गरमी के दोहे ***************** तात तात हावा चले, पसीना ह बोहाय । कतको पानी पी तभो, टोंटा बहुत सुखाय।। गरम गरम लू चलत हे, गोंदली ल तैं राख । मुंहूं कान ल बांध ले , कर जतन तहूं लाख ।। चट चट भुइयां जरत हे, तीपत हे मुड़कान। छांव नइहे रसता में, लगत हे हलाकान ।। खटर खटर पंखा चले, नींद घलो नइ आत । मच्छर ह चाबत हाबे, कइसे कटही रात ।। साग पान मिठाय नहीं, बासी बने सुहाय । चटनी पीस खाले तैं, आमा बने लुभाय ।। महेन्द्र देवांगन माटी