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Showing posts from January, 2016

ए भुंइहा हे सरग बरोबर

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"ये भुइयाँ हे सरग बरोबर" ********************** ये भुइयाँ हे सरग बरोबर  चंदन कस जेकर माटी हे। जंगल झाड़ी परवत नदियाँ सब ह हमर थाती हे । हरियर हरियर लुगरा पहिने छत्तीसगढ़ महतारी हे। खेत खार अऊ देवी देवता हमर ये संगवारी हे । महानदी पैरी अऊ सोढू अमरित कस जेकर पानी हे। तीन लोक में महिमा जेकर गुरतुर हमर बानी हे । सुघ्घर बाग बगीचा जइसे खेत के हमर कियारी हे धान पान अऊ साग भाजी के सुंदर लगे फूलवारी हे । दया मया के थरहा जागे अइसन भाँटा बारी हे ये माटी ल माथ नवांवव एकर महिमा भारी हे।। *********************  रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" ( बोरसी - राजिम वाले ) गोपीबंद पारा पंडरिया जिला - कबीरधाम (छ. ग) पिन- 491559 मो.- 8602407353 Email -mahendradewanganmati@gmail.com *****************

नकल

नकल - महेन्द्र देवांगन माटी *********** कविता उपर सब कविता लिखत हे आघू पाछू कुछू नइ दिखत हे दूसर के रचना ल नकल करत हे अपन नाम चलाय बर सबो मरत हे । अपन विवेक से लिख के, दुनिया ल देखावव चोरी करके रचना ल, अपयस झन कमावव कवि बने चक्कर में, कतको कविता चोरावत हे दूसर के नाम ल मेटाके, अपन नाम लिखावत हे नकल करे बर अकल चाही, अकल से काम चलावव खुद मेहनत करके संगी, दुनिया में नाम कमावव। महेन्द्र देवांगन माटी mahendradewanganmati@gmail.com

वीर जवानों को नमन - महेन्द्र देवांगन माटी

वीर जवानों को नमन - ******************** है नमन उन वीरों को, जिसने की मान बढ़ाया है। देश में छुपे गद्दारों को, पल में मार गिराया है। बहुत हुआ आतंकी हमला, अब न होने देना है। अपने वीर शहीदों का अब, बदला हमको लेना है। है हिम्मत तो आगे आओ, छुपकर तुम क्यों लड़ते हो। बेकसुरों को मार रहे हो, आगे आने से डरते हो। कितनों भी अब चाल चलो तुम, नहीं कामयाबी पाओगे। अपने वीर जवानों के आगे, हरदम मुंह की खाओगे। अपनी जान की बाजी देकर, जिसने देश बचाया है। खून की होली खेलकर जिसने, रंग चमन में लाया है। गर्व करता है सारा देश, करते उसे सलाम हैं। ऐसे वीर सपूतों को, माटी का प्रणाम है। वंदे मातरम्  रचना महेन्द्र देवांगन "माटी" (शिक्षक) (बोरसी - राजिम) गोपीबंद पारा पंडरिया जिला - कबीरधाम (छ. ग)

जुलूस

जुलूस -- महेन्द्र देवांगन माटी ************** दारू भट्टी बंद करो कहिके सब झन ह सकलाइस आनी बानी के नारा लगा के जोर जोर से चिल्लाइस । हाथ में मशाल धर के जुलूस भारी निकालीस लोग लइका सबो झन ल  गली खोर किंजारीस । किंजर किंजर के थकगे सब हाथ गोड ह पिरागे गियापन ल सौंपीस ताहन जुलूस ह सिरागे । थक मांद के सब झन ह अपन अपन घर आईस थकान ल दूर करें बर भटठी डाहर भगाईस । दू दू पेग पीके सब थकान अपन मिटाईस लडबिड लडबिड करत घर में जाके सुरताईस ।। ************************ महेन्द्र देवांगन "माटी" बोरसी - राजिम

बासी चटनी

छ.ग.के बासी चटनी - महेन्द्र देवांगन माटी ---------------- छ ग.के बासी चटनी,सबला बने मिठाथे | इंहा के गुरतुर भाखा बोली,सबला बने सुहाथे || होत बिहिनिया बासी धरके,खेत किसान ह जाथे | अपन पसीना सींच सींच के,खेत म सोना उगाथे || नता रिशता मे हंसी ठिठोली,इंहा के सुघ्घर रिवाज ए | बड़े मनके पैलगी करना,इंहा के सुंदर लिहाज ए || बरा सोंहारी ठेठरी खुरमी,इंहा के कलेवा ए | चीला रोटी चंउसेला कतरा,इंहा के ये मेवा ए || मीत मितानीन महा परसाद मे,सबो मया बंधाये हे | जंवारा भोजली गंगाजल मे,गांव भर नता जुड़ाये हे || कका बबा अउ नाती नतरा,सब झन इंहा सकलाथे | बैइठ के पीपर चंउरा मे,बबा ह काहनी सुनाथे || छत्तीसगढिया सबले बढिया,सिरतोन के कहाथे | छ ग.के बासी चटनी,सबला बने मिठाथे || महेन्द्र देवांगन माटी बोरसी - राजिम (छ. ग.)

गांव ल झन भुलाबे

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गांव ल झन भुलाबे *************** शहर में जाके शहरिया बाबू ,गांव ल झन भुलाबे | नानपन के संगी साथी ल,सुरता करके आबे || गांव के धुर्रा माटी म खेलके ,बाढ़हे हे तोर तन ह आमा बगीचा अऊ केरा बारी म ,लगे राहे तोर मन ह आवाथे तीहार बार ह,सुरता करके आबे शहर में जाके …………….. सुरता कर लेबे पीपर चंउरा ल, अऊ गुल्ली डंडा के खेल ल गांठ बांध ले बबा के बात ल, अऊ मीत मितान के मेल ल हिरदय में अपन राखे रहिबे, मया ल झन बिसराबे शहर में जाके…………………………. दया मया ल राखे रहिबे, नता रिशता ल झन भुलाबे सुघ्घर सबके मान गउन करबे, अपन फरज निभाबे आँसू बोहावत देखत रहिथे, दाई के सुरता करके आबे शहर में जाके…………………………. छुटगे होही अंगाकर रोटी ह, अब तो तंदुरी ल खावत होबे इडली डोसा खा खाके, अब्बड़ मजा पावत होबे कतको खाले आनी बानी के फेर, तावा रोटी के सवाद कहां पाबे शहर में जाके शहरिया बाबू, गांव ल झन भुलाबे |  महेन्द्र देवांगन "माटी" बोरसी - राजिम (छ. ग.) 8602407353

महेन्द्र देवांगन माटी - गीत - उठो साथियों

गीत-उठो साथियों -------------- उठो साथियों अब तो जागो-2 राष्ट्रहित के काम को आओ पहले नमन करे हम,भारत माँ के लाल को -2 जिसने इस माटी की खातिर,अपना खून बहाया है मातृभूमि की सेवा करने,तन मन सारा लगाया है ऐसे बलिदानी वीरों का-2 याद करें उस नाम को आओ पहले------- देश की सेवा करने खातिर,जिसने अलख जगाया है अंग्रेजों को मार भगाने,अपना खून बहाया है ऐसे वीर सपूतों का-2 याद करे बलिदान को आओ पहले------- झांसी की रानी लक्ष्मी बाई जब,काल बनकर आई थी गांव गांव और नगर नगर,आजादी की अलख जगाई थी हिला दिये अंग्रेजी सत्ता-2 कैसे भुलें उस नाम को आओ पहले------- चंद्रशेखर आजाद भगतसिंह,सबको जोश दिलाया है नवयुवकों को होश मे आने,जिसने घुटटी पिलाया है ऐसे वीर बहादुर के-2 याद करें उस काम को आओ पहले------- उठो साथियों------ रचना महेन्द्र देवांगन माटी बोरसी - राजिम (छ. ग.) 8602407353

छेरछेरा

छेरछेरा ********* लइका सियान सब झोला धरके दुवारी दुवारी में जावत हे सबो कोई जुरमिल के छेरछेरा छेरछेरा चिल्लावत हे। डोकरी दाई दुवारी में बइठे मुठा मुठा देवत हे नोनी बाबू हांस हांस के धान ल लेवत हे। कोनों धरे टुकनी ल कोनों झोला धरे हे कोनों चूमड़ी ल धर के आघू में खड़े हे । लोग लइका खुस होके खावत हे मुररा लाई सबो झन देवत हाबे छेरछेरा के बधाई । सब झन ल छेरछेरा के गाड़ा गाड़ा बधाई महेन्द्र देवागंन माटी बोरसी - राजिम (छ. ग.) 8602407353

पितर

पितर ............................. जिंयत भरले सेवा नई करे,मरगे त खवावत हे | बरा सोंहारी रांध रांधके,पितर ल मनावत हे || अजब ढंग हे दुनिया के,समझ मे नइ आये| जतका समझेक कोशिश करबे,ओतकी मन फंस जाये || दाई ददा ह घिलर घिलरके,मांगत रिहिस पानी | बुढत काल मे बेटा ह, याद दिला दिस नानी|| दाई ददा ह मरगे तब, आंसू ल बोहावत हे बरा सोंहारी............ एक मुठा खाय ल नइ देवे,देवे वोला गारी | बेटा होके बापके,करे निंदाचारी || वोकरे कमई के राज म बइठे बइठे खावत हे| भुलागे सब एहसान ल,गुण ल तक नई गावत हे || मरगे बाप ह तब ,मांदी ल खवावत हे बरा सोंहारी........... बड़े बिहनिया सुत उठके,तरिया मे जाथे| आत्मा ओकर शांति मिले,पानी देके आथे|| कांव कांव करके कौआ ह,बरेण्डी मे आथे | दाई ददा ह आगे कहिके,बरा ल खवाथे मरगे दाई ददा तब,आनी बानी के खवावत हे बरा सोंहारी........... पहिली ले सेवा करतेयस,मिलतीस तोला सुख | कांही बातके जिनगी म,नइ होतिस तोला दुख देखा सीखी तोरा बेटा करही तोला वोइसने देही दुख तंहू ल,करे हस ते जइसने समय ह निकलगे तब पाछू बर पछतावत हे बरा सोंहारी.... जिंयत भरले............

भांटा मुरई

भांटा मुरई ---------------- आज रांधे हे घर में भांटा मुरई लकर धकर मे होगे अधकुचरा चुरई दाई ह चुप हे होगे बबा के चिल्लई छोटकी ह सुसकत हे होगे करलई सटकगे बहू के रंग रंग के बोलई कुरिया मे खुसरके होगे रोवई लइका ल भुलागे पियाय बर दवई मीठ मीठ बोलके माटी के मनई जाना हे जल्दी बाबू ल गंवई पेट नई भरीस आजके खवई आज रांधे हे............ रचना महेन्द्र देवांगन माटी बोरसी - राजिम छत्तीसगढ़ 8602407353

मटमटहा टूरा

मटमटहा टूरा ---------------- पढई लिखई मे ठिकाना नइहे , गली मे मटमटावत हे हार्न ल बजा बजाके फटफटी ल कुदावत हे घेरी बेरी दरपन देखके चुंदी ल संवारत हे आनी बानी के किरीम लगाके चेहरा ल चमकावत हे सूटबूट पहिन के निकले चशमा ल लगावत हे मुंहू म गुटका दबाके सिगरेट के धुंवा उडावत हे मोबाइल ल कान मे लगाके फुसुर फुसुर गोठियावत हे फेसबुक अउ वाटसप चलाके मने मन मुस्कावत हे संगी साथी संग घुम घुमके आदत ल बिगाडत हे फोकट म खाय ल मिलत त बाप के कमई ल उडावत हे लाज शरम तो बेचा गेहे कनिहा ल मटकावत हे नाक तो पहिली ले कटा गेहे अब कान ल छेदावत हे | रचनाकार महेन्द्र देवांगन "माटी" ( बोरसी - राजिम वाले ) गोपीबंद पारा पंडरिया जिला - कबीरधाम (छ. ग) 8602407353 *************************** इसे gurturgoth.com पर भी देख सकते हैं

नौकरी वाली बहू

नौकरी वाली बहू ******************** बी ए पास हे टूरा ह, लानीस नौकरी वाली बहू चार महीना में वहू ह, निकाल दीस सबके लहू सुत उठके बिहनिया ले, आफिस के तैयारी करथे चाहा तक बनाय नहीं, टूरा ह पानी भरथे झाड़ू पोंछा करे नहीं, सबला गोसइया करथे एको कनी कोई देरी होही, अब्बड़ ओहा लड़थे किरीम पाऊडर लिपिस्टिक ल, बेग में ओहा धरथे मुंहूं बांधे चसमा लगाय, स्कूटी में ओहा चलथे छुट्टी होथे आफिस के, संझा बेरा घर आथे घेरी बेरी मोबाइल बाजथे, फुसुर फुसुर गोठियाथे आनी बानी के खावत पीयत, बाई ह मोटावत हे एती टूरा ह संसो भरम में, दिनों दिन दुबरावत हे । महेन्द्र देवांगन माटी ( बोरसी-राजिम वाला) पंडरिया (छ. ग.) 8602407353

जी के जंजाल

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Mahendra Dewangan Mati Shared privately Jan 03, 2016 जी के जंजाल *************** जिनगी जी के जंजाल होगे तोर सुरता में बारा हाल होगे किंजरत रहिथों बइहा कस गांव भर में मोर बदनाम होगे । फोकट के देखेंव तोर सपना मोर नींद ह पूरा खराब होगे मिलना जुलना कुछु नहीं गांव भर में बवाल होगे । चंदा कस तोर चेहरा ह गांव भर में धमाल होगे हांसत बोलत रेंगत टूरी मुन्नी कस बदनाम होगे । महेन्द्र देवांगन "माटी" ( बोरसी राजिम ) 8602407353

आदमी अऊ कुकुर

आदमी अउ कुकुर --------------- आदमी ले जादा तो कुकुर के भाग खुले हे| आदमी कर चीथरा कथरी नइ राहे अउ कुकुर गद्दा में सुते हे| आदमी ह भीख मांगे ल जाथे,त धुरिहा ले भगाथे कुकुर ल भूख नइ लागत राहे तभो ले, गोदीम धरके खवाथे | नहाय बर पानी नइ राहे, आदमी डबरा म नहाथे, कुकुर के भाग ल देख मिनरल वाटर ल पियाथे | आदमी कर बने साइकिल नइ राहे, रेटही साईकिल मे चलथे वा रे किसमत वाला कुकुर मारुति इंडिका अउ नैनो कार मे घुमथे | आदमी ह बिमार परके,बिन गोली पानी के मर जाथे, कुकुर ह कोई बीमार परगे बडे बडे डाकटर ल बलाथे | आदमी ले जादा कुकुर के मान करत हे कुकुर छकत ले खात हे अउ आदमी पोट पोट मरत हे| कुकुर ह अब कुकुर न इ रहि गेहे आदमी देखे बर जावत हे देख मडई मेला मे आदमी के भविष्य ल कुकुर बतावत हे | महेंद्र देवागंन माटी (बोरसी - राजिम वाला) गोपीबंद पारा पंडरिया जिला - कबीरधाम (छ. ग.)

घरो घर झगरा समागे

घरो घर झगरा समागे ************************* जांगर होगे कोढिया,अउ रेडियो ह नंदागे | जब ले आहे टी वी ह,घरो घर झगरा समागे || आनी बानी के पिक्चर,अउ धारावाहिक देखत हे | काकरो बात ल मानना नइहे,ओकरे गुन ल सीखत हे | टुरी टुरा मन पढहे बर छोड़दीस,फिल्मी गाना गावत हे | फीस बर पइसा मांगके पिक्चर देखके आवत हे दाई ददा के कहना नई माने,माथा ह पिरागे जबले आहे टी वी ह , घरो घर झगरा समागे ।। धूमधाम से बिहाव करके,लानिस हाबे बहू | जबले आहे बहू ह,रोज निकालत लहू रात दिन के कांव कांव मे,दुवार ह खंडागे जबले आहे टी वी ह , घरो घर झगरा समागे ।। सुख दुख के बात ल छोड़के,सिरियल के बात करथे एक दुसर के चारी करके,फोकट के कान ल भरथे निंदाचरी मे दिन पहावत,कथा काहनी नंदागे जबले आहे टी वी ह , घरो घर झगरा समागे ।। अपन संस्कृति ल छोड़के,पश्चिमी सभ्यता ल अपनावत हे लोक लाज ल छोड़के,टुरी टुरा मन भगावत हे कलब मे जाके डांस करत हे,रामसत्ता नंदागे जबले आहे टी वी ह , घरो घर झगरा समागे ।। जांगर होगे-------- महेन्द्र देवांगन "माटी" ( बोरसी - राजिम ) पंडरिया - कवर्धा (छ. ग.)

बदलगे जमाना

बदलगे जमाना ***************** जमाना ह बदलगे , संस्कृति ल भुलावत हे अपन रिवाज ल छोड़ के, दूसर के अपनावत हे पतरी में खाय बर छोड़ दीस, बफे में जावत हे बइला भंइसा कस गबर गबर, निकाल के खावत हे बड़े छोटे के लिहाज नइहे, डीजे में नाचत हे हाथ में हाथ  धरे , टूरी टूरा मन हांसत  हे चसमा ल पहिन के, कनिहा ल मटकावत हे नान नान कपड़ा पहिर के, सरी ल देखावत हे महेन्द्र देवांगन "माटी" (बोरसी - राजिम )