारत के ये शेर हुए । इनकी ताकत के आगे, अंग्रेजी सत्ता ढेर हुए । बिगुल बज गया आजादी का, वंदे मातरम गायेंगे । तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे । मिली आजादी कुर्बानी से,  अब तो  नही जाने देंगे । चाहे कुछ हो जाये फिर भी, आंच नहीं आने देंगे । संभल जाओ ओ चाटुकार तुम, अब तो शोर मचायेंगे । तीन रंगों का प्यारा झंडा, शान से हम लहरायेंगे । हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, सबको आगे आना होगा । स्कूल हो या मदरसा सब पर , तिरंगा फहराना होगा । देशभक्ति का जज्बा है ये , मिलकर साथ मनायेंगे । तीन रंगों का प्यारा झंडा,  शान से हम लहरायेंगे । Mahendra Dewangan Mati       महेन्द्र देवांगन माटी            पंडरिया            छत्तीसगढ़          13/08

अगस्त क्रांति

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अगस्त क्रांति ************ क्रांति का आगाज हो चुका, चुप नहीं बैठेंगे हम । जब तक पूर्ण न हो मांग हमारी,  नहीं लेंगे कोई दम । उठा चुके हैं मशाल हाथ में, अब नहीं बुझने देंगे । भभक उठी है क्रांति ज्वाला, सर नहीं झुकने देंगे । देख लो अब ताकत हमारी,  अभी तो ये अंगड़ाई है । अगस्त क्रांति आ चुका है,  आगे और लड़ाई है । महेन्द्र देवांगन माटी Mahendra Dewangan Mati 10/08/2017

राम नाम जपले

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राम नाम जपले ************** राम नाम ल जप ले संगी , इही ह काम आही । ए जिनगी के नइहे ठिकाना, कोन बेरा उड़ जाही । कतको करबे हाय हाय ते, काम तोर नइ आये । सुख के मितवा सबो हरे, दुख में सब भाग जाये । माया मोह में फंसके तैंहा , बिरथा जिनगी गंवाये , देखत रही सगा सोदर, कोनों काम नइ आये । फेसबुक अऊ वाटसप में, हजारों दोस्त बनाये । परे रबे जब खटिया में, कोनों पुछे ल नइ आये । सबले बड़े मायाजाल हरे , फेसबुक अऊ वाटसप । जब तक हाबे नेट पैक जी, मारले तेंहा गप सप । माटी के हरे काया संगी, माटी में मिल जाही । भज ले हरि के नाम जी, इही काम तोर आही ।         रचना महेन्द्र देवांगन "माटी"        पंडरिया

बादर गरजत हे

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बादर गरजत हे ************** सावन भादो के झड़ी में, बादर ह गरजत हे । चमकत हे बिजली,  रहि रहि के बरसत हे । डबरा डबरी भरे हाबे , तरिया ह छलकत हे । बड़ पूरा हे नदियाँ ह जी , डोंगा ह मलकत हे । चारों कोती खेत खार , हरियर हरियर दिखत हे। लहलहावत हे धान पान, खातू माटी छींचत हे । सब के मन झूमत हाबे, कोयली गाना गावत हे। आवत हाबे राखी तिहार, भाई ल सोरियावत हे। घेरी बेरी बहिनी मन , सुरता ल लमावत हे । आही हमरो भइया कहिके, मने मन मुसकावत हे। रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"  Priya dewangan priyu 

बम बम भोले

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बम बम भोले *************** हर हर बम बम भोलेनाथ के  ,  जयकारा लगावत हे । कांवर धर के कांवरिया मन , जल चढाय बर जावत हे । सावन महिना भोलेनाथ के, सब झन दरसन पावत हे । धुरिहा धुरिहा के सिव भक्त मन , दरस करे बर आवत हे । कोनों रेंगत कोनों गावत , कोनों घिसलत जावत हे । नइ रुके वो कोनों जगा अब , भले छाला पर जावत हे । आनी बानी के फल फूल अऊ , नरियर भेला चढावत हे । दूध दही अऊ चंदन रोली , जल अभिसेक करावत हे । भोलेनाथ के महिमा भारी , सबझन माथ नवावत हे । औघड़ दानी सिव भोला के, सब कोई आसीस पावत हे । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया

ऊं नमः शिवाय

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ऊं नमः शिवाय ************** जय शिव शंभु दया करो,हम तेरे शरण में आये तेरे दर को छोड़ के बाबा, और कहां हम जायें । ओम नम: शिवाय, ओम नम:शिवाय  4 देवों के तुम देव हो बाबा, महादेव कहलाये सबका संकट हरने वाला, लीला अजब रचाये। ओम नम:शिवाय ओम नम:शिवाय - 4 औघड़ दानी तू है बाबा, सबको देने वाला दीन दुखियों के सहारा है , भक्तों का रखवाला । ओम नम:शिवाय, ओम नम:शिवाय - 4 विष का प्याला पीने वाला, नीलकंठ कहलाये जो भी आये तेरे शरण में, सबको गले लगाये। ओम नम: शिवाय, ओम नम: शिवाय - 4            महेन्द्र देवांगन माटी             पंडरिया छत्तीसगढ़ Mahendra Dewangan Mati 

बरसात

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बरसात बरसात का मौसम आया , बादल गरजे पानी लाया । झम झमाझम गिरे पानी, पानी खेले गुड़िया रानी । चम चमाचम बिजली चमके, छोटू छुप जाये फिर डरके । आसमान में काले बादल , दिख रहे हैं जैसे काजल । चुन्नू मुन्नू नाव चलाये, दादा दादी खूब चिल्लाये । दोनों पानी में भीग रहे, आक्छी आक्छी छींक रहें । टर्र टर्र मेढक चिल्लाये , पानी को फिर से बुलाये । पानी गिरे झम झमाझम, नाचे गुड़िया छम छमाछम । चारों ओर  हरियाली छाई, खेतों में फसलें लहलहाई । खुश हो गये  सभी किसान , मिट गई चिंता की सभी निशान । महेन्द्र देवांगन माटी 01/07/2017

बरसा के दिन आवत हे

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बरसा के दिन आवत हे टरर टरर मेचका गाके, बादर ल बलावत हे । घटा घनघोर छावत, बरसा के दिन आवत हे । तरबर तरबर चांटी रेंगत, बीला ल बनावत हे । आनी बानी के कीरा मन , अब्बड़ उड़ियावत हे । बरत हाबे दीया बाती, फांफा मन झपावत हे  । घटा घनघोर छावत,  बरसा के दिन आवत हे । हावा गररा चलत हाबे, धुररा ह उड़ावत हे । बड़े बड़े डारा खांधा , टूट के फेंकावत हे  । घुड़ुर घाड़र बादर तको, मांदर कस बजावत हे । घटा घनघोर छावत  , बरसा के दिन आवत हे । ठुड़गा ठुड़गा रुख राई के, पाना ह उलहावत हे । किसम किसम के भाजी पाला, नार मन लमावत हे । चढहे हाबे छानही में, खपरा ल लहुंटावत हे । घटा घनघोर छावत  , बरसा के दिन आवत हे । सबो किसान ल खुसी होगे , नांगर ल सिरजावत हे । खातू माटी लाने बर , गाड़ा बइला  सजावत हे । सुत उठ के बड़े बिहनिया, खेत खार सब जावत हे । घटा घनघोर छावत  , बरसा के दिन आवत हे । रचना महेन्द्र देवांगन "माटी " 15/06/2017

कहां ले बसंत आही

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पेड़ सबो कटागे संगी , कहां ले बसंत आही । चातर होगे बाग बगीचा, कहां आमा मऊराही। नइहे टेसू फूल पलास अब, लइका मन नइ जाने कंप्यूटर के जमाना आगे, बात कोनों नइ माने । पहिली के जमाना कस, कहां मजा अब पाही । पेड़ सबो कटागे संगी , कहां ले बसंत आही । नइ दिखे अब कौवा कोयल, कहां ले वोहा कुकही ठुठवा होगे रुख राई ह, कहां ले वोहा रुकही । नइहे सुनइया कोनों राग ल, कइसे वोहा गाही। पेड़ सबो कटागे संगी , कहां ले बसंत आही । रचना महेन्द्र देवांगन "माटी " पंडरिया छत्तीसगढ़

"तोर पंइयां लागंव वो"

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******************** मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोर पंइयां लागंव वो 2 मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोर चरन पखारौं वो-2 तोर कोरा में गियानी मुनी,बीर सपूत सब आइस ए माटी में माथ नवाके, जीवन सफल बनाइस चंदन जइसे माटी तोरे -2 माथे तिलक लगावव वो मोर छत्तीसगढ़ .............. रतनपुर महामाया बिराजे, डोंगरगढ़ बम्लाई बस्तर में बस्तरहीन बिराजे,संबलपुर सम्बलाई धमतरी में बिलई माता -2,सबला मेंहा मनावव वो मोर छत्तीसगढ़ ----------------------------। महानदी अरपा अऊ पैरी, तोरे पांव धोवाथे खारून सोढू शिवनाथ ह,तोर दरश बर आथे शंकनी डंकनी लहरा मारे -2,आरती तोर उतारवौ वो मोर छत्तीसगढ़ ---------------------------। सोना खान के सोना चमके, देवभोग के हीरा बैलाडीला के लोहा निकले, बनके तोरे पीरा कोरबा के तोर बिजली चमके -2,जग में अंजोर बगरावों वो मोर छत्तीसगढ़ ----------------------------------। रचना ©महेन्द्र देवांगन माटी 2017

सुप्रभात

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मुंदरहा ले उठके, कूकरा ह चिल्लावत हे बिहनिया होगे कहिके, सबला बतावत हे फूल गेहे चारो कोती ,फूलवारी में फूल माटी म खुसबू ल,गाँव भर बगरावत हे । बिहनिया के जय जोहार महेन्द्र देवांगन माटी Mahendradewanganmati ♏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹👏

मदर डे

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वाह रे जमाना, कइसे "मदर डे " मनावत हे । बात ल मानत नइहे, वाटसप ल चलावत हे । दुनिया भरके ग्रुप में, बधाई सबला देवत हे । खटिया में परे हे दाई, कोनों सुध नइ लेवत हे । जानो मानों श्रवण कस, भक्ति ल देखावत हे । मांगत हाबे पानी दाई, तब अब्बड़ खिसियावत हे उपर छावा बधाई भेज के, मदर डे मनावत हे । आनी बानी के फोटो खींचके, जी ल कल्लावत हे। मां तो हरे करुणा के मूरती, दुख ओकर पहिचानव एक दिन से कुछु नइ होये, रोज मदर डे मनावव । रोज मदर डे मनावव, रोज मदर डे मनावव । महेन्द्र देवांगन माटी ♏✍ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

झांझ चलत

झांझ चलत भाई, झांझ चलत । सरी मंझनिया , झांझ चलत । एसो गरमी, बहुत परत । झांझ चलत , भाई झांझ चलत । सुक्खा गेहे , सब रुख राई । बांचे नइहे, एको पत्ता भाई । चिरई चिरगुन , पियास मरत । झांझ चलत भाई, झांझ चलत। सरी मंझनिया , झांझ चलत । महेन्द्र देवांगन माटी ✍ ☀🌟☀💥☀☄🌟☄☀

गरमी बाढ़त हे

गरमी बाढ़त हे *************** दिनों दिन गरमी बाढ़त, पसीना चुचवावत हे। कतको पानी पीबे तबले, टोंटा ह सुखावत हे। कुलर पंखा काम नइ करत, गरम हावा आवत हे। तात तात देंहे लागत, पसीना में नहावत हे । घेरी बेरी नोनी बाबू, कुलर में पानी डारत हे । चिरई चिरगुन भूख पियास में, मुँहू ल फारत हे। नल में पानी आवत नइहे, बोर मन अटावत हे। तरिया नदिया सुक्खा होगे, कुंवा मन पटावत हे। कतको जगा पानी ह, फोकट के बोहावत हे। झन करो दुरुपयोग संगी, माटी ह गोहरावत हे। *********** रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" गोपीबंद पारा पंडरिया जिला -- कबीरधाम 

गरमी की छुट्टी

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गरमी की छुट्टी *************** स्कूल की अब हो गई छुट्टी धमा चौकड़ी मचा रहे हैं । दिन भर नाचे कूदे बच्चे मम्मी पापा को सता रहे हैं । नहीं सोते दोपहर में भी टी वी मोबाइल चला रहे हैं । तेज आवाज में गाना बजाकर हो हल्ला मचा रहे हैं । आइसक्रीम वाले आते ही दौड़ के सब जा रहे हैं । रंग बिरंगे फ्लेवर लेकर बड़े मजे से खा रहे हैं । रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"

मनी प्लांट

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रुख राई ल काट के सब, प्रदुसन ल बढावत हे। अपन हाथ में खुद आदमी, बिमारी ल बढावत हे। बड़े बड़े पेड़ ल काट के, सोफा पलंग बनावत हे । गददा लगाके सुतत हे, तभो नींद नइ आवत हे। घर के बगल में पेड़ लगे हे, ओला वो कटावत हे। भीतरी में हरियाली आही, मनी प्लांट लगावत हे। महेन्द्र देवांगन माटी

हलाकान

हलाकान *************** गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान , चिरई चिरगुन प्यासे हे, कइसे बांचही परान। सूरज देवता के ताप में, भुंईयां ह जरत हे रुख राई के पत्ता झरगे,पऊधा मन मरत हे। छेरी पठरु भूख मरत, बांचे नइहे पान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान । रहि रहि के टोंटा ह , अब्बड़ सुखावत हे, खवात नइहे भात ह, पानी भर पीयावत हे। घेरी बेरी दाई मांगत, पानी ल लान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान। तरिया नदिया के सब, पानी अटावत हे कुंवा बावली अऊ, बोरिंग पटावत हे। कोन जनी संगी , कइसे बांचही परान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान। घेरी बेरी लाइन गोल, पुटठा ल धुंकत हे चटक गेहे पेट ह, कुकुर मन भुंकत हे। बबा ह चिल्लावत हे, डंडा ल लान गरमी के मारे सब, होवत हे हलाकान। महेन्द्र देवांगन माटी         पंडरिया

अकति तिहार

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गांव गांव में सबोझन, अकती तिहार मनावत हे। पुतरी पुतरा के बिहाव करे बर, मड़वा ल सजावत हे। कोनों लावत डारा पाना, कोनों तोरन लगावत हे । कोनों लीपत घर अंगना ल, कोनों रंगोली बनावत हे। नोनी बाबू सबो मिलके, दूल्हा दुल्हीन सजावत हे। बाजत हाबे बाजा ह , टीकावन बर बलावत हे । अकती तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई अऊ शुभकामना । महेन्द्र देवांगन माटी     पंडरिया