अकती या अक्छय तृतीया के तिहार


अकती के तिहार
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छत्तीसगढ़ में अकती या अक्छय तृतीया तिहार के बहुत महत्व हे । ये दिन ल बहुत ही सुभ दिन माने गेहे। ये दिन कोई भी काम करबे ओकर बहुत ही लाभ या पून्य मिलथे। अइसे वेद पुरान में बताय गेहे।

कब मनाथे - अकती के तिहार ल बैसाख महीना के अंजोरी पाख के तीसरा दिन मनाय जाथे। एला अक्छय तृतीया या अक्खा तीज कहे जाथे।
अक्छय के मतलब ही होथे कि जो भी सुभ काम करबे ओकर कभू छय नइ होये। एकरे सेती एला अक्छय तृतीया कहे जाथे।
परसुराम के अवतार - परसुराम के अवतार भी इही दिन होय रिहिसे एकरे पाय आज के दिन ल परसुराम जयंती के रुप में भी मनाथे । 
आज के दिन भगवान बिसनु अऊ लछमी के भी पूजा करे जाथे। एकर पूजा करे से बिसेस लाभ मिलथे
दुवापर युग के समापन - पौरानिक कथा के अनुसार आज के दिन ही महाभारत युद्ध के अंत होइसे अऊ दुवापर युग के समापन भी होइसे।
ये सब कारन से अकती के बहुत महत्व हे

खेती किसानी के सुरुवात - छत्तीसगढ़ ह किरसी परधान राज हरे। इंहा के जीविको पारजन ह खेती किसानी से चलथे। अकती के दिन किसान मन ह ठाकुर देव के पूजा पाठ करथे अऊ धान के बोवाई ल भी एक परतीक के रुप में करथे। सब किसान मन ह ठाकुर देव के पूजा पाठ करके खेती किसानी के फसल ह बढ़िया होय कहिके आसीरवाद लेथे।
बिहाव के सुभ मुहुरुत - अकती के दिन ल बिहाव के सुभ मुहुरुत माने गेहे। आज के दिन पंचांग देखे के जरुरत नइ परे।
अकती के दिन जेकर बिहाव होथे ओकर जनम जनम तक साथ नइ छूटे अइसे कहे जाथे।

दान पून - आज के दिन दान पून के बिसेस महत्व हे। आज के दिन दान पून करे से बहुत बड़े पुन्य मिलथे। एकरे पाय सब आदमी ल अपन सक्ती के अनुसार दान पून करना चाही।
गरीब मनखे ल भोजन करवाना चाहिए अऊ कपड़ा आदि भी देना चाहिए। गौ माता ल घास खवाना चाहिए। पशुपक्षी मन ल भी भोजन करवाना चाहिए।
आज के दिन दान करथे वो कभू छय नइ होय।

कुछ अऊ महत्वपूर्ण जानकारी --
* माता अन्नपूर्णा के जनम ह आज के दिन होइस हे ।
* द्रोपदी के चीरहरन से भगवान किशन ह आज के दिन ही बचाय रिहिसे।
* कुबेर ल आज के दिन ही खजाना मिले रिहिसे।
* सतयुग अऊ त्रेतायुग के सुरुवात आज के दिन होय रिहिसे।
* भगवान बद्रीनारायण जी के कपाट ल आज के दिन ही खोले जाथे।
* अक्छय तृतीया अपन आप में स्वयं सिद्ध मुहुरुत हरे। कोनों भी सुभ काम के सुरुवात करे जा सकथे।

ए परकार से अकती के तिहार ह हमर समाज में बहुत महत्व रखथे। एकर से गांव में एकता अऊ भाईचारा के भी संदेश मिलथे।
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महेन्द्र देवांगन "माटी"
( बोरसी - राजिम वाले )
पंडरिया - कवर्धा 
छ. ग.

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