बदलगे जमाना
बदलगे जमाना
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जमाना ह बदलगे , संस्कृति ल भुलावत हे
अपन रिवाज ल छोड़ के, दूसर के अपनावत हे
पतरी में खाय बर छोड़ दीस, बफे में जावत हे
बइला भंइसा कस गबर गबर, निकाल के खावत हे
बड़े छोटे के लिहाज नइहे, डीजे में नाचत हे
हाथ में हाथ धरे , टूरी टूरा मन हांसत हे
चसमा ल पहिन के, कनिहा ल मटकावत हे
नान नान कपड़ा पहिर के, सरी ल देखावत हे
महेन्द्र देवांगन "माटी"
(बोरसी - राजिम )
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जमाना ह बदलगे , संस्कृति ल भुलावत हे
अपन रिवाज ल छोड़ के, दूसर के अपनावत हे
पतरी में खाय बर छोड़ दीस, बफे में जावत हे
बइला भंइसा कस गबर गबर, निकाल के खावत हे
बड़े छोटे के लिहाज नइहे, डीजे में नाचत हे
हाथ में हाथ धरे , टूरी टूरा मन हांसत हे
चसमा ल पहिन के, कनिहा ल मटकावत हे
नान नान कपड़ा पहिर के, सरी ल देखावत हे
महेन्द्र देवांगन "माटी"
(बोरसी - राजिम )
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