सपना

सपना
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कुहू कुहू कोयल ह , बगीचा में बोलत हे
रहि रहि के मोरो मन, पाना कस डोलत हे
जोहत हाबों रसता , आही कहिके तोला
तोर बिना सुन्ना लागे , गली खोर मोला
अन्न पानी सुहाये नही , तोर सुरता के मारे
सुध मोर भुला जाथे , ते का मोहनी डारे
सपना में आके तेंहा , मोला काबर जगाथस
आंखी ह खुलथे त , काबर भाग जाथस ।
आना मयारू तेहा , तोर संग गोठियाबो
हिरदय के बात ल , दूनो कोई बताबो ।



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