घरो घर झगरा समागे

घरो घर झगरा समागे
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जांगर होगे कोढिया,अउ रेडियो ह नंदागे |
जब ले आहे टी वी ह,घरो घर झगरा समागे ||
आनी बानी के पिक्चर,अउ धारावाहिक देखत हे |
काकरो बात ल मानना नइहे,ओकरे गुन ल सीखत हे |
टुरी टुरा मन पढहे बर छोड़दीस,फिल्मी गाना गावत हे |
फीस बर पइसा मांगके पिक्चर देखके आवत हे
दाई ददा के कहना नई माने,माथा ह पिरागे
जबले आहे टी वी ह , घरो घर झगरा समागे ।।

धूमधाम से बिहाव करके,लानिस हाबे बहू |
जबले आहे बहू ह,रोज निकालत लहू
रात दिन के कांव कांव मे,दुवार ह खंडागे
जबले आहे टी वी ह , घरो घर झगरा समागे ।।

सुख दुख के बात ल छोड़के,सिरियल के बात करथे
एक दुसर के चारी करके,फोकट के कान ल भरथे
निंदाचरी मे दिन पहावत,कथा काहनी नंदागे
जबले आहे टी वी ह , घरो घर झगरा समागे ।।

अपन संस्कृति ल छोड़के,पश्चिमी सभ्यता ल अपनावत हे
लोक लाज ल छोड़के,टुरी टुरा मन भगावत हे
कलब मे जाके डांस करत हे,रामसत्ता नंदागे
जबले आहे टी वी ह , घरो घर झगरा समागे ।।
जांगर होगे--------
महेन्द्र देवांगन "माटी"
( बोरसी - राजिम )
पंडरिया - कवर्धा (छ. ग.)

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