बासी चटनी

छ.ग.के बासी चटनी - महेन्द्र देवांगन माटी
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छ ग.के बासी चटनी,सबला बने मिठाथे |
इंहा के गुरतुर भाखा बोली,सबला बने सुहाथे ||
होत बिहिनिया बासी धरके,खेत किसान ह जाथे |
अपन पसीना सींच सींच के,खेत म सोना उगाथे ||
नता रिशता मे हंसी ठिठोली,इंहा के सुघ्घर रिवाज ए |
बड़े मनके पैलगी करना,इंहा के सुंदर लिहाज ए ||
बरा सोंहारी ठेठरी खुरमी,इंहा के कलेवा ए |
चीला रोटी चंउसेला कतरा,इंहा के ये मेवा ए ||
मीत मितानीन महा परसाद मे,सबो मया बंधाये हे |
जंवारा भोजली गंगाजल मे,गांव भर नता जुड़ाये हे ||
कका बबा अउ नाती नतरा,सब झन इंहा सकलाथे |
बैइठ के पीपर चंउरा मे,बबा ह काहनी सुनाथे ||
छत्तीसगढिया सबले बढिया,सिरतोन के कहाथे |
छ ग.के बासी चटनी,सबला बने मिठाथे ||

महेन्द्र देवांगन माटी
बोरसी - राजिम (छ. ग.)

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