मजदूर

मजदूर
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पसीना ओगार के मेंहनत करथे
दुनिया ल सिरजाथे
रात दिन मजदूरी करथे
तब मजदूर कहाथे ।

नइ खाये वो इडली डोसा
चटनी बासी खाथे
धरती दाई ल हरियर करथे
माटी के गुन गाथे ।

घाम पियास ल सहिके संगी
जांगर टोर कमाथे
खून पसीना एक करथे
तब रोजी रोटी पाथे ।

बिना मजदूर के काम नइ चले
दुनिया ह रुक जाही
जब तक मेंहनत नइ करही त
कहां ले विकास हो पाही ।

रचना
महेन्द्र देवांगन माटी
शिक्षक
( बोरसी - राजिम वाले )
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला - कबीरधाम (छ. ग. )
8602407353

matikerachana.blogspot.com

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